For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

प्रधानमंत्री मोदी ने सिखों की एक और मांग पूरी की

01:41 AM Mar 14, 2024 IST | Shera Rajput
प्रधानमंत्री मोदी ने सिखों की एक और मांग पूरी की

अफगानिस्तान से भारत में आकर बसे काबुली सिखों को इतने वर्ष बीतने के पश्चात् भी भारतीय नागरिकता ना मिलने से उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। जब 2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अफगानिस्तान सहित दूसरे देशों से विस्थापित होकर आए हिन्दू सिखों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का आश्वासन दिया था। 2016 में पहली बार इसे लोक सभा में पारित भी कर दिया गया था मगर राज्य सभा में जाकर यह रुक गया था क्यांेकि इसमें भ्रम यह पैदा किया जा रहा था कि नागरिकता कानून लागू होने के बाद भारत में रह रहे मुस्लिम समुदाय के लोगों को भारत छोड़ना पड़ सकता है। 2019 में इसे पुनः पेश किया गया जिसमें दोनों सदनों में पास होने के बाद 2020 में राष्ट्रपति से मिली मंजूरी के बाद इस पर कानून बन गया और आज इसे लागू कर दिया गया है। नागरिकता संशोधन कानून के तहत 2014 से पहले भारत में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।
भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने इस फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का धन्यवाद किया है। दिल्ली कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका और महासचिव जगदीप सिंह काहलो ने सरकार का आभार प्रकट किया है क्योंकि इससे सबसे अधिक लाभ सिख शरणार्थियों को ही होगा। सिख नेता मनजीत सिंह जीके ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए दावा किया कि उनके दिल्ली कमेटी का प्रधान रहते इस मांग को देश के प्रधानमंत्री के समक्ष उठाया गया था। शाहीनबाग घटनाक्रम के बाद इस कानून के विरोध में खड़े नेता भी इसके लागू होने पर खुशियां मना रहे हैं जिससे उनके दोहरे किरदार का पता चलता है।
सिखों को गुरु ग्रन्थ साहिब का अपमान बर्दाश्त नहीं
सिखों का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ जिसे संसार भर में बसते सिखों के द्वारा ही नहीं बल्कि भारतीय संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट ने भी जीवित गुरु का दर्जा दिया हुआ है जो शायद संसार के किसी और ग्रन्थ को प्राप्त नहीं है। गुरु ग्रन्थ साहिब की संपादना पांचवें सिख गुरु अर्जुन देव जी के द्वारा की गई और बाद में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सम्पूर्ण करते हुए इसमें नौवें गुरु तेग बहादुर जी की बाणी भी दर्ज की और इस संसार से जाने से पहले गद्दी गुरु ग्रन्थ साहिब जी को सौंप सिखों को उन्हें ही गुरु मानने का आदेश जारी किया। यह ग्रन्थ दूसरे ग्रन्थों से इसलिए भी अलग है क्योंकि अन्य ग्रन्थों को अवतारों के इस संसार से जाने के बाद उनके अनुयायियों के द्वारा लिखा गया है पर गुरु ग्रन्थ साहिब को स्वयं गुरु साहिबान के द्वारा अपने जीवनकाल में संपन्न किया गया है। गुरुद्वारांे में रोज़ाना सुबह अमृत वेले गुरु ग्रन्थ साहिब का प्रकाश और रात्रि में विश्राम करवाया जाता है। मगर ना जाने क्यों आए दिन कुछ शरारती अंसरों के द्वारा गुरु ग्रन्थ साहिब की बेदबी की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। जबकि गुरु ग्रन्थ साहिब में दूसरे धर्म के भक्त, संत महापुरुषों की बाणी भी दर्ज है। डेरावादियों के द्वारा जनता को अपनी ओर खींचने के लिए गुरु ग्रन्थ साहिब की बाणी को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है यां फिर गुरु ग्रन्थ साहिब की बाणी लेकर ही दूसरे लोगों के साथ-साथ सिख समुदाय के लोगों को भी अपनी ओर खींचा जाता है।
