Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

होली पर चढ़ा राजनीतिक रंग

05:09 AM Mar 25, 2024 IST | Aditya Chopra

सृष्टि रंगों से भरी हुई है। यह रंग जब आपस में ​खिलते हैं तो प्रकृति ​जीवंत हो जाती है। फाल्गुन के आते ही प्रकृति रंगों से भर जाती है। क्या मानव और क्या पशु-पक्षी सब उत्सव के भाव में आ जाते हैं। सूर्य की किरणों के सात रंग हैं। हमें जितने रंग दिखते हैं इन्हीं की वजह से दिखते हैं। इन रंगों से सबको ऊर्जा मिलती है। रंग पूरी प्रकृति में समाए हुए हैं। होली तो जीवन यात्रा का रस है जो जीवन को रंगों से भरना सिखाती है। जीवन रंगों से भरा है, बिना रंगों के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। होली प्रेम, ज्ञान, सत्य, मानवता और भाईचारे की प्रतीक है। विकारों से भरे मन को धो डालना ही होली है।
-खुशियों से सराबोर हो जाना ही होली है।
-मनमुटाव त्याग कर सबको गले लगा लेना और बदला लेने का भाव छोड़ देना ही होली है।
-वाणी में मिठास ही होली है।
-आप जिस रंग से रंगे होंगे वही भाव आप दूसरों पर ​बिखेरेंगे।
-प्रकृति के जैसे हमारे मनोभाव और भावनाओं के अनेक रंग होते हैं, उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति भी रंगों का फुहारा होता है।
-रंगों में दिव्यता है जो उत्सव का उदय करते हैं और इसी से जीवन पूरी तरह रंगीन हो जाता है।
इस बार की होली पर लोकसभा चुनावों का रंग चढ़ा हुआ है। नेताओं के नाम की पिचकारी के अलावा भगवा टोपी और भगवा गुलाल की मांग बढ़ी हुई है। रंगों के त्यौहार पर होली मिलन समारोह भी चुनावी रंग में नजर आ रहे हैं। बड़े-बड़े नेताओं के फोटो वाली पिचकारियां और नेताओं के नाम की प्रिंटेड टी-शर्ट पहने कार्यकर्ता नजर आ रहे हैं। जिन नेताओं को पार्टी टिकट मिल गई है वह होली मिलन कार्यक्रमों के माध्यम से समाजों से सम्पर्क कायम कर रहे हैं। बैनर तो समाज के टंगे हुए हैं लेकिन पूरे के पूरे कार्यक्रम राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा प्रायोजित हैं। आदर्श चुनाव संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग इन कार्यक्रमों पर कितनी नजर रख पाएगा, यह कहना मुश्किल है। गांव, कस्बों और शहरों से लेकर पहाड़ों तक सभी राजनीतिक दलों ने इस पर्व को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
लोकतंत्र के महापर्व में अबीर-गुलाल के साथ सियासी रंग की चमक खूब निखर रही है। जिन सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा अभी बाकी है वहां के इच्छुक टिकटार्थी भी हाथों में गुलाल लिए अपने आकाओं के यहां हाजरी लगाने और आगे से आगे बढ़कर उन्हें गुलाल लगाने की प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे हैं। कुल​ मिलाकर इस बार की होली में राजनीति का तड़का खूब लग रहा है। वैसे तो यह त्यौहार सभी दलों के राजनेताओं को एक साथ लाने के लिए जाना जाता था। यह एक ऐसा अवसर होता है जब राजनेता वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर त्यौहार मनाते हैं लेकिन अब राजनीतिक गलियारों में माहौल बिल्कुल अलग है। आरोप-प्रत्यारोपों के रंग उड़ रहे हैं। विपक्षी दलों ने सरकार के विरोध में होलिका दहन किया