Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कम मतदान से चिंतित राजनीतिक दल

04:33 AM May 01, 2024 IST | Shivam Kumar Jha

देश में इस समय आम चुनाव का माहौल है। देश में सात चरणों में हो रही लोकसभा चुनावी प्रक्रिया के तहत अभी तक दो चरण के लिए वोटिंग हो चुकी है। दोनों चरणों में वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई। इससे तमाम राजनीतिक दल, उम्मीदवार और खुद चुनाव आयोग भी इस बात को लेकर चिंतित नजर आ रहा है कि आखिर लोग वोट देने घरों से क्यों नहीं निकल रहे? क्या इसके पीछे तेज गर्मी बड़ा कारण है या फिर वोटरों में उदासीनता या फिर कुछ और। पहले चरण के कम मतदान के बाद राजनीतिक दलों और नेताओं ने अपनी चुनावी सभाओं में ज्यादा से ज्यादा मतदान करने का आह्वान किया था लेकिन दूसरे चरण में भी आशानुरूप कम मतदान ही देखने को मिला।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश जहां से 80 सांसद देश की संसद में पहुंचते हैं, वहां देश के अन्य राज्यों की तुलना में कम मतदान रिकार्ड हुआ। पहले चरण में कम वोटिंग होने की वजह से नतीजों को लेकर सियासी दलों की धुकधुकी भी बढ़ गई है। वहीं बीजेपी नेताओं का दावा है कि उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में नए रिकॉर्ड बनाएगा। इसके अलावा मोदी सरकार की वापसी की उम्मीदों का दावा भी किया गया है। उत्तर प्रदेश में 19 अप्रैल को पहले चरण में प्रदेश में कुल 61.11 फीसदी मतदान हुआ था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में इन आठ सीटों पर 66.41 प्रतिशत मतदान हुआ था। पिछले चुनाव के मुकाबले पहले चरण की इन सीटों पर करीब 5.39 फीसदी कम वोट पड़े हैं। यूपी की 8 सीटों पर दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल को हुआ। इस दौरान वोटिंग प्रतिशत 55.39 रहा। पिछले आम चुनाव में इन सीटों पर 62.18 प्रतिशत वोट पड़े थे । इस हिसाब से साल 2024 के चुनाव में दूसरे चरण में पिछले चुनाव के मुकाबले 6.79 प्रतिशत कम वोटिंग हुई है।

दरअसल 2019 के दूसरे चरण में जिन सीटों पर भाजपा जीती थी, उन पर 3 फीसदी तक मतदान कम हुआ है। जो सीटें कांग्रेस ने जीती थीं उन पर 5-10 फीसदी मतदान घटा है। हिंदी पट्टी के प्रमुख राज्यों में मतदान औसतन 7 फीसदी तक घटा है। ये राज्य ही भाजपा के दुर्गनुमा चुनावी गढ़ हैं। क्या यह घटा हुआ मतदान भाजपा के खिलाफ एक ‘खामोश चुनावी लहर’ है? सवाल यह भी है कि फिर यह लहर किस राजनीतिक दल के पक्ष में है? कांग्रेस ने तो 300 सीटों पर भी उम्मीदवार नहीं उतारे हैं और गठबंधन के तौर पर ‘इंडिया’ छिन्न-भिन्न स्थिति में है। तो फिर जनादेश कैसा होगा और केंद्र सरकार का स्वरूप भी कैसा होगा?

