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सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की हत्या पर उठते सवाल

अश्लील सामग्री का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है। ऑनलाइन शिक्षा…

04:29 AM Jun 20, 2025 IST | Aakash Chopra

अश्लील सामग्री का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है। ऑनलाइन शिक्षा…

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की हत्या पर उठते सवाल

सभ्य समाज की दर घटती, मन्दता हाय सताती है।

पवित्र रिश्तों के बीच भी अब, असभ्यता की दुर्गंध आती है।।

शर्म भी बेशर्म बना, सभ्यता संस्कृत का नाश हुआ।

अशिष्टता के धंधे बढ़ते, सुकर्मों का अवकाश हुआ।।

मनोरंजन के नाम पर जब, अश्लील प्रदर्शन होता है।

देख रूह कांपती है, हृदय ठिठुर के रोता है।

अश्लील सामग्री का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है। ऑनलाइन शिक्षा के बढ़ते चलन ने बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन दे दिए हैं जिससे अब माता-पिता के लिए यह पता करना कठिन हो गया है कि बच्चे केवल पढ़ाई के लिए ही फोन का उपयोग कर रहे हैं। ऊपर से अश्लील कंटेंट तक पहुंच इतनी आसान हो चुकी है कि नाबालिग भी इसे बिना किसी रोक-टोक के देख सकते हैं। सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर परोसी जा रही गंदगी युवाओं को नैतिक रूप से कमजोर कर रही है। किशोर और युवा जो मानसिक रूप से पूरी तरह से परिपक्व नहीं होते हैं उनके आदर्श और व्यवहार में अश्लील कंटेंट देखकर विकार आने लगता है लेकिन हर किसी को केवल अपने मुनाफे की पड़ी है, भले ही इसके चलते आने वाली पीढ़ी गलत दिशा में ही क्यों ना जा रही हो। यह स्थिति इस कदर गंभीर हो चुकी है कि इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।

मुझे यह कहने में कोई परहेज नहीं है कि यूट्यूबर जबरदस्त अश्लीलता फैला रहे हैं लेकिन अश्लीलता को रोकने के लिए किसी भी यूट्यूबर की जघन्य हत्या भी सभ्य समाज में सहन नहीं की जा सकती। किसी को कोई हक नहीं ​कि किसी की जान ले ली जाए।

पंजाब की सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कंचन कुमारी उर्फ ​​कमल कौर भाभी की हत्या के बाद पूरे राज्य के यूट्यूबर आतंकित हैं। इस हत्याकांड का मास्टर माइंड अमृतपाल सिंह मेहरों को अब पंजाब के कुछ हिस्सों में “हीरो” के तौर पर महिमामंडित किया जा रहा है। लुधियाना में मेहरों को ‘कौम दा हीरा’ (समुदाय का गहना) और ‘इज्जत दे राखे’ (सम्मान का रक्षक) जैसे वाक्यांशों के साथ दिखाने वाले फ्लेक्स-बोर्ड दिखाई दिए हैं जिससे आक्रोश और चिंता फैल गई है।

इस मामले में और भी चिंता की बात यह है कि स्वर्ण मंदिर के मुख्य ग्रंथी मलकियत सिंह ने मेहरों का खुलकर समर्थन किया है। इस मामले पर बोलते हुए मलकियत सिंह ने आरोप लगाया कि पीड़िता ने सिख समुदाय की छवि खराब करने के इरादे से सिख नाम अपनाया था। उन्होंने दावा किया कि कमल कौर के नाम ने लोगों को गुमराह किया कि वह सिख परिवार से ताल्लुक रखती है।

उन्होंने कहा, “सिख इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां अश्लील गतिविधियों में शामिल लोगों को दंडित किया गया।” “सिख शिक्षाओं के अनुसार, हमें अश्लील गाने सुनने से मना किया जाता है। अश्लीलता फैलाने वाले और समुदाय को बदनाम करने वाले लोग इस तरह के व्यवहार के हकदार हैं। कुछ भी गलत नहीं हुआ है, यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ है।”

