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मॉब लिंचिंग पर सजा

04:04 AM Mar 14, 2024 IST | Aditya Chopra

पिछले कुछ वर्षों से देश में भीड़ द्वारा लोगों को पीट-पीट कर मार देने की घटनाएं एक के बाद एक बेहद डरावनी होती गईं। कभी बच्चा चोरी तो कभी घर में बीफ रखे होने की अफवाह पर या गाैकशी की अफवाहों पर बात शुरू होती तो वह आग की तरह गांव-मोहल्लों में फैल जाती, फिर हिंसक भीड़ किसी न किसी व्यक्ति की जान ले लेती। मॉब लिंचिंग का इतिहास देखें तो देश में ऐसी पहली घटना 22 जनवरी, 1999 को हुई थी, जिसने भारत को पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया था। ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिले में दारा सिंह नाम के एक व्यक्ति के नेतृत्व में लाठी-डंडों से लैस लोगों ने ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस, उसकी पत्नी और दो बच्चों को कार में जिन्दा जला दिया था। ग्राहम पर आरोप था कि वह लोगों का धर्मांतरण कराते हैं। इस घटना पर देशभर में तूफान खड़ा हुआ था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल ​बिहारी वाजपेयी ने इस घटना की कड़ी ​आलाेचना की थी। 2015 से लेकर अब तक मॉब लिंचिंग की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ऐसी हत्याओं की निंदा करते हुए तथाकथित गाैरक्षकों को चेतावनी दी थी और दोषियों को दंडित करने का भरोसा दिया था।
इनमें से ऐसी ही एक घटना 2018 में हापुड़ के गांव बड़ोदाकलां में हुई थी जहां गाैकशी की झूठी अफवाह फैलने के बाद भीड़ ने 60 वर्षीय मोहम्मद कासिम और समीउद्दीन की बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। अब इस मामले में जिला अदालत ने सबूतों के आधार पर दस लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। मॉब लिंचिंग पर सजा देकर अदालत ने एक नजीर स्थापित की है। मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए कई राज्य सरकारों ने सख्त कानून बनाए हैं और इन कानूनों में मृत्युदंड या कठोर आजीवन कारावास का भी प्रावधान है। पाठकों को याद होगा कि दादरी उत्तर प्रदेश में हिंसक भीड़ द्वारा अखलाख की हत्या, हरियाणा में नूंह निवासी पहलूखान की हत्या, झारखंड में मांस व्यापारी अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या और झारखंड में बच्चा चोरी के संदेह में भीड़ द्वारा दो सगे भाइयों गौरव वर्मा और विकास वर्मा की पीट-पीट कर हत्या के मामलों पर देश में तूफान उठ खड़ा हुआ था। इन हत्याओं को साम्प्रदायिक रंग भी दिया गया। इस बात पर बड़ी चर्चा हुई कि ​हिंसक भीड़ की मानसिकता क्या होगी। भीड़ में मौजूद लोगों के दिमाग में क्या चलता होगा। जाहिर है उनके सिर पर खून सवार होगा। इन्हें कोई चीख सुनाई नहीं देती होगी। वारदात को अंजाम देते हुए इन्हें यह भी पता होगा कि कुछ ही मिनटों में यह हत्यारे बन जाएंगे लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन लोगों के भीतर यह क्रूरता आती कहां से है। यह कैसे अपना आपा इतना ज्यादा खो देते हैं कि किसी को मार देने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
भारत में धर्म और जाति के नाम पर होने वाली हिंसा की जड़ें काफी मज़बूत हैं। वर्तमान में लगातार बढ़ रहीं लिंचिंग की घटनाएं अधिकांशतः असहिष्णुता और अन्य धर्म तथा जाति के प्रति घृणा का परिणाम है। अक्सर यह कहा जाता है कि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता और शायद इसी कारण से भीड़ में मौजूद लोग सही और गलत के बीच फर्क नहीं करते हैं। लिंचिंग में संलिप्त लोगों की गिरफ्तारी न होना देश में एक बड़ी समस्या है। यह न केवल पुलिस व्यवस्था की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि अपराधियों को प्रोत्साहन देने का कार्य भी करता है। यह कहा जा सकता है कि देश में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई है जो कि हमेशा एक-दूसरे को संशय की दृष्टि से देखने के लिये उकसाती है और मौका मिलने पर वे एक-दूसरे से बदला लेने के लिये भीड़ का इस्तेमाल करते हैं।
सोशल मीडिया और इंटरनेट के प्रसार से भारत में अफवाहों के प्रसार में तेजी देखी गई जिससे समस्या और भी गम्भीर होती गई। एक रिसर्च के मुताबिक 40 फीसदी पढ़े-लिखे लोग सच्चाई को परखे बिना मैसेज को आगे भेज देते हैं जिससे अफवाहें हिंसक रूप धारण कर लेती हैं। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि धर्म की रक्षा के नाम पर कुुछ बड़े समूह खुद को कथित तौर पर धर्म का ठेकेदार समझने लगे हैं। जबकि इन्हें यह पता ही नहीं होता कि किसी का भी धर्म किसी भी इंसान, समूह या उसकी सोच के दायरे से कितना बड़ा होता है लेकिन फिर भी इन लोगों की नासमझी के कारण कितने ही लोगों की जान जा चुकी है।
समाज में ऐसे समूह उभर आए हैं जो किसी को भी अपने हिसाब से सजा देने का हक रखते हैं। हमारे संविधान में सजा के लिए नियम और कानून तय किए गए हैं और इसका फैसला अदालत में होता है न कि सड़कों पर। अगर भीड़ सड़कों पर उतर कर खुद इंसाफ करने लगे तो फिर संविधान और अदालतों की साख बचेगी कैसे। मॉब लिंचिंग मामले में कानून को सख्त बनाया गया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसी मानसिकता को खत्म कैसे किया जाए। यह जरूरी है कि दोषियों को दंडित ​किया जाए लेकिन समाज में व्यापक जहरीली मानसिकता को समाप्त करने का काम खुद समाज को ही करना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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