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पुतनि : तानाशाह मगर जननायक

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12:04 AM Mar 21, 2018 IST | Desk Team

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ब्लादिमीर पुतिन चौथी बार बहुमत से रूस के राष्ट्रपति चुने गए हैं। इसके साथ ही वह पूर्व सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन के बाद लम्बे समय तक शासन करने वाले नेता बन गए हैं। स्टालिन 1922 से 1952 तक 30 वर्ष तक सत्ता में रहे थे। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तो आजीवन राष्ट्रपति पद पर रहने के लिए पार्टी में संविधान संशोधन करा व्यवस्था को पुख्ता कर लिया है और उनके बाद ब्लादिमीर को रूस की जनता ने 76 फीसदी वोट देकर एक बार पुनः 6 वर्ष के लिए राष्ट्रपति बना दिया है। पुतिन वर्ष 2000 से अब तक लगातार राष्ट्रपति रहे हैं।

हालांकि इससे पहले रूस में भी संविधान के तहत कोई भी राष्ट्रपति दो बार से अधिक राष्ट्रपति नहीं रह सकता लेकिन पुतिन ने इसमें बदलाव किया और दो बार की बंदिशों को खत्म किया। नए संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का कार्यकाल भी 4 वर्ष से 6 वर्ष कर दिया गया था। पश्चिम मीडिया ने इन चुनावों को तमाशा करार दिया है। मैं पहले भी लिखता रहा हूं कि कम्युनिस्ट शासन और तानाशाही में कोई फर्क नहीं है। पुतिन के कट्टर विरोधी अलैक्सी के कानूनी कारणों से चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई थी और कुछ विरोधियों को जेल भिजवा दिया, कुछ विरोधी देश छोड़ गए।

चुनाव में पुतिन के खिलाफ 7 उम्मीदवार थे जो एक तरह से डमी उम्मीदवार थे। पश्चिम मीडिया पुतिन को तानाशाह करार दे रहा है। सो​वियत संघ के जमाने में बैलेट पेपर पर एक ही नाम होता था और उसको ही 99 फीसदी मत मिलते थे। मीडिया जितनी भी आलोचना करे लेकिन यह वास्तविकता है कि पुतिन ने सत्ता पर पकड़ मजबूत की है और उनकी लोकप्रियता इस समय शिखर पर है। समसामयिक रूस की राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज संस्कृति पर पुतिन की गहरी छाप है।

2020 में वह 71 वर्ष के होंगे यानी 25 वर्षों के शासनकाल के दौरान रूस की एक पी​ढ़ी जन्म लेकर युवा हो चुकी होगी। पुतिन ने 1999 में पहली बार राष्ट्रपति पद संभाला था तब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। वर्ष 2004 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने आैर 2009 में वह पुनः प्रधानमंत्री बने, इस दौरान भी पुतिन ही राष्ट्रपति बने। वर्ष 2008-12 के बीच पुतिन रूस के प्रधानमंत्री रहे और फिर राष्ट्रपति बने। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। 2019 में भारत में फिर चुनाव होने हैं मगर रूस की कमान तब भी पुतिन के ही हाथाें में रहेगी। पुतिन के शासनकाल में चार राष्ट्रपति बदल चुके हैं लेकिन रूस में पुतिन थे, पुतिन हैं और पुतिन ही रहेंगे।

ब्रिटेन ने भी इस दौरान चार प्रधानमंत्री देखे। अन्य देशों में भी राष्ट्राध्यक्ष बदल गए। तमाम आलोचनाओं के बावजूद ब्लादिमीर पुतिन अन्य राष्ट्राध्यक्षों की भीड़ में एक अलग व्यक्तित्व हैं। देशवासियों को उनमें हमेशा उम्मीद की किरण दिखाई दी थी और वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतरे। येल्तसिन शासन के दौरान देश भ्रष्टाचार से परेशान था, आर्थिक हालात भी ठीक नहीं थे। पुतिन ने राष्ट्रपति पद संभालने के बाद न केवल रूस को आर्थिक संकट से उबारा बल्कि देश में कानून-व्यवस्था को कायम किया। उन पर विरोधियों का स​फाया करने के आरोप लगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने माफिया की तरह शासन किया लेकिन देश की जनता को वह जेम्स बांड नज़र आए।

चेचेन्या का आतंकवाद हो या फिर अन्य जगह का, उन्होंने जीरो टालरेंस नीति अपनाई। जूडो में ब्लैक बेल्टर होना और रोजाना मार्शल आर्ट की प्रेक्टिस करने के चलते वह युवाओं में भी काफी लो​कप्रिय हैं। उनकी छवि माचो मैन की है इसलिए उनका जलवा बरकरार है। उनके लिए चुनौतियां अब भी कम नहीं। इनमें देश में कुशल कामगारों की कमी, देश में कारोबारी माहौल को ठीक करना, विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना शामिल है। इसके अलावा देश की अर्थव्यवस्था बुनियादी रूप से कमोडिटी सैक्टर पर निर्भर करती है, जो विकास की दृष्टि से नकारात्मक है। अब इस पर निर्भरता कम कर छोटे और नए कारोबार में निवेश बढ़ाना होगा।

देश की अर्थव्यवस्था भले ही संकट से निकल आई है लेकिन है कमजोर। आर्थिक तंत्र को मजबूत बनाने के लिए पुतिन द्वारा ठोस कदम उठाना जरूरी है। रूस की जनता की नज़र में पुतिन सबसे बड़े प्रबल राष्ट्रवादी नेता हैं। जब वह अमेरिका को चुनौती देते हैं, यूरोपीय यूनियन या नाटो के दबाव में नहीं आते, प्रतिबंधों को ठेंगा दिखाते हैं तो रूसियों को लगता है कि उनका नेता कितना ताकतवर है। उन्होंने जिस तरह से 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया को छीना उसके बाद तो वह देश के हीरो बन चुके हैं। रूसियों को लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पुतिन कहीं अधिक सक्षम और बुद्धिमान हैं। उन्हें नरम के साथ-साथ बेरहम भी माना जाता है।

उनके चुनाव से दुनिया में क्या फर्क पड़ेगा यह कहना मुश्किल है क्योंकि पश्चिम से उनके रिश्ते हमेशा तल्ख रहे हैं। जहां तक भारत का संबंध है, रूस भारत का अच्छा भरोसेमंद मित्र रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें पुनः राष्ट्रपति बनने पर बधाई देते हुए भारत आमंत्रित किया है। उदारीकरण के चलते 90 के दशक के बाद अमेरिका से भारत की नजदीकियों को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या अब भी रूस भारत का भरोसेमंद दोस्त है। पुतिन की दोस्ती अमेरिका और चीन से बड़ी है। उम्मीद है कि भारत-रूस साथ-साथ चलेंगे। पुतिन ने भारतीय हितों को कभी नुक्सान नहीं पहुंचाया और उसने आतंकवाद, कश्मीर, एनएसजी में भारत की सदस्यता पर भारत की राय से ही सहमति व्य​क्त की है।

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