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जानिए कब है पौष पुत्रदा एकादशी, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

हिंदू शास्‍त्र के मुताबिक 24 एकादशियां साल में आती हैं। उसमें से पुत्रदा एकादशी दो को बताया गया है। श्रावण और पौष शुक्ल पक्ष में पुत्रदा एकादशी आती है।

07:03 AM Jan 05, 2020 IST | Desk Team

हिंदू शास्‍त्र के मुताबिक 24 एकादशियां साल में आती हैं। उसमें से पुत्रदा एकादशी दो को बताया गया है। श्रावण और पौष शुक्ल पक्ष में पुत्रदा एकादशी आती है।

हिंदू शास्‍त्र के मुताबिक 24 एकादशियां साल में आती हैं। उसमें से पुत्रदा एकादशी दो को बताया गया है। श्रावण और पौष शुक्ल पक्ष में पुत्रदा एकादशी आती है। साल की पहली एकादशी पुत्रदा एकादशी होती है जो 6 जनवरी 2020 को इस साल आ रही है। 
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हिंदू धर्म में विशेष महत्व पुत्रदा एकादशी का सारी एकादशियों में दिया गया है। मान्यता है कि योग्य संतान की प्राप्ति इस व्रत को रखने से होती है। साथ ही संतान की तरक्की के लिए भी इस व्रत को बताया गया है। 
सृष्टि के पालनहार श्री विष्‍णु भगवान की पूजा इस दिन की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत जो भक्त अपनी पूरी आस्‍था से रखता है उसे संतान का सुख प्राप्त होता है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा जो कोई भी पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 
ये है पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि
भगवान विष्‍णु का स्मरण एकादशी के दिन सुबह उठकर करना चाहिए। 
स्वच्छ वस्‍त्र उसके बाद स्नान करके धारण कर लें। 
फिर भगवान विष्‍णु के सामने दीपक जलाकर अपने व्रत का संकल्प करें और साथ में कलश की स्‍थापना भी करें।
उसके बाद लाल वस्‍त्र कलश में बांधकर पूजा करें। 
विष्‍णु जी की प्रतिमा को स्नान कराके वस्‍त्र धारण कराएं। 
उसके बाद नैवेद्य और फलों का भोग भगवान विष्‍णु को लगाएं। 
फिर धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा और अर्चना विष्‍णु भगवान की करें साथ में आरती भी करें। 
निराहर इस दिन रहें। उसके बाद शाम को कथा सुनने के बाद फलाहार खा लें। 
ब्राह्मणों को दूसरे दिन खाना खिलाएं और व्रत का पारण यथा सामर्थ्य दान देकर करें। 
ये है पुत्रदा एकादशी की कथा
बहुत प्रचलित है इस व्रत के बारे में यह कथा। राजा महीजित द्वापर युग में थे और वह धर्मप्रिय और विद्वान थे। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी जिसका उन्हें बहुत दुख था। गुरु लोमेश जी को उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई। लोमेश ने राजा को बताया कि इस जन्म में संतान का सुख पिछले जन्म के पापों की वजह से नहीं मिल पाया है। 
इसके अलावा लोमेश जी ने राजा से कहा कि अगर वह पुत्रदा एकादशी का व्रत विधिविति रूप से रखेंगे तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। हालांकि लगातार कुछ सालों तक राजा ने यह व्रत रखा और उन्हें एक सुंदर से पुत्र की प्राप्ति हुई। पद्मपुराण में यह कथा आती है। इसके अलावा आप श्री विष्‍णुसहस्‍त्रनाम का पाठ इस दिन जरूर करें। 
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