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Premanand Ji Maharaj Quotes: प्रेमानंद महाराज के ये 12 अनमोल विचार अपने जीवन में उतार लें, बदल जाएगी आपकी तकदीर

04:58 PM Sep 14, 2025 IST | Bhawana Rawat

Premanand Ji Maharaj Quotes: वृंदावन के प्रेमानंद महाराज भक्तों मवे काफी लोकप्रिय हैं। देश-विदेश के कई सेलिब्रिटी और क्रिकेटर उनकी भक्ति में शामिल हैं। बहुत दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने के लिए वृंदावन पहुंचते हैं और जीवन की परेशानियों पर सलाह मांगते हैं। प्रेमानंद महाराज के विचार जीवन में परेशानियों को हल करने और जीवन की सच्चाई को समझने का मार्ग बताते हैं। उनके अनमोल विचार जीवन में सही राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं। आइए जानते हैं प्रेमानंद महाराज के अनमोल विचार, जो आप अगर अपनी जीवन में उतार लें तो तकदीर बदल जाएगी।

प्रेमानंद महाराज के विचार (Premanand Ji Maharaj Quotes)

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1. पाप कर्मों का फल ही नकारात्मक विचारों के रूप में आता है। जब हम गलत कार्य करते हैं तो उसका परिणाम मन में नकारात्मकता और बेचैनी के रूप में सामने आता है।

2. कोई भी व्यक्ति तुम्हें दुख नहीं देता है। यह तुम्हारे कर्मों का फल होता है, जो उस व्यक्ति के द्वारा मिलता है। इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।

3. मन स्वत: भगवान में नहीं लगेगा, हमें प्रयास करना ही पड़ेगा। साधना और भक्ति के लिए निरंतर प्रयास जरूरी है, तभी मन ईश्वर में लग पाता है।

4. आप जैसे भी हो स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर दो। हमारा यह जीवन उनका दिया हुआ है। आज हमारे पास जितने भी संसाधन हैं, वो सभी ईश्वर की कृपा है। हम जिसका भोग कर रहे है, यह सबकुछ ईश्वर का है। ऐसे विचार के साथ व्यक्ति को कर्म करना चाहिए।

5. आपका अपमान करने वाला आपके पाप नष्ट कर रहा है, बस सहन कर लीजिए। अपमान को धैर्य से सहन करना भी एक प्रकार की साधना है।

6. प्रेम सबसे बड़ा धर्म है, इसके जरिए व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़ता है। यही नहीं प्रेम ईश्वर की भक्ति करने की प्रेरणा भी देता है।

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7. जिसे गुरु स्वीकार कर लें, उसे स्वयं भगवान भी अस्वीकार नहीं कर सकते। गुरु की कृपा सबसे बड़ी शक्ति है, उनके आशीर्वाद से जीवन में असंभव भी संभव हो जाता है।

8. सत्य को अपनाने से न केवल हमारी आत्मा को शांति मिलती है बल्कि यह हमें सही मार्ग पर भी चलने की प्रेरणा देता है।

9. फल की इच्छा से रहित होकर की गई सेवा ही सच्चा दान है। निस्वार्थ भाव से किया गया दान ही सच्चे पुण्य का कारक होता है।

10. आहार और आचरण दोनों का शुद्ध होना अति आवश्यक है। जैसे भोजन शरीर को प्रभावित करता है, वैसे ही आचरण मन और आत्मा को प्रभावित करता है।

11. कर्म किए बिना लक्ष्य तक नहीं पहुँचा जा सकता। भाग्य पर निर्भर रहने के बजाय ईमानदारी और लगन से अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करें।

12. मन अपने आप भगवान में नहीं लगेगा। इसके लिए प्रयास करना ही पड़ेगा।

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