पंजाब-हरियाणा जल युद्ध
पंजाब हरियाणा के बीच एक बार फिर जल युद्ध शुरू हो चुका है। दोनों ही राज्यों की…
पंजाब हरियाणा के बीच एक बार फिर जल युद्ध शुरू हो चुका है। दोनों ही राज्यों की सरकारों ने जबर्दस्त मोर्चाबंदी की हुई है। इस मोर्चाबंदी की खासियत यह है कि पंजाब में भाजपा राज्य की भगवंत मान सरकार के साथ खड़ी है तो दूसरी तरफ हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार के साथ कांग्रेस और अन्य सभी दल खड़े हैं। दोनों ही तरफ से आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है। गर्मियों के मौसम में पानी की जरूरत बढ़ जाती है। हरियाणा सरकार ने 8500 क्यूसेक पानी की मांग की। उसकी मांग को पंजाब की आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उसके पास अतिरिक्त पानी नहीं है। पंजाब सरकार का कहना है कि हरियाणा अपने कोटे का पानी पहले ही ले चुका है। पंजाब सरकार ने भाखड़ा नंगल बांध पर ताला लगा दिया और पुलिस का पहरा बढ़ा दिया। भाखड़ा से हरियाणा को अभी 4000 क्यूसेक पानी दिया जा रहा है। इसमें से 800 क्यूसेक पानी राजस्थान को और 500 क्यूसेक दिल्ली को भी दिया जाता है। पंजाब गुरुओं और पीर-फकीरों की धरती है जिन्होंने हमेशा मानव कल्याण का ही संदेश दिया है।
गर्मियों के दिनों में किसी राज्य का पानी बंद कर देना अमानवीय ही है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी सरकार ने नंगल बांध रेगुलेटर केन्द्र पर ताला जड़ दिया हो। जब दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल सरकार थी तब हरियाणा के पानी की मांग पर उसका रवैया काफी नरम रहता रहा क्योंकि तब आप पार्टी हरियाणा विधानसभा चुनावों में अपनी संभावनाएं तलाश रही थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब फिर से जल को लेकर राजनीति की जा रही है जबकि यह मसला बातचीत के माध्यम से सहजता से सुलझाया जा सकता था। पानी को लेकर टकराव भी कुछ दिनों का हैै क्योंकि मानसून के बाद तो पानी की वैसे ही कोई कमी नहीं रहती। मई के अंतिम सप्ताह तक पंजाब मंे धान की बिजाई होती है। तब तक पंजाब को पानी की जरूरत पड़ती है। पंजाब का कहना है कि उसके पास पहले ही पानी की कमी है। राज्य में भूजल स्तर 300 फीट तक नीचे चला गया है। रणजीत सागर बांध और पोंग डैम में भी पानी कम है। दूसरी तरफ हरियाणा का कहना है कि उसे पानी भाखड़ा बांध से मिलता है न कि रणजीत सागर बांध से और पोंग डैम से। मौजूदा जल विवाद जटिल तब हुआ जब भाखड़ा ब्यास प्रबंधकीय बोर्ड से पंजाब के अधिकारी का तबादला कर दिया गया। जल विवाद कोई नया नहीं है। यह विवाद तो 1966 में ही शुरू हो गया था। हरियाणा राज्य के अस्तित्व में आने के बाद हरियाणा को 32 फीसदी पानी दिया गया था।
हरियाणा का हिस्सा प्रभावी रूप से हरियाणा तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए, सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के नाम से जानी जाने वाली एक बड़ी परियोजना 8 अप्रैल, 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पटियाला जिले के कपूरी गांव में शुरू की गई थी। 214 किलोमीटर तक फैली इस नहर की लंबाई 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में होगी। यह नहर जल्द ही राजनीतिक विवाद का विषय बन गई। शिरोमणि अकाली दल ने निर्माण का विरोध किया, जिसके कारण ‘कपूरी मोर्चा’ विरोध आंदोलन शुरू हुआ।
तनाव को कम करने के प्रयास में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तत्कालीन अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ ऐतिहासिक 1985 समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें जल वितरण का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए एक न्यायाधिकरण के गठन का वादा किया गया था। इसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी बालकृष्ण एराडी की अध्यक्षता में एराडी न्यायाधिकरण का गठन हुआ। 1987 तक न्यायाधिकरण ने संशोधित शेयरों की सिफारिश की थी। इसमें पंजाब के लिए 5 एमएएफ और हरियाणा के लिए 3.83 एमएएफ का प्रस्ताव था। तब पंजाब में एसएस बरनाला के नेतृत्व में अकाली दल की सरकार थी जिसने 700 करोड़ रुपये की लागत से नहर का 90 फीसदी काम पूरा कर लिया था लेकिन 1990 में सिख उग्रवादियों ने दो वरिष्ठ इंजीनियर और नहर पर काम कर रहे 32 मजदूरों की हत्या कर दी जिससे काम ठप्प पड़ गया। 1996 में हरियाणा सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए मांग की कि पंजाब नहर निर्माण का काम पूरा करे। कोर्ट ने जनवरी 2002 और जून 2004 के बीच नहर के शेष भाग को पूरा करने का आदेश दिया। केंद्र ने 2004 में नहर का निर्माण कार्य अपने हाथ में लेने को कहा लेकिन एक ही महीने बाद पंजाब विधानसभा ने कानून लाकर जल बंटवारे से जुड़े सभी समझौतों को खत्म कर दिया।
सच तो यह है कि पंजाब और हरियाणा दोनों ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं। पानी की कमी का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। सतलुज नदी जो भाखड़ा बांध को पानी देती है पिछले 20 साल में बदलते मौसम के कारण प्रभावित हुई है। हिमाचल के किन्नौर में सतलुज के हिमनद 10 फीसदी सिकुड़ गए हैं। सतलुज का औसत प्रवाह 15 प्रतिशत कम हुआ है। दोनों ही राज्य धान और गन्ने जैसी अधिक पानी की फसलें उगाते हैं जबकि भूजल का स्तर गिर रहा है। बारिश का पैटर्न भी बदल चुका है। मानसून की देरी से भी मौसम का चक्र बदल रहा है। दोनों ही राज्यों ने भूमिगत पानी का जमकर उपयोग किया है जिससे पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं। दोनों ही राज्यों में डार्क जोन बढ़ चुके हैं। आज जल की एक-एक बंूद बचाने और जल के नए स्रोत स्थापित करने और नई तकनीकों को अपनाने का वक्त आ चुका है। जल संसाधन प्राकृतिक स्रोत है और यह किसी एक राज्य की बपोती नहीं हो सकता। जल राष्ट्रीय संपदा है इसको लेकर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। हर राज्य को जरूरत के अनुसार पानी मिलना ही चाहिए लेकिन यह दुर्भाग्य है कि पंजाब की भगवंत मान सरकार को इस मुद्दे पर िसयासत में ज्यादा क्षमता नजर आती है। मान सरकार लोगों को यह दिखाना चाहती है कि पंजाब अपने संसाधनों की रक्षा के लिए कितना जुझारू है लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुक्सान आम लोगों को हो रहा है। बेहतर यही होगा कि केन्द्र आैर दोनों राज्य मिलकर पारदर्शी हल निकालें। पानी सबका है और इसे बांटने का तरीका भी सबके हित में होना चाहिए।