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पुतिन की परमाणु नीति में बदलाव

रूस और यूक्रेन के बीच क्रूर युद्ध को 1000 दिन पूरे हो चुके हैं। दुनिया में परमाणु युद्ध का खतरा पहले से कहीं अधिक नजदीक नजर आता है।

11:02 AM Nov 20, 2024 IST | Aditya Chopra

रूस और यूक्रेन के बीच क्रूर युद्ध को 1000 दिन पूरे हो चुके हैं। दुनिया में परमाणु युद्ध का खतरा पहले से कहीं अधिक नजदीक नजर आता है।

रूस और यूक्रेन के बीच क्रूर युद्ध को 1000 दिन पूरे हो चुके हैं। दुनिया में परमाणु युद्ध का खतरा पहले से कहीं अधिक नजदीक नजर आता है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अपने परमाणु सिद्धांत से जुड़े कायदे कानून को बदल डाला है। रूस ने परमाणु सिद्धांत में बदलाव करते हुए कहा है कि अगर गैर परमाणु देश किसी परमाणु शक्ति वाले देश के समर्थन से उस पर हमला करता है तो इसे रूस के​ खिलाफ जंग माना जाएगा और रूस बैलिस्टिक मिसाइलों का जवाब परमाणु हमले से देगा। अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार द्वारा जिस तरह से यूक्रेन को लम्बी दूरी की मिसाइलें दागने की अनुमति देकर आग में घी डालने का काम किया है, उसके परिणामस्वरूप ही पुतिन ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी रूस पर लम्बी दूरी की मिसाइलें दाग कर लक्ष्मण रेखा लांघ दी है जिसकी वजह से यूरोपीय देश तनाव में आ गए हैं। रूस में तो परमाणु निरोधक बंकर बनाने का काम शुरू हो गया है। वहीं नार्वे, फिनलैंड, डेनमार्क में लोग खाना और बाकी जरूरी सामान इकट्ठा करने लग गए हैं। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि रूस की नई परमाणु नीति से तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराने लगा है।

यह भी स्पष्ट है कि अमेरिका की बाइडेन सरकार जाते-जाते युद्ध को भड़काना चाहती है। ब्लादिमीर पुतिन पहले ही साफ कर चुके हैं कि रूस के खिलाफ अमेरिकी मिसाइलों का इस्तेमाल मतलब रूस और नाटो का युद्ध होगा। रूस पर कोई भी बड़ा हमला परमाणु प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। मूल प्रश्न यह है कि क्या पुतिन की घोषणाएं युद्ध क्षेत्र की रणनीति में बदलाव है या महज खोखली धमकियां हैं। क्या रूस के पास लाल रेखाएं हैं? अगर हैं तो लाल रेखाएं कहां हैं? और यदि उन लाल रेखाओं को पार ​िकया जाता है तो क्या इसका अर्थ यही होगा कि इससे स्वतः ही परमाणु उपयोग शुरू हो जाएगा। ब्लादिमीर पुतिन के दिमाग में क्या चल रहा है, इसकी भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है। उथल-पुथल वाली दुनिया में पुतिन कब कोई फैसला ले लें, कुछ कहा नहीं जा सकता। अगर पश्चिमी देश पुतिन की धमकी को हल्के में ले रहे हैं तो यह उनकी भूल होगी। इस समय पुतिन अमेरिका और नाटो के सामने कमजोर नहीं दिखना चाहते। पुतिन कठोर फैसले लेने वाले नेता हैं। रूस ने परमाणु सिद्धांत 2014 में स्थापित किया था और 2020 में इसे फिर से तैयार किया गया। इसके दो भाग हैं। एक भाग को सार्वजनिक किया गया आैर दूसरे भाग को गोपनीय किया गया। पुतिन ने परमाणु सिद्धांत में संशोधित कर रूस की जनता को यह संदेश दे दिया है कि रूस यूक्रेन के खिलाफ ही युद्ध नहीं लड़ रहा बल्कि अमेरिका और पश्चिम के खिलाफ लड़ रहा है। पुुतिन ने यह भी कहा है कि प्रस्ता​िवत परिवर्तनों का अर्थ यह भी है कि रूस आैर बेलारूस जो कि मास्को के करीबी सहयोगी हैं के खिलाफ आक्रमण की स्थिति में परमाणु हथियारों का उपयोग करने का अधिकार रखता है।

बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको पहले ही यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की फौजों को मार्ग दे चुके हैं। बेलारूस पिछले 30 सालों से रूसी समर्थन पर निर्भर है। बेलारूस अपने यहां परमाणु हथियार तैनात करने की भी अनुमति दे चुका है। अब सवाल यह है कि परमाणु बम इस्तेमाल की सीधी रूसी चेतावनी के बाद भारत का स्टैंड क्या रहेगा? भारत पूरी दुनिया में शांति का दूत माना जाता है। भारत का स्टैंड यही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो। समूचे घटनाक्रम के बीच एक खबर यह भी है ​िक ब्लादिमीर पुतिन अगले साल भारत की यात्रा पर आ सकते हैं।

रूस भारत का मित्र है। वह हर संकट की घड़ी में भारत के साथ खड़ा रहा है। यही कारण है कि भारत ने युद्ध को लेकर तटस्थ रुख अपनाया है। डोनाल्ड ट्रम्प 20 जनवरी को राष्ट्रपति का पद सम्भालेंगे। अगर जो बाइडेन की गलतियों के कारण परमाणु युद्ध छिड़ा तो इसका असर आने वाली पीढ़ियां भुगतेगी। 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम से हमला किया था, जिसमें 80 हजार से ज्यादा लोग तो चंद मिनटों में मारे गए थे लेकिन बाद में रे​िडएशन की वजह से डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। पृथ्वी ठंडी, सूखी और अंधकार में डूब जाएगी आैर दुनिया के सामने भुखमरी का खतरा पैदा हो जाएगा। अगर परमाणु बमों का इस्तेमाल किया गया तो ​िपछली बार की तुलना में कई गुणा ज्यादा तबाही होगी। अमेरिका के पुनः निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को चाहिए ​िक वे तुरंत अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें आैर युद्ध को रुकवाने का प्रयास करें। भारत पहले ही युद्ध रुकवाने के ​लिए अपने तौर पर पहल कर ही रहा है।

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