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चुनाव आयोग की ‘पावर’

04:06 AM Mar 20, 2024 IST | Aditya Chopra
चुनाव आयोग की ‘पावर’

आम चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा के बाद प्रशासन के कामकाज पर चुनाव आयोग की नजर शुरू हो जाती है। सरकार की मशीनरी चुनाव आयोग के प्रति जवाबदेह हो जाती है। 26 जनवरी, 1950 को भारत में गणतंत्र लागू होने से एक दिन पहले ही भारतीय निर्वाचन आयोग की स्थापना कर दी गई थी। यह आयोग भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली एक शीर्ष स्वायत्त संस्था है। समय-समय पर चुनाव आयोग की संरचना में बदलाव किए गए। चुनाव संबंधी नियमों, कानूनों, फैसलों इत्यादि के मामलों में चुनाव आयोग केवल संविधान द्वारा स्थापित निर्वाचन विधि के अधीन होता है। दुनया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी पर्व चुनाव आयोग के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। लम्बे समय तक चलने वाले चुनावी मौसम में चुनाव आयोग को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुनिश्चित करने के​ लिए अनेक कदम उठाने पड़ते हैं। एक छोटी सी चूक भी चुनाव आयोग की साख पर धब्बा लगा देती है। इसलिए आयोग का काम तलवार की धार पर चलने के समान होता है। विपक्ष चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल उठाता रहा है।
चुनाव आयोग किसी भी चुनाव की घोषणा के साथ ही उस चुनाव से संबंधित सीमाओं के भीतर आदर्श आचार संहिता लागू करने का अधिकार रखता है। संविधान में चुनाव आचार्य संहिता का उल्लेख नहीं है लेकिन निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए आयोग इसे लागू करता है। इसमें चुनाव प्रचार, प्रचार पर खर्च होने वाले पैसे, भाषण में संयम से लेकर उनके प्रचार जत्थे तक पर नजर रखी जाती है। इसी के तहत विजयी उम्मीदवारों की सूची राज्यों को सौंपने का भी कार्य आता है। यानी कि चुनाव आयोग ने अपने कामकाज के लिए अपनी एक गाइडलाइन बना रखी है। इसके उल्लंघन पर चुनाव आयोग उचित कार्रवाई करता है। इस दौरान सरकारी मशीनरी उसके साथ तालमेल पर काम करती है। राज्य सरकार या सरकार कोई ऐसा काम नहीं कर सकती, जो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करता हो, ऐसा होने पर चुनाव आयोग तुरंत इस पर रोक लगा देता है। कुछ स्थितियों में चुनाव आयोग राज्य में अधिकारियों के तबादले भी कर सकता है।
चुनाव आयोग ने 6 राज्यों के गृह सचिवों के कार्यकारी अधिकारी छीन लिए हैं। यह सभी गृह सचिव लोकसभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया से दूर रहेंगे। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक राजीव कुमार को भी चुनाव प्रक्रिया से दूर कर ​िदया है। जिन राज्यों के गृह सचिव हटाए गए हैं, उनमें गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल और उत्तराखंड शामिल हैं। यह राज्य केवल विपक्ष शासित राज्य नहीं हैं बल्कि भाजपा शासित राज्य भी हैं। चुनाव आयोग ने बृहन्मुम्बई नगर निगम के आयुक्त इकबाल सिंह चहल समेत दो अन्य आयुक्तों को भी हटा दिया है। वहीं मिजोरम और हिमाचल के जीएडी सचिव को भी हटाया गया है। प्रथम दृष्टि में इन अधिकारियों को हटाए जाने का कारण एक से ज्यादा पदों पर रहना नजर आता है लेकिन इनमें से कुछ अफसरों पर आरोप भी लगते हैं और कुछ के राज्य में मौजूदा मंत्रियों से अनबन की खबरें भी आती हैं। जहां तक पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेेशक राजीव कुमार के हटाए जाने का मामला है उन पर तो विपक्ष सीधे-सीधे तृणमूल कांग्रेस के कैडर के तौर पर काम करने का आरोप लगाता रहा है। 2016 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले विपक्ष ने डीजीपी राजीव कुमार पर फोन टैपिंग का आरोप लगाया था। उस वक्त भी चुनाव आयोग ने पद से हटाया था। फरवरी 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले शारदा चिट फंड घोटाले के आरोप में सीबीआई ने कुमार के घर बिना सर्च वारंट रेड डाली थी। जिस पर ममता ने 70 घंटे धरना दिया था। लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले एक बार फिर राजीव कुमार अपने पद से हटाए गए। इस बार शाहजहां शेख की हाई कोर्ट के दबाव के बाद देरी से हुई गिरफ्तारी और सीबीआई को उसे सौंपने में अड़ियल रवैया वजह बना है।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक्शन चुनावों में समान अवसर सुनिश्चित कराने के​ लिए किया गया है। चुनाव आयोग के लिए चुनाव प्रक्रिया को न सिर्फ निष्पक्ष बनाए रखना बल्कि उसे ऐसा दिखना भी सुनिश्चित करना एक मुश्किल भरा काम है। धन, बल और बाहुबल पर अंकुश लगाना उसका ही काम है। विपक्षी नेताओं ने इतने लम्बे चुनाव कार्क्रम की जरूरत पर सवाल उठाए हैं। पश्चिम बंगाल का चुनाव 7 चरणों में फैलाए जाने पर भी चुनाव आयोग की आलोचना की जा रही है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ नहीं कराने पा भी विपक्ष उस पर निशाने साध रहा है। विपक्ष का आरोप है कि जब मणिपुर और जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव कराए जा सकते हैं तो जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव क्यों नहीं? चुनाव आयोग पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि विपक्षी नेताओं पर तो वह तुरंत एक्शन लेता है, जबकि सत्तारूढ़ नेताओं पर खामोशी धारण कर लेता है। देखना है ​िक चुनाव आयोग कितना निष्पक्ष होकर काम करता है। उम्मीद है कि भारत में जनादेश का यह उत्सव विवेकपूर्ण होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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