बीते दिनों एक स्वामी द्वारा एक पुस्तक ‘‘मयखाना’’ लिख कर उसे श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मयखाना का नाम दिया गया जिसके बाद सिख समुदाय में रोष उत्पन्न होना स्वाभाविक था। सिख ब्रदर्सहुड इंटरनेशनल के द्वारा इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। धर्म प्रचार कमेटी के चेयरमैन जसप्रीत सिंह करमसर के द्वारा दावा किया गया कि स्वामी ने समूचे सिख पंथ से इस गलती के लिए माफी मांग ली है और उनके अनुयायियों के द्वारा गुरुद्वारा नानक प्याऊ साहिब में जाकर गलती मानते हुए अरदास और प्रशादी भी करवाया गया है। माफीनामे की कापी भी धर्म प्रचार कमेटी को सौंपी गई है। सिख ब्रदर्सहुड संस्था के मुखी अमनजीत सिंह बख्शी एवं गुणजीत सिंह बख्शी का मानना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है स्वयं को प्रख्यात करने और झूठी शोहरत हासिल करने के लिए आए दिन इन डेरावादियों के द्वारा गुरु ग्रन्थ साहिब यां सिख गुरुओं का अपमान किया जाता है और फिर सिख समुदाय के रोष को देखते हुए गलती मानकर भविष्य में ना करने का आश्वासन दिया जाता है।
सिखों का नया साल
हमारे देश में आज भी नया साल 1 जनवरी को मनाया जाता है जो कि वास्तव में अंग्रेजों का नया साल है। हिन्दू समाज का नया साल चैत्र मास के पहले नवरात्र से शुरू होता है तो वहीं सिखों का नया साल 1 चैत्र भाव 14 मार्च को आता है। मगर अफसोस इस बात का है कि बहुत कम लोग ही इससे वाकिफ हैं। सिखों के बड़े बुजुर्ग भी आज तक अंग्रेजी कैलण्डर के अनुसार ही नव वर्ष मनाते आए हैं यां फिर विक्रमी संवत् के हिसाब से दिन त्यौहार मनाते आ रहे हैं। 1998 में पाल सिंह पूरेवाल के द्वारा नानकशाही कैलेण्डर तैयार किया गया जिसे उन्होंने सिखों का कैलेण्डर बताया। 1999 में शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी ने लागू भी कर दिया। मगर सिख समाज में ही उस पर सहमति नहीं बन सकी। जिसके बाद 2003 में उसमें बदलाव करके उसे फिर से लागू किया गया जिसके तहत गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व, होला-मोहल्ला सहित कुछ पर्व तो विक्रमी तिथियों के हिसाब से ही रखे गये, इस पर भी समाज में मतभेद बने रहे जिसके चलते मामला श्री अकाल तख्त साहिब पर भेजा गया जो आज तक लंबित है।
श्री अकाल तख्त साहिब पर सिखों की निगाहें टिकी हैं कि वहां से इस सम्बन्ध में कोई दिशा-निर्देश आ जाए जिसके तहत समूचा सिख पंथ किसी एक कैलेंडर को अपना सके। सिख बुद्धिजीवियों की राय में श्री अकाल तख्त साहिब को इसमें बनते बदलाव करके इसे लागू कर देना चाहिए पर शायद ऐसा उन लोगों के लिए संभव नहीं है जिनके प्रभाव तले श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार कार्यरत हैं।
अगर सिख समाज की बेहतरी के लिए कोई फैसला दे दिया जाता है तो इससे उनके बहु गिनती वोट बैंक नाराज हो सकता है जो वह कभी नहीं चाहेंगे। इसलिए ऐसा लगता है कि जब तक शिरोमणि कमेटी बादल परिवार के प्रभाव में रहेगी यह मामला ऐसे ही लटकता रहेगा।

- सुदीप सिंह 

Advertisement
Advertisement
Author Image

Shera Rajput

View all posts

Advertisement
×