पंजाब, हरियाणा और हिमाचल का मूड
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पंजाब ने केवल 13 सीटें होने के बावजूद देश को दिग्गज नेता दिए हैं। 2014 के चुनाव मेें शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन पंजाब में 6 सीटें (शिरोमणि अकाली दल-4 और भाजपा-2) जीतने में सफल रहा था। अरविन्द केजरीवाल ने 4 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था। कांग्रेस को केवल 3 सीटें हासिल हुई थीं। पिछले विधानसभा चुनावों में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने जीत हासिल कर सरकार बना ली। विधानसभा में विपक्षी दल बनी ‘आप’ पार्टी। इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर सिंह काफी मजबूत और प्रभावशाली नेता हैं लेकिन उनके मंत्री पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू का अपने दोस्त इमरान खान की ताजपोशी में जाना और उनकी शान में कशीदे पढ़ना, भारत के सैनिकों का खून बहाने वाले पाक सेना के चीफ बाजवा से गले मिलना न तो पंजाब के लोगों को पसन्द आया और न ही कैप्टन अमरिन्दर सिंह को।
एक सर्वेक्षण में भी पंजाब के 38 फीसदी लोगों की प्रधानमंत्री के तौर पर पहली पसन्द नरेन्द्र मोदी ही बने हुए हैं। राहुल गांधी 30 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नम्बर पर हैं। आप पार्टी खंडित होकर दो हिस्सों में बंट चुकी है। पंजाब की जनता की नाराजगी अभी भी शिरोमणि अकाली दल से बरकरार है। फिर भी शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन को 32 फीसदी वोट शेयर मिलता दिखाई दे रहा है। इस दृष्टि से देखा जाए तो एनडीए को 5 सीटें मिल सकती हैं जबकि कांग्रेस को 6 सीटें मिल सकती हैं। आप को केवल एक सीट ही मिल सकती है। अब बात करते हैं हरियाणा की। हरियाणा बेशक छोटा प्रदेश है मगर राजनीतिक दृष्टि से यह प्रदेश काफी जागरूक है। दस लोकसभा सीटों में से यहां भाजपा ने वर्ष 2014 में 7 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस पार्टी को केवल रोहतक सीट पर संतोष करना पड़ा था।
रोहतक की सीट को मैं अगर यह कहूं कि यह सीट कांग्रेस के प्रभाव के कारण नहीं बल्कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के चौधर के नारे के कारण मिली तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा। हिसार और सिरसा की सीट इनेलो ने जीत कर परचम लहराया था। एयर स्ट्राइक और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा नौकरियों में बरती गई पारदर्शिता से हरियाणा के नौजवानों में भाजपा के प्रति विश्वास जगा है। खट्टर ने ‘सबका साथ-सबका विकास’ के नारे को सच साबित कर दिया है। पूरे हरियाणा प्रदेश में एक समान विकास हुआ है। पिछली सरकारों में क्षेत्र विशेष के विकास की बातें सामने आती रही हैं मगर मनोहर सरकार ने हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर एक समान विकास किया है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर अफसरों को नौकरी करना सिखाया है।
मनोहर लाल सरकार की ऑनलाइन तबादला नीति को पूरे देश में पसंद किया गया है। खासकर अध्यापकों के तबादले जब से ऑनलाइन किए हैं तब से उनके विरोधी भी कायल हो गए हैं। छोटे से बड़े टैंडर सब ऑनलाइन हैं। इससे जहां पारदर्शिता से काम हो रहा है वहीं भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगा है। ग्रुप डी की नौकरियों में बरती गई पारदर्शिता ने मनोहर लाल की छवि एक सर्वमान्य नेता की बना दी है। जींद उपचुनाव और पांच नगर निगमों में भाजपा की जीत मनोहर लाल सरकार की नीतियों की जीत कही जा सकती है। आज हरियाणा का हर वर्ग खट्टर सरकार के कार्यों से प्रभावित है। हिमाचल प्रदेश में कुल चार सीटें हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा ने चारों सीटें जीतकर कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया था। शिमला सीट आरक्षित है जिसे कांग्रेस का गढ़ समझा जाता है। शिमला लोकसभाई क्षेत्र में जिला शिमला, सोलन िसरमौर का क्षेत्र आता है। भाजपा का गढ़ कांगड़ा क्षेत्र है जहां से पूर्व सांसद शांता कुमार 2014 में चुने गए थे।
इस क्षेत्र में जिला कांगड़ा के अलावा चम्बा जिला भी आता है। हमीरपुर संसदीय सीट पर धूमल परिवार का दबदबा रहा है। इस क्षेत्र में जिला हमीरपुर के अलावा जिला ऊना व बिलासपुर पड़ते हैं। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री का अब तक का कार्यकाल बिना गुटबाजी का रहा है। वैसे हिमाचल भाजपा व कांग्रेस का ही क्षेत्र समझा जाता है, यहां तीसरी राजनीतिक शक्ति अभी तक नहीं उभरी है। दोनों ही पार्टियां अतीत में गुटबाजी में उलझी रही हैं लेकिन जयराम ठाकुर ने गुटबाजी से हटकर सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया है जिसका भाजपा को लोकसभा चुनाव में लाभ अवश्य मिलेगा। वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी की इस पहाड़ी राज्य में छवि काफी अच्छी है जिसका भाजपा को लोकसभा चुनाव में फायदा जरूर मिलेगा।
जहां तक उत्तराखंड की बात है, राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भी दावा किया है कि भाजपा राज्य की पांचों लोकसभा सीटें जीतेगी। उत्तराखंड राज्य गठन से लेकर अब तक तीन बार 2004, 2009 और 2014 में आम चुनाव हो चुके हैं। तीनों चुनावाें के नतीजों की अगर बात करें तो एक-एक बार राज्य के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा क्लीन स्वीप कर चुके हैं। अब 2019 में एक बार फिर से चुनाव होने जा रहे हैं। उत्तराखंड में 11 अप्रैल को मतदान होगा। कांग्रेस जहां राज्य और केन्द्र सरकार की विफलताओं को जनता के बीच ले जाकर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है तो वहीं भाजपा को राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार और मोदी सरकार के कामों की बदौलत जीत का पूरा भरोसा है।
राज्य गठन के बाद की चुनावी सियासत अगर देखें तो भाजपा राज्य में सबसे ताकतवर पार्टी के रूप में उभरी है। 2014 में भाजपा ने उत्तराखंड की पांचों सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी। तब भाजपा ने पांचों सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक मत जुटाए, नतीजतन भाजपा के पांचों प्रत्याशी लाखों के मार्जिन से विजयी हुए। भाजपा ने कुल पड़े 43.43 लाख मतों में से 24.29 लाख मत अपने पाले में किए। तब भाजपा और कांग्रेस के बीच 20 प्रतिशत से अधिक मतों का अंतर था। अब इस चुनाव में भाजपा के सामने इसी लक्ष्य को हासिल करने की चुनौती है। चुनावी आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में भाजपा का विस्तार अन्य दलों की कीमत पर हो रहा है।