कमल कौर की हत्या के बाद अब अमृतपाल सिंह ने अमृतसर की सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर दीपिका लूथरा को भी जान से मारने की धमकी दी है। निहंग अमृतपाल ने वीडियो जारी कर दीपिका को धमकी देते हुए कहा कि अगर उसने अश्लील वीडियो बनाना बंद नहीं किया तो परिणाम भुगतना पड़ेगा। एक और इन्फ्लुएंसर सिमरनजीत कौर को भी जान से मारने की धमकियां ​मिली हैं। सिरमनजीत कौर का प्रीत जट्टी के नाम से सोशल मीडिया अकाऊंट है आैर वह भी काफी लोकप्रिय है। हालांकि अमृतपाल सिंह मेहरों विदेश भाग चुका है। पुलिस ने हत्या के आरोप में उसके दो साथी गिरफ्तार कर लिए हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या धार्मिक बाणा पहनकर किसी महिला की हत्या करना अपने आप में बड़ा अपराध है। हैरानी की बात यह है ​िक कंचन उर्फ कमल कौर भाभ​ी के लाखों फारवर्ड थे लेकिन उसके अंतिम संस्कार में केवल तीन लोग ही आए।

‘साफ-सुथरे’ और ‘गंदे’ हास्य के बीच बहस बहुत पुरानी है लेकिन इनके बीच का फर्क भली-भांति समझा जाता है लेकिन अश्लीलता या भोंडेपन की कुछ खास घटनाओं को लेकर जन आक्रोश के संदर्भ में ही, शालीनता और नैतिकता बनाये रखने की जरूरत के बारे में आवाज उठायी जाती है। इस मामले में यौन विकृत टिप्पणियां करने में प्रतिभागियों की बेवकूफी का मुकाबला अगर कोई कर सकता है तो वह शिकायतकर्ताओं और पुलिस का उत्साह है, मुख्यत: इसलिए कि इस सामग्री को पैसे देकर गये श्रोताओं के परे जाकर लीक किया जा रहा है। भले ही प्रतिभागियों ने इस तरह खुद को मुकदमे के जोखिम में डाल लिया हो लेकिन एक परिपक्व समाज को सोचना चाहिए कि क्या ऐसे शाब्दिक अपराध के लिए किसी को जेल जाना चाहिए। चाहे जहां किसी को शिकायत हो, पुलिस के पास एफआईआर दर्ज करा देने की प्रवृत्ति की भी निंदा होनी चाहिए। इंटरनेट की सार्वभौमिक पहुंच को सार्वभौमिक न्यायाधिकार देने का बहाना नहीं होना चाहिए। इसके चलते अक्सर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाता है (क्योंकि ऐसी एफआईआर में नामजद लोग अलग-अलग मामलों को एक में जुड़वाना चाहते हैं) जिससे ध्यान आकर्षित होता है और बहस का दायरा बढ़ जाता है। एक चरम मामला, जैसा कि यह है, चरम प्रतिक्रियाओं को जन्म देता है लेकिन कानून प्रवर्तन और कानूनी संस्थाओं को अपनी प्रतिक्रिया में अति-उत्साही नहीं होना चाहिए। अश्लीलता को रोकने के लिए कानून है और कानून के सहारे ही कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर यूट्यूबर इन्फ्लुएंसरों की हत्याएं होनी शुरू हो गईं तो अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी।

कंटेंट क्रिएटर्स को यह ध्यान रखने कि जरूरत है कि उनके द्वारा बनाए गए कंटेंट का प्रभाव समाज पर क्या पड़ेगा। उन्हें गंभीरता से इस पर विचार करना होगा कि उनका हर कंटेंट किसी न किसी रूप में समाज के हर वर्ग को प्रभावित करता है, इसलिए उन्हें अपनी रचनात्मकता का उपयोग समाज के हित में करना चाहिए। दर्शकों को भी समझना चाहिए कि क्या देखना सही है और क्या गलत, जब हम अपनी और से असामाजिक चीजों का विरोध करेंगे तो ही इनके निर्माण पर रोक लगेगी। सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अश्लीलता को रोकना सिर्फ कानूनी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी भी है। क्योंकि सरकार चाहे कितने भी नियम बना लें जब तक हम सामाजिक रूप से अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे इस समस्या का समाधान होना संभव नहीं है इसलिए जरूरी है कि सभी इस विषय पर सख्त हों।­

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Aakash Chopra

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