Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

देश को नई पहचान देते प्रधानमंत्री मोदी

05:30 AM Sep 24, 2025 IST | Prabhu Chawla

भारत की विकास की कहानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरीखे लोग कम ही होंगे, जिन्होंने दीर्घजीविता को चमक के साथ, सत्ता को दृढ़ता के साथ और सहनशीलता को प्रभावी तरीके से जोड़कर रखा हो। वडनगर जैसे एक छोटे शहर से नई दिल्ली में सत्ता के शीर्ष तक उनका सफर वस्तुत: गुमनामी से शिखर महत्व तक की यात्रा है। यह लंबी यात्रा सिर्फ उनके करियर के बारे में नहीं बताती, बल्कि इसमें करिश्मा, इच्छाशक्ति और आत्मनियंत्रण का दुर्लभ संयोग भी है। आरएसएस उनके वैचारिक अभिभावक हैं तथा आध्यात्मिक तौर पर वह भारत माता द्वारा पोषित हैं। हिंदुत्व के वैचारिक सपने को दूसरे किसी नेता ने इतनी स्पष्टता से महसूस नहीं किया। हाल में ही 75 साल के हुए मोदी ने अपने दस साल से अधिक के प्रधानमंत्री काल में जो कुछ हासिल किया है, उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रीगण उसे दशकों में भी हासिल नहीं कर पाये थे। मोदी ने भारत के सांस्कृतिक और संवैधानिक नक्शे को नया रूप दिया है। उन्होंने भव्य राम मंदिर का निर्माण कराया, तीन तलाक को आपराधिक घोषित करने को जहां लैंगिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया गया, वहीं यह पर्सनल लॉ में सुधार की उनकी प्रतिबद्धता के बारे में भी बताता है। पाठ्यक्रम सुधार में पुस्तकीय बदलाव को राष्ट्रवादी विमर्श से जोड़ा गया। ऐसे ही, काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुनरुद्धार को धर्म और आधुनिकता के सम्मिश्रण के तौर पर देखा जा सकता है।

मोदी ने आस्था और राजनीति को अभिन्न बना दिया है। बतौर प्रधानमंत्री, उन्होंने लोगों की पुरानी आकांक्षाओं को अपनी सरकार की नीति बनाया। इस प्रक्रिया में उन्होंने भारतीय राष्ट्र राज्य को नया आकार ही नहीं दिया, बल्कि भारत की सभ्यतागत पहचान को संरक्षित करने का भी काम किया। राजीव गांधी के बाद वह देश के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री हैं और दो दशक से भी अधिक के अपने निर्विघ्न सत्ता काल में- पहले गुजरात के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री, फिर एक दशक से अधिक समय से देश के प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित-मोदी जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले व्यक्ति हैं। अपने अनेक पूर्ववर्तियों के विपरीत मोदी ने अपनी खास छवि निर्मित की है- यह छवि अनुशासित, दृढ़ इच्छाशक्ति से पूर्ण तथा असाधारण ऊर्जा से लैस नेता की है। राजनेताओं की बदलती छवि के बीच उनका सामान्य रहन-सहन, निरंतर कर्म करने की प्रवृत्ति और संवाद में महारत उन्हें दूसरे राजनेताओं से बहुत अलग करती है। मोदी प्रतीकात्मकता में विश्वास करते हैं। हालांकि वह संख्या, लक्ष्य और नीति को रणनीति में बदलने की क्षमता पर भी भरोसा करते हैं।

