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प्रियंका गांधी लोकसभा में

हाथ में संविधान की पुस्तक लेकर श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने जिस तरह लोकसभा की सदस्यता की शपथ ली है उसका सन्देश यही है कि देश की सबसे बड़ी लोगों द्वारा चुनी गई पंचायत से सिर्फ गांधी और अम्बेडकर के सपनों के भारत का ही निर्माण करेगी…

10:26 AM Nov 29, 2024 IST | Aditya Chopra

हाथ में संविधान की पुस्तक लेकर श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने जिस तरह लोकसभा की सदस्यता की शपथ ली है उसका सन्देश यही है कि देश की सबसे बड़ी लोगों द्वारा चुनी गई पंचायत से सिर्फ गांधी और अम्बेडकर के सपनों के भारत का ही निर्माण करेगी…

हाथ में संविधान की पुस्तक लेकर श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने जिस तरह लोकसभा की सदस्यता की शपथ ली है उसका सन्देश यही है कि देश की सबसे बड़ी लोगों द्वारा चुनी गई पंचायत से सिर्फ गांधी और अम्बेडकर के सपनों के भारत का ही निर्माण करेगी । महात्मा गांधी जब अंग्रेजों की दासता से मुल्क को मुक्त कराने के लिए अहिंसक संघर्ष कर रहे थे तो उनके सामने स्वतन्त्र भारत का लक्ष्य स्पष्ट था जिसे वह कांग्रेस पार्टी के मुख पत्र ‘हरिजन’ में यदा-कदा लिखते रहते थे। इसके समानान्तर डा. अम्बेडकर भारत से छुआछूत मिटाने और दलितों को बराबर के मानवीय अधिकार दिलाने के लिए जन आन्दोलन चला रहे थे। इस प्रकार दोनों का लक्ष्य स्वतन्त्र भारत में हर आदमी को बराबर के अधिकार दिलाने का था। गांधी हरिजन में प्रायः आम हिन्दोस्तानी के आत्मसम्मान व गरिमा का जिक्र करते थे और आजाद हिन्दोस्तान में सभी धर्मों व जातियों और वर्गों के स्त्री-पुरुषों को बराबर के अधिकार प्राप्त होने का फलसफा पेश करते थे। अम्बेडकर इस काम को ही करने के लिए दलितों में जन जागरण का मन्त्र फूंक रहे थे। अतः भारत के संविधान के रूप में देश की पांच हजार साल पुरानी सभ्यता के दौरान पहली बार एेसी पुस्तक सामने आयी जिसमें हर वर्ण व वर्ग के आदमी को बराबरी पर रखा गया।

वास्तव में संविधान के रूप में भारत में एेसी मूक क्रान्ति हुई जिसमें हर सम्प्रदाय व वर्ग के व्यक्ति को एक वोट के अधिकार से सम्पन्न किया गया और उसे स्वतन्त्र भारत का स्वयंभू मतदाता घोषित किया गया। प्रियंका गांधी वाड्रा संविधान की इसी मूल भावना को जागृत करने का अभियान चलाये हुए हैं और सामान्य भाषा में लोगों को समझा रही हैं कि भारत के मतदाता जागरूक बनें। संविधान ने उन्हें जो सार्वभौमिक अधिकार दिया है उसका इस्तेमाल वह स्वयं की संवैधानिक शक्ति को जागृत करते हुए करें। यह शक्ति एेसी है जिसका लोकतन्त्र की व्यवस्था में न तो कोई ‘मूल्य’ हो सकता है और न कोई ‘मोल’ हो सकता है। भारत के एक गरीब मजदूर से लेकर रईसे-आजम तक के व्यक्ति को यह अमूल्य और अनमोल अधिकार संविधान ही देता है। पिछले एक दशक से प्रियंका गांधी कांग्रेस के उन मूल सिद्धान्तों को जन विमर्श में लाने का भरसक प्रयत्न कर रही हैं जिनका सम्बन्ध उनकी दैनिक जिन्दगी से रहता है और जिनसे कोई भी राष्ट्र मजबूत बनता है क्योंकि कोई भी देश इसमें रहने वाले लोगों से बनता है और जब इसके लोग सशक्त व मजबूत होंगे तो वह देश भी शक्तिवान व मजबूत बनेगा।

