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बाबा की फरलो पर सवाल

02:13 AM Mar 02, 2024 IST | Aditya Chopra

कहा जाता है कि कानून सबके लिए बराबर है लेकिन आम आदमी इसे दुनिया का सबसे बड़ा झूठ मानता है। सबसे बड़ा झूठ मानने के पीछे बहुत से कारण भी हैं। बार-बार ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं, जिनसे यह धारणा साबित होती है। किसी के लिए एक ही दिन में तीन बार सुनवाई हो जाती है तो किसी को सुनवाइयों के लिए न जाने कितना इंतजार करना पड़ता है। किसी की जमानत अर्जी बार-बार खारिज हो जाती है तो किसी को रात के वक्त भी जमानत मिल जाती है। भारत की न्याय व्यवस्था को समझना आम आदमी के लिए बहुत भारी पहेली बन चुकी है। अगर न्याय पालिका किसी को दंडित कर देती है तो जेल प्रशासन सजायाफ्ता को राहत देने के लिए जुट जाता है। आम आदमी अब तक समझ नहीं पा रहा कि आखिर हो क्या रहा है? कहते हैं कि हर किसी के साथ न्याय होना चाहिए लेकिन यह न्याय होता दिखाई भी देना चाहिए लेकिन आजकल न्याय होता दिखाई नहीं दे रहा। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को बार-बार दी जा रही पैरोल पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है।
माननीय अदालत ने कहा है कि भविष्य में ​बिना अदालत की अनुमति के राम रहीम को पैरोल न दी जाए। साथ ही उसने पैरोल की अवधि खत्म होने के दिन 10 मार्च को राम रहीम को सरैंडर करने का आदेश भी दिया है। हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार से यह भी पूछा है कि राम रहीम की तरह और कितने कैदियों को इसी तरह पैरोल दी गई है। राम रहीम को संगीन अपराधों में दोषी पाया गया। महिलाओं से रेप करने के आरोप में 2017 में उसे 20 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। 2019 में उसे रणजीत सिंह की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा एक पत्रकार की हत्या के मामले में उसे 2021 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। जिस तरीके से स्वयंभू बाबा को 4 वर्ष में 9 बार पैरोल दी गई उस पर सवाल तो उठ ही रहे थे। 24 अक्तूबर, 2020 को राम रहीम को जेल जाने के एक साल बाद पहली बार पैरोल दी गई थी और इस समय राम रहीम 9वीं बार पैरोल पर जेल से बाहर है।
सवाल उठ रहा था कि राम रहीम को नियमों के परे जाकर पैरोल दी जा रही है। पैरोल शब्द फ्रांसीसी वाक्य 'जे डोने मा पैरोल' से लिया गया है। इसका अंग्रेजी में अनुवाद 'यू हैव माय वर्ड' होता है। अब अगर इसको हिंदी में अनुवाद करें तो मतलब निकलता है, 'मैं वादा करता हूं।' अब आपके मन में सवाल पैदा हो सकता है कि ऐसा कैसा वादा, जिसके आधार पर सजा काट रहे अपराधी को जेल से तय समय के लिए रिहाई मिल सके। दरअसल सजायाफ्ता मुजरिम कानून से वादा करता है कि उसे पैरोल पर कुछ समय के लिए जेल से बाहर निकाल दिया जाए और वह इसका किसी भी तरह से गलत फायदा नहीं उठाएगा। पैरोल जेल में बंद किसी भी कैदी को उसके परिवार से मिलने का विशेषाधिकार उपलब्ध कराता है।
राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है कि वह किसी भी कैदी को पैरोल दे सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट में अधिवक्ता अरुण शर्मा ने बताया कि ये राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है। किसी भी कैदी को सजा का एक हिस्सा पूरा करने के बाद और उस दौरान उसके अच्छे व्यवहार को देखते हुए पैरोल दी जा सकती है। उनके मुताबिक, अगर किसी कैदी की मानसिक स्थिति गड़बड़ हो रही है तो भी पैरोल दी जा सकती है। वहीं, कैदी के परिवार में कोई अनहोनी हो जाने पर भी पैरोल दी जा सकती है। इसके अलावा अगर नजदीकी परिवार में किसी की शादी है तो भी पैरोल दिए जाने की व्यवस्था है। यही नहीं, कई बार कुछ जरूरी कामों को निपटाने के लिए भी कैदी को पैरोल पर निश्चित समय के लिए जेल से छोड़ा जाता है। विशेष हालात होने पर जेल अधिकारी ही 7 दिन तक की पैरोल अर्जी को मंजूर कर सकते हैं।
राम रहीम को बार-बार दी जा रही पैरोल के दौरान वह अनुयाइयों को वर्चुअली सम्बोधित करता है। जन्मदिन भी मनाता है। डेरा की सम्पत्तियों के मामले भी सुलझाता है। उसकी सुरक्षा में पूरा तामझाम जुटा रहता है। काफी संख्या में लोग जेलों में हैं जो पैरोल या फरलो का इंतजार कर रहे हैं लेकिन उन पर इतनी मेहरबानी नहीं की जाती। हाईकोर्ट ने यह भी सवाल किया है कि राम रहीम को पहली बार फरलो देने के बाद सरकार के पास कितने कैदियों की पैरोल की अर्जियां आई हैं और उनमें से कितने दोषियों को आज तक पैरोल दी गई है और कितनी अर्जियां पैंडिंग हैं। सवाल यह भी है कि जिन मामलों में राम रहीम को सजा सुनाई गई है, उसी अपराध के अन्य कई दोषियों को पैरोल दी गई है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने कई सवाल उठाते हुए जनहित याचिका दायर की थी। जिन पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कुछ दिन पहले ही माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिकाओं की सुनवाई में विलम्ब या टालमटोल का रवैया अपनाने पर सवाल उठाए थे और कहा था कि इससे व्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। शीर्ष अदालत का आश्रय यह था कि जमानत न मिलने से अनेक लोगों को बेवजह जेलों में रहना पड़ रहा है। ऐसे हजारों कैदी हैं जिनके पास जमानत की व्यवस्था भी कर पाने का सामर्थ्य नहीं है। ऐसे में मामूली अपराधों में पकड़े गए लोग भी लम्बे समय तक जेल में रहते हैं। यानि कानून ऐसा मकड़जाल है जिसमें कीड़े-मकौड़े तो फंस जाते हैं लेकिन बड़े खिलाड़ी बाहर आ जाते हैं। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने राम रहीम को फरलो पर आदेश देकर एक नजीर स्थापित की है। अंतिम फैसला साबित करेगा कि अमीर और गरीब के लिए कानून एक समान होना चाहिए।

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