नरेंद्र मोदी कोई सामान्य प्रशासक नहीं हैं। उनमें सांख्यिकी को प्रतीकों में, अंकों को सपनों में और संख्या को राष्ट्रीय विमर्श में बदल देने का माद्दा है। पीएम उज्ज्वला योजना ने आठ करोड़ परिवारों को गैस कनेक्शन देने का वादा कर ग्रामीण महिलाओं का जीवन बदल दिया। जन-धन योजना के जरिये 50 करोड़ बैंक खाते खोले जाने का वैश्विक रिकॉर्ड बना। उनके नेतृत्व में स्वच्छ भारत, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया, खेलो इंडिया जैसी हर पहल नवाचार बन गयी। उन्होंने स्वच्छता को पवित्रता में, उद्यमिता को धर्म प्रचार में और खेल को भावना में बदला है। पौराणिक संदर्भों में कहें, तो मोदी वह कर्त्तव्यपरायण पुत्र हैं, जिन्होंने भारत माता के सिद्धांतों को दूसरी तमाम चीजों से ऊपर रखा है। लोगों को एकजुट करने में नारे उनके सबसे प्रभावी उपकरण हैं। जटिल नीतियों को सूत्रवाक्यों के जरिये सरल बनाकर वह ऐसा माहौल रचते हैं, जिसका आकर्षण जाति, वर्ग और क्षेत्र से परे होता है। भारत को पांच ट्रिलियन यानी 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का उनका स्वप्न यद्यपि कोरोना के झटकों के कारण बाधित हुआ है, पर यह अब भी उनके आर्थिक नजरिये का पैमाना बना हुआ है। आत्मविश्वास उनकी विदेश नीति का मूलमंत्र है। भारत आज सिर्फ एक आधुनिक शक्ति नहीं है, यह एक प्राचीन सभ्यता है जो अपनी वैश्विक भूमिका निभाने का दावा कर रही है।

अलबत्ता मोदी के नेतृत्व में निर्णय लेने की प्रक्रिया जिस आक्रामक तरीके से केंद्रीकृत हुई है, उसकी तुलना सिर्फ इंदिरा गांधी के तौर-तरीकों से ही की जा सकती है। मंत्रालय और पार्टी कार्यकर्ता दिशा निर्देश के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर देखते हैं। इससे योजनाओं के क्रियान्वयन में बेशक तेजी आयी है, पर सांस्थानिक स्वायत्तता का क्षरण हुआ है, ये कमियां शासन चलाने के मोदी के केंद्रीकृत तरीके के कारण पैदा हुई हैं। नियंत्रण और रफ्तार पर पूरी तरह निर्भर रहने के कारण इसमें सुधार की गुंजाइश न के बराबर रहती है। ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ का नारा सिद्धांत में है लेकिन व्यवहारत: इसमें विरोधाभास दिखता है। अलबत्ता मोदी ने अच्छे अर्थशास्त्र को अच्छी राजनीति में तब्दील किया है। पहले की सरकारों ने चुनावी पराजय की आशंका से बड़े व्यापारिक सुधारों की दिशा में कदम उठाने में हिचकिचाहट दिखाई, पर मोदी ने इस दिशा में निर्णायक कदम उठाये। बीमा और रक्षा क्षेत्र में उन्होंने 100 फीसदी विदेशी निवेश का साहसी फैसला लिया, उनके दौर में रिकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया और वैश्विक ईज ऑफ डुइंग बिजनेस सूचकांक में भारत उभरता सितारा बना। एक्सप्रेस-वे, बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर भारी निवेश मोदी के इस नजरिये के बारे में बताता है कि बुनियादी ढांचा आर्थिक विकास की रीढ़ है।

इन सबके बावजूद निष्पक्ष इतिहास यह प्रश्न पूछेगा : क्या उनके दौर में सबसे गरीब लोग अपनी गरीबी से उबर पाये हैं? क्या उनके प्रशासन में सत्ता और बहुलतावाद में, शासन और मेल-जोल में, वैभव और वास्तविक न्याय में समन्वय बन पाया है? श्रीराम का यश उनके राज्यारोहण के कारण नहीं, उनकी करुणा भावना के कारण है, उनके विजय के कारण नहीं, उनकी अंतश्चेतना के कारण है। ठीक इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी की महिमा का आकलन सिर्फ मंदिर निर्माण या नारों से नहीं, बल्कि इससे भी होगा कि अपने कार्यकाल में भारत को वास्तविक अर्थ में एक धर्मनिरपेक्ष, बहुलतावादी, सहिष्णु, समृद्ध, शांतिपूर्ण, आत्मविश्वासी और दयालु गणतंत्र बनाने में उनका योगदान कितना रहा।

Advertisement
Advertisement
Next Article