W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

हवा में घुल गया जहर...

04:57 AM Nov 21, 2025 IST | Aditya Chopra
Advertisement
हवा में घुल गया जहर
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा
Advertisement

हवा में घुल गया जहर घुटन भरी ​िफजा हुई
दिल्ली में घिरी धुंध यूं कि जिन्दगी सजा हुई।
हवा भी हाॅफ-हाॅफ कर धूएं से करे मिन्नतें
चलो, कि अलविदा कहो, खुदा कि गर रजा हुई।
दिल्ली में लगातार बढ़ रहा प्रदूषण विफलता की तस्वीर उकेरता नजर आ रहा है। सुबह-सवेरे हवा घनी हो जाती है, आंखें चुभने लगती हैं और हर सांस भारी लगती है। ​िफर बहस शुरू हो जाती है कि दिल्ली की जहरीली हवाओं के लिए कौन जिम्मेदार है। जो भी कारण बताए जाते हैं वह नीतिगत नाकामियों का आसान निशाना है। यह सर्वविदित है कि दिल्ली की हवा साल भर प्रदूषित रहती है और इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि पराली जलाना, वाहनों से निकलने वाला धुआं और औद्योगिक उत्सर्जन इसमें महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। हालांकि, आंकड़े दिवाली के बारे में कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। हर साल त्यौहार में शहर का प्रदूषण स्तर आसमान छू जाता है। इस बार कई इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर 1,700 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को पार कर गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए स्तर से लगभग 100 गुना अधिक है। ये मामूली उतार-चढ़ाव नहीं हैं। ये रातोंरात तेज गिरावट का संकेत देते हैं। अस्पतालों ने अस्थमा, सांस लेने में तकलीफ और हृदय संबंधी जटिलताओं के लिए आपातकालीन दौरों में बढ़ाैतरी की सूचना दी है। प्रमाण स्पष्ट है: पार्टिकुलेट मैटर की इतनी अधिक सांद्रता के अल्पकालिक संपर्क से भी तीव्र श्वसन का संकट शुरू हो सकता है। एम्स ने कहा कि प्रदूषण के कारण दिल्ली में हैल्थ इमरजैंसी वाली स्थिति है। दिल्ली के मंत्री कहते हैं कि वे प्रदूषण नियंत्रण के ​िलए लगातार प्रयास कर रहे हैं लेकिन धरातल पर कुछ दिखाई नहीं देता। दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराया जाना भी महज नौटंकी ही साबित हुआ। कृत्रिम वर्षा के लिए आईआईटी कानपुर की उड़ानें भी नाकाम साबित हुई। हैरानी की बात तो यह है कि गंभीर हालात के बावजूद दिल्ली एनसीआर के कई स्कूल खेल प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त दिप्पणी की और कहा कि दूषित हवा में बच्चों को खेल प्रतियो​ि​गताओं में उतारना गैस चैंबर में डालने जैसा है। शीर्ष अदालत ने कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैैजनमेंट को तुरंत स्कूलों को खेल प्रतियोगिताएं टालने का निर्देश जारी करना च​ाहिए। सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि दिल्ली सरकार नवंबर-दिसंबर में स्कूलों के लिए इंटर जोनल स्पोर्ट्स टूर्नामेंट करवा रही है जबकि इस अवधि में एक्यूआई 500 से ऊपर चला गया है। प्रदूषण पर ही सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सख्त टिप्प्णी की कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। सवाल यह भी है कि जब प्रदूषण का स्तर ‘बेहद खराब’ को भी पार कर चुका है तो ग्रैप-4 जेसे कदम क्यों नहीं उठाए जाते। अब दिल्ली में रहना बेहद मुश्किल हो चुका है। प्रदूषण से सांस की बी​मारियां और अन्य गंभीर समस्याएं बढ़ रही हैं। चिंता का बड़ा कारण यह है कि यह सिर्फ बड़ों के लिए ही नहीं, बल्कि बच्चों के लिए भी कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर रही हैं। पूर्व की रिपोर्ट पहले ही यह कह रही है कि दिल्ली में जन्म लेने वाले बच्चों के फेफड़े गुलाबी नहीं काले हो रहे हैं। बच्चों में सांस की तकलीफ, आंखों और त्वचा की समस्या और एलर्जी हो रही है और बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो रही है। दिल्ली की हवा अब सिर्फ मौसम की मार नहीं, बल्कि सालभर सेहत के लिए खतरा बन गई। हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण पीएम- 2.5, पीएम 10, नाइट्रोजन आक्साइड और दूसरे जहरीले पदार्थ बच्चों के फेफड़ों में घुसकर खून में मिल रहे हैं जो दिल और दिमाग पर असर डाल रहे हैं।
प्रदूषित हवा बच्चों के फेफड़ों के विकास को स्थायी रूप से कम कर सकती है। द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में की एक स्टडी के मुताबिक, हवा में प्रदूषण का मौजूदा स्तर 10 से 18 साल के बच्चों के फेफड़ों के विकास पर लंबे समय तक खराब असर डालता है। इस महत्वपूर्ण प्रोस्पेक्टिव स्टडी में हजारों बच्चों को शामिल किया गया था और पाया गया कि ट्रैफिक से जुड़े वायु प्रदूषण के ज्यादा संपर्क में आने वाले बच्चों में किशोरावस्था के दौरान फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी देखी गई।
दिल्ली वालों के फेफड़े सिकुड़ रहे हैं लेकिन हो रही है केवल सियासत। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे जीवन की सुविधा भाेगी जीवन शैली ने उन घातक गैसों को बढ़ावा दिया है जो ग्लोबल वार्मिंग और पोल्यूशन का कारण बनती है। चुनावों के दौरान प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा तो रहा लेकिन राजनेताओं की उदासीनता ने आसन्न संकट को और बढ़ा दिया है। न जाने दिल्ली के पानी की तासीर कैसी है कि यहां का पानी जो एक बार पी लेता है वह दिल्ली वाला हो जाता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के सांसद भी दिल्ली में आकर रहते हैं लेकिन वह भी दिल्ली की चकाचौंध में आकर गुम हो जाते हैं। वैभव की दीवानी दिल्ली में वह भी ऐसे गुम हो जाते हैं जैसे राजधानी में सब ठीकठाक है। कोई भी शासन प्रशासन पर दबाव नहीं बनाता कि समय रहते प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रयास करे। स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए ऐसा जन आंदोलन शुरू किया जाए जिसमें जन-जन भागीदार हो। अगर अब भी हम नहीं चेते तो हम आने वाली पीढ़ियों को सांस लेने के ​िलए स्वच्छ हवा भी नहीं दे पाएंगे। दिल्ली में जीवन के संघर्ष में रोजी-रोटी की क्वायद में जुटे श्रमिकों को प्रदूषण निगल लेगा। राजनी​ितक दल, सरकार और जनता को इच्छाशक्ति दिखानी होगी जो संकट का समाधान कर सके।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×