तो सत्तारूढ़ दल ने भ्रष्टाचार की होलिका का दहन किया। रंगों का त्यौहार बयानबाजी और आरोपों का त्यौहार बन गया है। राजनीतिज्ञों की बिरादरी का शीर्ष नेतृत्व पिछली पीढ़ी से बहुत अलग दिखाई देता है। पुुरानी पीढ़ी भाईचारे की सच्ची भावना के साथ त्यौहार का आनंद लेती थी। एक-दूसरे को गले लगाती थी लेकिन आज इस त्यौहार पर भाईचारे का रंग फीका दिखाई दे रहा है। जो नेता जेल पहुंच चुके हैं उनके दोस्त और पार्टी के नेताओं के चेहराें पर त्यौहार का कोई रंग नहीं दिखाई दे रहा। सत्तारूढ़ दल उन पर तीखे बयान दाग रहे हैं। त्यौहार की मर्यादाएं टूट चुकी हैं। बयानबाजी भी ऐसी कि राजनीतिक शालीनता की सारी हदें टूट रही हैं। राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले चिंतित हैं। क्योंकि प्रेम का संदेश फैलाने वाले त्यौहार पर कड़वी प्रतिद्वंद्विता नजर आ रही है। होली के आयोजन में फगुवा लोकगीत और कृष्ण भक्ति के गीत गूंजते थे लेकिन आज उनकी जगह राजनीतिक गीतों ने ले ली है।
होली जलाने की कथा का सार यह है कि भक्त प्रह्लाद को होलिका की गोद में बैठा दिया जाता है, अंत में होलिका का तो दहन हो जाता है, प्रह्लाद बच जाते हैं किन्तु राजनीति की गोद में जब भले लोग आकर बैठते हैं तो उनकी मनुष्यता और संवेदना ही नहीं वे स्वयं भी जलकर राख हो जाते हैं, अलबत्ता राजनीति बची रहती है। होली की लकड़ियां तो चार-छह घंटों में जलकर राख हो जाती हैं किन्तु राजनीति में घुसने के बाद भले लोग तिल-तिल कर उम्र भर जलते रहते हैं, कहां आग में पांव दे दिया? होली जल जाने के बाद दिन-प्रतिदिन छोटा होता काला वृत्त ज़मीन पर कुछ ही दिन दिखाई देता है जबकि राजनीति की काली वृत्ति एक बार प्रवेश कर गई तो दुनिया द्वारा जीवनपर्यंत देखी जाती है। होली में एक-दूसरे पर अबीर-गुलाल और रंग फैंके जाते हैं, जबकि राजनीति में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप, पत्थर और कुर्सियां। आग लगाने से पूर्व प्रत्येक होली पर एक ध्वजा फहराई जाती है, जबकि प्रत्येक राजनीतिक दल किसी न किसी झंडे के नीचे काम करता है। होली में झंडा और डंडा जलता है, जबकि राजनीति में झंडा और डंडा चलता है। 1947 तक प्रत्येक बस्ती में एक-एक होली ऐसी जलती थी जिनमें विदेशी वस्त्र, विदेशी वस्तुएं जलाई जाती थीं। आजकल प्रत्येक मोहल्ले में भैया साहब की पहली, ठाकुर साहब की दूसरी, और नेताजी की तीसरी होली जलती रहती है। यानी हर नेता की होली। आज राजनीति इस तरह हावी है कि होली भले ही होली की न रहे, पूरी तरह राजनीति की हो चुकी है।
यह वास्तविकता है कि बाकी त्यौहारों की तरह होली के त्यौहार ने भी आधुनिकता का रूप ले लिया है। इस पर्व पर बाजारवाद एवं दिखावा पूरी तरह हावी हो गया है। यह फूहड़ता और हुड़दंगबाजी का त्यौहार बनकर रह गया है। नैतिकता और मर्यादा का पतन हो रहा है। बेहतर यही होगा कि इस त्यौहार पर हम सब सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ने का काम करें और इस त्यौहार को मिल-जुलकर और प्रेम से मनाएं ताकि सामाजिक भेदभाव को खत्म किया जा सके। नकारात्मक शक्तियों को दूर करें और साकारात्मक विचारों को अपने भीतर लाएं।

Advertisement
Advertisement
Next Article