Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

खालिस्तान पर कनाडा में सियासत गर्माई

NULL

08:22 AM Mar 04, 2018 IST | Desk Team

NULL

मेहमां जो हमारा होता है, वह जान वे प्यारा होता है, अतिथि देवाे भव: यानी अतिथि हमारे लिए देवता के समान है। भारत में विदेशी मेहमान आते रहते हैं और भारत सरकार उनका पूरा सम्मान-सत्कार करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो प्रोटोकॉल तोड़कर खुद हवाई अड्डे पर जाकर उनको गले लगाते हैं लेकिन अगर कोई विदेशी मेहमान भारत की एकता और अखंडता को चोट पहुंचाने वाले लोगों को अपनी दावतों में बुलाये और उनके साथ चित्र खिंचवाए तो इसे सहन करना मुश्किल होगा।

इसे सहन भी नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करना अपनी कमजोरी का प्रदर्शन करना होता। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडा परिवार समेत भारत आये थे तो उसी दौरान ऐसा कहा जाने लगा था कि जस्टिन ट्रूडो के दौर को भारत में उतनी तवज्जो नहीं दी गई जितनी कि वह अन्य राष्ट्राध्यक्षों को देता रहा है। पंजाब में 1980 के दशक में खालिस्तान के नाम पर अलग देश की मांग को लेकर एक हिंसक आन्दोलन चलाया गया, जिसे पाकिस्तान का पूरा समर्थन प्राप्त था। आतंकवाद के काले दौर में न केवल मेरे परम पूज्य पिता श्री रमेश चन्द्र जी की हत्या की गई ब​िल्क यात्रियों को बसों से उतार कर उनकी पहचान पूछी जाती और हिन्दुओं को एक लाइन में खड़े कर गोलियां मार दी जातीं। भीषण नरसंहार हुए, समूचा पंजाब क्रंदन में डूब गया।

1984 में भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में घुस कर आप्रेशन ब्लू स्टार किया। इसके बाद आतंकवाद का डटकर मुकाबला किया गया। खालिस्तान आन्दोलन कब का दम तोड़ गया लेकिन विदेशों में बसे खालिस्तान समर्थकों की कुछ आवाजें कभी-कभी सुनाई जरूर देती हैं। पाकिस्तान बार-बार ख​ालिस्तान आन्दोलन को पुनर्जीवित करने का प्रयास करता रहता है लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही।खालिस्तान आन्दोलन के दौरान कई खालिस्तानी समर्थक कनाडा और अन्य देशों में चले गये और वहां जाकर शरण ली। ऐसे ही लोगों में शामिल रहा जसपाल अटवाल। वह कभी इंटरनेशनल सिख यूथ फैडरेशन में काम करता था।

इस संगठन को 1980 के दशक में ही कनाडा सरकार ने आतंकी संगठन घोषित किया था। 1986 में पंजाब के पूर्व मंत्री मलकीत सिंह सिद्धू बैंकूवर आईलैंड गये तो अटवाल ने उन पर जानलेवा हमला किया था। इस केस में अटवाल को दोषी करार दिया गया था। भारत में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की दावतों के दौरान अटवाल को न्यौता दिया जाता है और ट्रूडो और उनकी पत्नी उनके साथ तस्वीरें ​खिंचवाते हैं तो भारत की प्रतिक्रिया कैसी हो सकती है, इस बारे में कनाडा के दूतावास को समझ लेना चाहिए था। विवाद खड़ा होने पर जस्टिन ट्रूडो ने अटवाल का दिल्ली दावत का न्यौता रद्द कर दिया और सफाई दी कि वह आफिशियल डेलिगेशन का हिस्सा नहीं था। कनाडाई सांसद ने उसे व्यक्तिगत रूप से बुलाया ​था।

विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जस्टिन ट्रूडो को गले लगाया, उनसे बातचीत की, समझौते भी हुए। खालिस्तान के मुद्दे पर भारत ने अपनी चिंतायें भी प्रकट कीं। जस्टिन ट्रूडो ने अखंड भारत का समर्थन किया और चले गये। बात यहां तक सीमित रहती तो ठीक थी लेकिन कनाडा पहुंचने के बाद वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को ट्रूडो की दावत में जसपाल अटवाल की मौजूदगी में भारतीय साजिश नजर आने लगी। उसने ट्रूडो के दौरे के दौरान अटवाल को वीजा देने की जिम्मेदारी भारत सरकार पर डाल दी, जिसका ट्रूडो ने समर्थन भी किया लेकिन ट्रूडो इस मामले पर अपने घर में घिर गये।

भारत ने स्पष्ट कर दिया कि मुम्बई में अटवाल की मौजूदगी या नई दिल्ली में डिनर में उसे न्यौता देने में भारत का कोई सम्बन्ध नहीं। जहां तक उसके वीजा का सवाल है, यह पता लगायेंगे कि ऐसा कैसे हुआ। खालिस्तान आन्दोलन के दौरान भारत सरकार ने कई सिखों को ब्लैक लिस्टेड कर रखा था। बाद में कई नामों को ब्लैक लिस्ट से हटाया गया। ऐसा भटके हुए युवाओं काे राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने के लिये किया गया। कनाडा में विपक्ष ने जस्टिन ट्रूडो पर सवालों की बौछार कर दी है और उसने खालिस्तान समर्थकों की निंदा करते हुए भारत की एकता के समर्थन में संसद में प्रस्ताव लाने का ऐलान कर दिया है। प्रस्ताव इस आशय का होगा कि संसद कनाडाई सिखों और भारतीय मूल के कनाडाई लोगों के योगदान की अ​हमियत समझती है लेकिन आतंकी गतिविधियों और खालिस्तानी अतिवाद का विरोध करती है।

साथ ही उन लोगों का विरोध करती है जिन्होंने आजाद खालिस्तान की मांग के लिए हिंसा का सहारा लिया हो। खालिस्तान की मूवमेंट भारत में कब का दम तोड़ चुकी है तो वहीं विदेशों में सिर्फ प्रोपेगंडा चल रहा है। ऐसा ही कनाडा में भी हो रहा है। खालिस्तान के नाम पर नेतागिरी चमकाई जा रही है और सब अपनी राजनीतिक दुकानें सजा रहे हैं। पृथकतावादी सोच के कई गुटों का गुरुघरों पर नियंत्रण है। कनाडा में वैशाखी हो या कोई और मौका, आयोजनों में कनाडा के राजनीतिक दलों के नेता भाग लेते हैं जहां खालिस्तान के नारे लगते हैं। सवाल यह है कि जब अलग खालिस्तान का मुद्दा भारत में नहीं रहा तो वो कनाडा में कैसे जिंदा हो जाता है।

कनाडा में बसे भारतीय सिख ​आर्थिक रूप से भी मजबूत हैं और राजनी​ितक रूप से भी। कनाडा में 12 लाख सिख एक शक्तिशाली वोट बैंक बन चुका है। कनाडा की सरकार में 5 मंत्री सिख हैं। जस्टिन ट्रूडो और सरकार के 5 सिख मंत्रियों पर खालिस्तान समर्थक होने के आरोप लगते रहे हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते जस्टिन ट्रूडो सरकार को खालिस्तान मूवमेंट को हवा नहीं देनी चाहिए जिसका सीधा सम्बन्ध भारत की एकता आैर अखंडता से है।

इसी वर्ष जनवरी में कनाडा के ओंटारियो प्रांत में सिख समुदाय ने चौंकाने वाला फैसला किया। वहां के गुरुघरों में भारतीय अधिकारियों के प्रवेश को प्रतिबंधित किया गया। भारतीय दूूूतावास और भारत के सरकारी अधिकारियों पर कनाडाई सिख जीवन में दखल देने का आरोप लगाया गया। कनाडा में हो रही ऐसी हरकतों पर भारत खामोश नहीं रह सकता। फिलहाल खालिस्तान पर कनाडा की सियासत गर्मा गई है। भारत काे अपने हितों की रक्षा के लिये कूटनीतिक स्तर पर हर संभव कार्रवाई करनी होगी। भारत-कनाडा संबन्धों में खटास तो आ ही चुकी है।

Advertisement
Advertisement
Next Article