राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति मुर्मू ने किए 4 सदस्यों को नामित, उज्ज्वल निकम और हर्षवर्धन श्रृंगला शामिल
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए राज्यसभा के लिए चार नए सदस्यों को नामित किया है। ये नियुक्तियाँ राज्यसभा में विशेषज्ञता और विविधता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई हैं। नामित सदस्यों में शामिल हैं:
उज्ज्वल देवराव निकम – प्रख्यात सरकारी वकील
हर्षवर्धन श्रृंगला – पूर्व विदेश सचिव और वरिष्ठ राजनयिक
सी. सदानंदन मास्टर – सामाजिक कार्यकर्ता
डॉ. मीनाक्षी जैन – इतिहासकार और शिक्षाविद
यह घोषणा 12 जुलाई 2025 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना (S.O. 3196(E)) के माध्यम से की गई।
किस आधार पर होती है नामांकन?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वे कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा या अन्य विशिष्ट क्षेत्रों में योगदान देने वाले व्यक्तियों को राज्यसभा के लिए नामित कर सकते हैं। इन नियुक्तियों का उद्देश्य संसद में ऐसे विशेषज्ञों की भागीदारी सुनिश्चित करना है जो विधायी चर्चाओं में गहराई और दृष्टिकोण का विस्तार करें।
कौन हैं ये नए राज्यसभा सदस्य?
उज्ज्वल निकम
देश के चर्चित और संवेदनशील मामलों में सरकार की ओर से मुकदमा लड़ने वाले वरिष्ठ वकील। उन्हें विशेष रूप से 26/11 मुंबई आतंकी हमले में अजमल कसाब के खिलाफ मजबूती से केस लड़ने और सजा-ए-मौत दिलवाने के लिए जाना जाता है। उनके पास आतंकवाद और संगठित अपराध से जुड़े मामलों में वर्षों का अनुभव है।
हर्षवर्धन श्रृंगला
भारत के पूर्व विदेश सचिव रहे हैं और अमेरिका व बांग्लादेश जैसे महत्वपूर्ण देशों में भारत के राजदूत के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं। उनकी गहरी कूटनीतिक समझ और विदेश नीति पर मजबूत पकड़ को देखते हुए यह नामांकन किया गया है।
सी. सदानंदन मास्टर
केरल के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनका कार्य विशेष रूप से वंचित वर्गों के उत्थान और जागरूकता के लिए रहा है।
डॉ. मीनाक्षी जैन
प्रसिद्ध इतिहासकार और शिक्षाविद, जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर अपने शोध के लिए जानी जाती हैं। उनकी किताबें और व्याख्यान समाज में ऐतिहासिक चेतना को सशक्त बनाने का काम करते हैं।
क्या है नामित सदस्यों की भूमिका?
राज्यसभा के नामित सदस्य किसी राजनीतिक दल से नहीं होते, लेकिन वे अपने क्षेत्र की विशेषज्ञता और अनुभव से संसद में गहन विमर्श में भाग लेते हैं। इनका योगदान कानून निर्माण, नीति सुझाव और राष्ट्रीय मुद्दों पर संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करने में अहम होता है।