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भावनात्मक मुद्दों पर ​निकल आई सियासी तलवारें

चंडीगढ़ के मसले पर पंजाब और हरियाणा फिर आमने-सामने हैं।

01:21 AM Apr 07, 2022 IST | Aditya Chopra

चंडीगढ़ के मसले पर पंजाब और हरियाणा फिर आमने-सामने हैं।

चंडीगढ़ के मसले पर पंजाब और हरियाणा फिर आमने-सामने हैं। गर्मागर्म भाषण होने लगे हैं। भारतीय लोकतंत्र की विडम्बना यह है कि भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दों को उछाल कर वोट की सियासत की जाती है। चंडीगढ़ और सतलुज-यमुना लिंक नहर ऐसे मुद्दे हैं जिनका व्यावहारिक समाधान आसान नहीं है, लेकिन इन पर फिर से मुठभेड़ की राजनीति शुरू हो चुकी है। पंजाब की नई ‘आप सरकार’ द्वारा विधानसभा में विशेष सत्र आहूत कर जिस  जल्दबाजी में चंडीगढ़ को तुरन्त पंजाब  हस्तांतरित करने संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया उसकी प्रतिक्रिया तो होनी ही थी। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने भी इस मुद्दे पर कोई देरी नहीं ​की और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर संकल्प प्रस्ताव पारित करा लिया। प्रस्ताव को विपक्ष की जोरदार सर्वसम्मति मिली। इस दौरान सभी विधायकों ने पंजाब में चंडीगढ़ को लेकर पारित किए गए प्रस्ताव की सभी ने एक स्वर में निंदा की। विपक्ष और सत्तापक्ष ने साफ कर दिया कि हरियाणा के हकों के साथ में किसी भी तरह का कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा।
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पंजाब सरकार के प्रस्ताव के बाद हरियाणा ने पलटवार में छक्का मार दिया  है। चंडीगढ़ पर अपना अधिकार जताते हुए हरियाणा ने एसवाईएल नहर निर्माण, यूटी अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति तथा हांसी-बुटाना नहर के जरिये पानी वितरण की मांग उठा ली। इसके साथ ही हरियाणा के लिए  अलग हाईकोर्ट, ​ हिन्दी भाषी इलाकों को हरियाणा में मिलाने की मांग तथा भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड में हरियाणा का प्रतिनिधित्व बनाए रखने की मांग भी सदन में उठाई गई।
पंजाब और हरियाणा में एक तरह से अपने-अपने हितों को लेकर सियासी तलवारें निकल आई हैं। पंजाब-हरियाणा के मुद्दों को हल करने के​ लिए कई आयोग बने लेकिन विवाद बढ़ता ही गया।
-शाह आयोग
-वेंकटरमैया आयोग
-देसाई आयोग
-इराडी आयोग
राजीव-लोंगोवाल समझौता
अब पुराने इतिहास को खंगाला जा रहा है। ब्यूटीफुल सिटी चंडीगढ़ को लेकर इतिहास सामने आ रहा है। चंडीगढ़ पहले खरड़ तहसील का ​हिस्सा  था। 1966 में पंजाब के विभाजन और  हरियाणा बनते समय शाह आयोग ने पूरी खरड़ तहसील हरियाणा को देने की सिफारिश की थी। लेकिन उस समय अकाली दल के उग्र रुख को देखते हुए तत्कालीन केन्द्र सरकार ने चंडीगढ़ को केन्द्र शासित प्रदेश तो बना दिया लेकिन खरड़ पंजाब को दे दिया । केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने फिर रिपोर्ट में बदलाव करते हुए चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी बनाने का निर्णय ले​ लिया।
अबोहर-फाल्किा के बड़े गांव कंदूखेड़ा को लेकर भी विवाद काफी गहराया रहा। कंदूखेड़ा गांव के लोग पंजाब में शामिल ही नहीं होना चाहते थे। हरियाणा के राजनीतिज्ञ आज तक यह कहते आए हैं कि अगर शाह कमीशन की​ रिपोर्ट लागू कर दी जाती तो विवाद ठहरते ही नहीं। कंदूखेड़ा गांव हिन्दी भाषी गांव था लेकिन इसे पंजाबी भाषी मानकर पंजाब में शामिल कर दिया गया था। गांव के लोगों से न जाने कितने वायदे किए गए थे वो आज तक पूरे नहीं हुए। इसी तरह सतलुज-यमुना लिंक  नहर का मुद्दा भी लटका पड़ा हुआ है। नहर को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए हरियाणा विधानसभा में सात बार प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं। कई अनुबंधों, समझौतों, ट्रब्यूनल के निष्कर्षों और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में भी पानी पर हरियाणा के दावे को बरकरार रखा है। 
2002 में सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल का पानी हरियाणा को मिलना चाहिए  इसका फैसला दे दिया था। दरअसल हरियाणा के हिस्से का नहर का निर्माण कार्य पूरा हो गया था लेकिन पंजाब में अकाली दल ने जल विवाद को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर जमकर राजनीति की थी और नहर को MITTI और पत्थरों से पाट दिया  था। धर्मयुद्ध मोर्चे ने हिंसक रूप ले लिया था। उसके बाद पंजाब की सियासत रक्त रंजित हो गई थी। अब सवाल यह है कि यद्यपि पंजाब और  हरियाणा विधानसभा में प्रस्ताव पारित करके सियासत गर्मायी जा रही है। लेकिन इन प्रस्तावों का कोई संवैधानिक महत्व नहीं है। यह तथ्य भी किसी  से छुपा नहीं है कि चंडीगढ़ का मौजूदा स्वरूप इस तरह हो गया है कि वह किसी राज्य में शामिल होकर आत्मनिर्भर नहीं रह सकता। चंडीगढ़ खूबसूरत शहर जरूर है लेकिन दुधारू गाय नहीं है। चंडीगढ़ खर्च मांगता है और  इस शहर की सांस केन्द्र द्वारा दी जाने वाली ​आर्थिक सहायता से चलती है। केन्द्र शासित होने के बावजूद इस शहर में औद्योगिक क्षेत्रों की जमीन पर होटल बनाए जा रहे हैं। यह वास्तविकता है ​कि चंडीगढ़ से किसी भी राज्य को राजस्व का लाभ नहीं मिल पाएगा। पंजाब की अर्थव्यवस्था काफी खराब है।  सरकार का खजाना खाली है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आर्थिक सहायता मांग रहे हैं।  
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इन सब मुद्दों पर काफी गम्भीर हैं। उनका यह कहना था कि एसवाईएल पर पंजाब से अब बातचीत नहीं और चंडीगढ़ के मुद्दे पर अवमानना का केस दर्ज कराया जाएगा। यह सिद्ध करता है कि  खट्टर ​​बिना राजनीतिक लाग लपेट के हरियाणा के हितों के प्रति गम्भीर हैं। पहली बार मनोहर लाल के प्रस्ताव पर हरियाणा का समूचा विपक्ष उनके साथ खड़ा नजर आया है। विधानसभा में मनोहर लाल ने जिस तरीके से हरियाणा के हितों पर खुलकर बोला है और पंजाब व दिल्ली सरकार को कठघरे में खड़ा किया है उससे उनकी राजनीतिक परिपक्वता झलकती है।
बेहतर यही होगा दोनों राज्य मिल-बैठकर समस्याओं का हल निकालें। भावनात्मक मुद्दों को उछालने की बजाय समझदारी से काम लें। इतिहास बताता है कि भावनात्मक मुद्दे उछालने से पंजाब को कितना आतंकवाद झेलना पड़ा है।
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