देश की वर्तमान राजनीति जिस तर्ज पर चल रही है उसमें व्यक्ति का धर्म आक्रामक भूमिका निभाता नजर आ रहा है परन्तु लोकतन्त्र की यह पहली शर्त होती है कि व्यक्ति की समस्याओं का हल मानवीय दायरे में रखकर इस प्रकार किया जाये कि वह सर्वमान्यता प्राप्त करे। इसीलिए सरकार जो भी कल्याणकारी योजना बनाती है उसमें व्यक्ति के धर्म को देखकर नहीं बल्कि उसकी हैसियत देखकर उसे लागू किया जाता है। प्रियंका गांधी कुछ और नहीं कह रहीं बल्कि सिर्फ इतना ही समझा रही हैं कि लोकतन्त्र में लोक कल्याणकारी राज का होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि भारत की संसदीय व्यवस्था में सरकार का असली मालिक अन्ततः आम मतदाता ही होता है और जो भी सरकार बनती है वह उसी के एक वोट की ताकत से बनती है। यह व्यवस्था धीरे-धीरे गैर बराबरी हर स्तर पर समाप्त करती जाती है और जिस लोकतन्त्र में यह गैर बराबरी बढ़ती है तो समझा जाना चाहिए कि लोकतन्त्र में वोटों की ठेकेदारी का रास्ता किसी न किसी माध्यम से इजाद कर लिया गया है। इस तरफ डाॅ. अम्बेडकर ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पूरा लिखने से एक दिन पहले ही आगाह कराया था और कहा था कि हमने हर नागरिक को स्वयंभू मतदाता बनाकर राजनैतिक आजादी और बराबरी तो प्राप्त कर ली है मगर यह आजादी तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक कि हम सामाजिक बराबरी प्राप्त न कर लें क्योंकि सामाजिक बराबरी से ही आर्थिक बराबरी का रास्ता खुलेगा। डाॅ. अम्बेडकर ने कहा कि लोकतन्त्र में राजनैतिक भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं होता यह केवल धार्मिक मामलों में ही कारगर हो सकती है और हम जानते हैं कि अध्यात्म के बिना धर्म का कोई मतलब नहीं होता।

प्रियंका गांधी फिलहाल देश के नारी समाज की सबसे बड़ी नेता के रूप में उभरी हैं। केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में उनकी धमाकेदार विजय चार लाख से अधिक मतों से हुई है। इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या को 99 से 100 करने में महती भूमिका अदा की क्योंकि महाराष्ट्र के नांदेड़ में हुए उपचुनाव में भी इसी पार्टी के श्री रवीन्द्र विजयी घोषित हुए हैं। आजकल जैसी राजनीति चल रही है उसे देखते हुए इस शुभांक का अपना महत्व हो सकता है। जहां तक उनके परिवार का सम्बन्ध है तो वह इन्दिरा गांधी की पोती और पं. नेहरू की प्रपौत्री हैं। इस परिवार की सभी महिलाओं ने आजादी के आन्दोलन से लेकर स्वतन्त्र भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कांग्रेस को जीवन्त व लोकोन्मुख बनाये रखने में इस परिवार की महिलाओं ने जो योगदान दिया है वह पीढ़ीगत है। स्वतन्त्र भारत में तो कांग्रेस को पराभव काल से बाहर निकालने में स्व. इन्दिरा गांधी से लेकर श्रीमती सोनिया गांधी की भूमिका को कैसे भुलाया जा सकता है। फिलहाल बेशक राहुल गांधी कांग्रेस के केन्द्र में हैं मगर प्रियंका के चुनावी राजनीति में आने से उन्हें ही शक्ति प्राप्त होगी क्योंकि वह राहुल गांधी द्वारा उठाये गये मुद्दों को ही आमजन तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं। कुल मिला कर प्रियंका गांधी कांग्रेस में एक उत्प्रेरक का काम करेंगी।

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