वैसे तो इस बार के लोकसभा चुनाव का खास ट्रेंड यह दिख रहा है कि हर जगह मतदान में या तो पिछली बार के मुकाबले कमी आ रही है या उसके आसपास मतदान हो रहा है लेकिन हैरानी की बात है कि जिन सीटों पर पार्टियों के बड़े नेता चुनाव लड़ रहे हैं या पार्टियों ने ग्लैमर का तड़का लगाने के लिए फिल्मी सितारों आदि को उतारा है उन सीटों पर भी मतदान करने में लोगों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है। दूसरे चरण की 88 सीटों में से ज्यादातर वीआईपी सीटों पर औसत से कम या पिछली बार से कम मतदान हुआ है। यह ट्रेंड केरल से लेकर उत्तर प्रदेश तक एक समान रूप से देखने को मिला है।
केरल की तिरुवनंतपुरम सीट को बहुत हाई प्रोफाइल माना जा रहा है क्योंकि कांग्रेस के शशि थरूर लगातार चौथी बार जीतने के लिए लड़ रहे हैं तो भाजपा ने केंद्रीय मंत्री और कारोबारी राजीव चंद्रशेखर को लड़ाया है लेकिन 2019 के 74 फीसदी के मुकाबले 2024 में सिर्फ 64 फीसदी मतदान हुआ। इसी तरह मेरठ में भाजपा ने रामायण सीरियल में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल को उतारा है लेकिन वहां 2019 के 64.29 के मुकाबले 2024 में 59 फीसदी मतदान हुआ।

राहुल गांधी की वायनाड सीट पर 73 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट हुआ, जबकि 2019 में जब राहुल गांधी पहली बार वहां चुनाव लड़ने पहुंचे थे तब वहां 80.37 फीसदी मतदान हुआ था। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की जोधपुर सीट पर 2019 में 69 फीसदी वोट हुआ था, जबकि इस बार 64 फीसदी मतदान हुआ है। मथुरा में भाजपा की हेमामालिनी की सीट पर तो 2019 के मुकाबले करीब 14 फीसदी वोट कम पड़े हैं। वहां सिर्फ 49 फीसदी मतदान हुआ है जबकि पिछली बार 63 फीसदी के करीब वोट पड़े थे।

कम मतदान होने के पीछे क्या वोटरों में बढ़ती उदासीनता तो नहीं। इसमें कुछ वोटर वोट देना ही नहीं चाह रहे तो कुछ वोटर ऐसे हैं जिन्हें पार्टी या उम्मीदवार की जीत-हार पक्की लग रही है। ऐसे में वह वोट देने ही नहीं निकल रहे। जानकार भी यही मानते हैं कि कम वोटिंग के पीछे यह एक कारण लगता दिखाई दे रहा है। हालांकि, अभी इसका विश्लेषण होना बाकी है लेकिन कम वोटिंग के पीछे वोटरों में वोटिंग के प्रति उदासीनता होना दिख रहा है। खासतौर से बड़े राज्यों में जहां कहीं पिछले कुछ समय से नेताओं ने पार्टी बदली तो कहीं पैराशूटर उम्मीदवार आ धमके इससे भी वोटरों में उदासीनता आई। महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में कुछ ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है।

पहले दो चरण में कम वोटिंग होने से राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ गई है। भाजपा ने अपने प्रचार अभियान को अधिक तेज कर दिया है। आने वाले चरणों में पार्टी की कोशिश ज्यादा मतदान कराने की होगी ताकि वह बड़े लक्ष्य को हासिल कर सके। इसके साथ ही विपक्षी दलों ने अपनी चुनावी रणनीति को बदल दिया है। बहरहाल तीसरे चरण के मतदान के मद्देनजर भाजपा ने अपनी रणनीति बदलने का फैसला लिया है। करीब 500 नेता और पदासीन कार्यकर्ता मतदान वाले क्षेत्रों में तैनात किए जाएंगे। वे सुबह और शाम में मुख्य चुनाव केंद्र को रपट देंगे कि मतदाता की स्थिति क्या है? तीसरे चरण में अपने कोटे के मतदाताओं के वोट डलवाने को भाजपा ने कमर कस ली है। क्या कम मतदान का सबब यही है? हम इस सवाल से सहमत नहीं हैं। वहीं मतदाताओं को भी यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र के इस महापर्व में हरेक वोट बहुमूल्य है। देश में एक वोट से हार-जीत के कई प्रसंग हैं। एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी तो राजस्थान में कांग्रेस के दिग्गज नेता एक वोट की वजह से ना केवल विधायक बनने से चूक गए। बल्कि उसी एक वोट की वजह से वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक आज तक नहीं पहुंच पाए।

Advertisement
Advertisement
Next Article