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आग की लपटों से उठते सवाल

आग के साथ मानव का संबंध आदिकाल से है। जब से मानव ने पत्थरों को आपस में रगड़कर अग्नि को प्रज्ज्वलित करना सीखा है तभी से मानव के विकास में अग्नि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन इसी आग के कारण कई बार मानव समाज को भयंकर त्रासदियों का भी सामना करना पड़ा है।

02:06 AM May 15, 2022 IST | Aditya Chopra

आग के साथ मानव का संबंध आदिकाल से है। जब से मानव ने पत्थरों को आपस में रगड़कर अग्नि को प्रज्ज्वलित करना सीखा है तभी से मानव के विकास में अग्नि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन इसी आग के कारण कई बार मानव समाज को भयंकर त्रासदियों का भी सामना करना पड़ा है।

आग की लपटों से उठते सवाल
आग के साथ मानव का संबंध आदिकाल से है। जब से मानव ने पत्थरों को आपस में रगड़कर अग्नि को प्रज्ज्वलित करना सीखा है तभी से मानव के विकास में अग्नि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन इसी आग के कारण कई बार मानव समाज को भयंकर त्रासदियों का भी सामना करना पड़ा है। ऐसी ही त्रासदी दिल्ली के मुंडका की एक इमारत में हुई जिसने 27 लोगों की मृत्यु हो गई और कई लोग झुलस गए। महानगर शोक में है, मृतकों के परिजनों की आंखों में आंसू हैं और कुछ की आंखों में सवाल हैं। अनेक लोग अपने आंसुओं को थामे गुमसुम हैं। इस अग्निकांड में किसी ने मां को खोया, किसी ने बहन को, किसी ने बटी को और किसी ने बेटे को।
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देखते ही देखते अनेक जिन्दगियां खाक हो गई। वैसे तो राजधानी में गर्मी के दिनों में अग्निकांड होते रहते हैं लेकिन आग भयंकर तब होती है जब नियमों और कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। महानगर बार-बार भीषण अग्निकांडों का प्रत्यक्षदर्शी बन रहा है। इनके अनेक कारण हैं। अग्निकांडों के पीछे लोगों का भौतिक पतन भी काफी हद तक जिम्मेदार है। 13 जून 1997 को हुए उपहार सिनेमा अग्निकांड तो कभी न भूलने वाली त्रासदी थी जिसमें बच्चों समेत 59 लोगों की मौत हो गई थी। आज तक मृतकों के परिजनों की आंखों में आंसू हैं। 8 ​दिसंबर 2019 को रानी झांसी रोड स्थित अनाजमंडी की फैक्ट्री में आग लगने से 43 लोग जिन्दा जल गए थे। करोल बाग के होटल में, बवाना की पटाखा फैक्ट्री में और अन्य कई जगह हुए विकराल अग्निकांडों से न तो मानव ने कुछ सीखा और न ही संबद्ध विभागाें ने। आग लगने की इस घटना ने कई गंभीर सवाल खड़े किए।
घटना का पूरा सच तो जांच के बाद ही आएगा लेकिन मुंडका अग्निकांड में लापरवाहियां स्पष्ट नजर आ रही हैं। यह लापरवाहियां बिल्डिंग मालिक ने भी की और प्रशासन ने भी और कंपनियों ने भी जिन के दफ्तर वहां थे। मुंडका की इमारत एक तरह से मौत का कुआं ही थी। बिल्डिंग का मुख्य दरवाजा दाईं ओर से गली से होकर जाता है। मेन गेट की एंट्री इतनी संकरी है कि एक बार में एक व्यक्ति ही अंदर जा सकता है या बाहर आ सकता है। हैरानी की बात तो यह है कि इमारत में फायर सेफ्टी के कोई उपकरण नहीं थे। न ही कोई फायर एंस्टिगंशर न ही कोई फायर हाईड्रेंड मिला। इमारत के पास अग्निशमन विभाग से एनओसी भी नहीं थी। नियमों के तहत किसी भी व्यावसायिक इमारत के लिए एनओसी शामिल करना अनिवार्य होता है। इसके अलावा ऐसी इमारतों को नियमित अंतराल के बाद निरीक्षण भी किया जाता है। आखिर इतनी बड़ी इमारत में बिना अग्निशमन विभाग की एनओसी के दफ्तर कैसे चल रहे थे। इमारत में सीसीटीवी बनाने वाली कंपनी का दफ्तर था। यहां सेल्स और कपंनी के प्रबंधन का काम होता था और दिन भर बड़ी संख्या में कर्मचारी यहां काम करते थे। हैरानी की बात तो यह है कि इस इमारत को बड़े कारोबारी दफ्तर की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था। लेकिन आग लगने की स्थिति में बचाव की कोई व्यवस्था नहीं थी। बाहर निकलने के लिए कोई दूसरा रास्त भी नहीं था। संकरी सीढ़ियों ने मुश्किल हालात को और भी मुश्किल बना दिया था जिस इमारत में फायर ब्रिगेड कर्मचारियों को ऊपर जाने के लिए कड़ी मुशक्कत करनी पड़ी वहां से लोग बनाकर कैसे निकल पाते। जब भी कोई अग्निकांड होता है तो प्रशासन हर बहुमंजिला इमारत की फायर ऑडिट की घोषणा करता है ले​किन चंद दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। देशभर में एक वर्ष में अग्निकांडों में हजारों लोगों  की मौत होती है। मौत के आंकड़े बताने के लिए पर्याप्त है कि अग्नि सुरक्षा को लेकर हम कितने गंभीर है और इस मामले में हमारा रिकार्ड बेहद निराशाजनक प्रतीत होता है। मुंडका अग्निकांड इस बात का सबूत है कि कंपनियां चलाने वाले मालिकों के सामने इंसानी जिन्दगी की कोई कीमत नहीं। उन्हें सस्ता श्रम चाहिए। 12-12 घंटे काम करने वाले मजदूर चाहिए लेकिन कर्मचारियों की सुरक्षा पर जो कुछ हजार रुपए भी खर्चने को तैयार नहीं होते। कमर्शियल कॉम्पलैक्सों, शॉपिंग सैंटरों और कोचिंग सेंटरों में अग्नि सुरक्षा के उपायों और मानकों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। अग्निशमन सेवाएं संबं​िधत राज्य, केन्द्र शासित प्रदेशों और शहरी स्थानीय निकायों के तहत काम करती हैं तथा इन्हीं पर सेवाओं के संचालन का दायित्व भी होता है।
यद्यपि अग्नि सुरक्षा के लिए कायदे कानून तो बहुत हैं लेिकन प्रशासन ने कभी पैनापन नहीं दिखाया। आग की लपटें लोगों को निगल रही हैं। सरकारें केवल शोक व्यक्त कर मुआवजे का ऐलान कर देती हैं लेकिन मानवीय लोभ के चलते और मानवीय चूक के कारण लोग लाशों में तब्दील होते रहते हैं। यद्य​पि कानून अपना काम करेगा। इमारत का मालिक और अन्य दोषी लोगों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है लेकिन इस सब से लोगों की जिन्दगियां नहीं लौट पाएंगी और जिन लोगों ने अपनों को खोया है उनकाे सारी उम्र दर्द झेलना पड़ेगा।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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