बुलडोजर एक्शन पर फिर उठे सवाल
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमण और उन पर अवैध निर्माण..
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमण और उन पर अवैध निर्माण होता जा रहा है। देश के छोटे शहरों से लेकर महानगरों तक सरकारी भूमि पर कब्जे कर अनधिकृत कालोनियां बसाई गईं। समय-समय पर अदालतों ने राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों को कानून के तहत कदम उठाने, अवैध कब्जे और निर्माण हटाने के आदेश दिए हैं। किसी भी अवैध निर्माण को गिराने की एक तय प्रक्रिया होती है जिसके तहत देश के कई प्रभावशाली व्यक्तियों के विरुद्ध कार्रवाई भी की गई। बड़े बिल्डरों तक कार्रवाई की जाती रही है। नोएडा में ट्विन टावर गिराए जाने की बात बहुत पुरानी नहीं है। अवैध कालोनियों पर भी बुलडोजर चलते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बुलडोजर एक्शन को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश भी जारी किए थे लेकिन अफसरशाही बेलगाम होकर काम करती है। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन को लेकर प्रयागराज विकास प्राधिकरण को बड़ी फटकार लगाते हुए उसकी कार्रवाई को असंवैधानिक बताया है। कोर्ट ने 6 लोगों के घर तोड़े जाने को अवैध आैर अमानवीय बताते हुए प्राधिकरण को उन सभी को 10-10 लाख मुआवजा देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जिस तरह से घरों को तोड़ा गया उस पर भी आपत्ति जताते हुए कहा,‘‘प्रशासन, खासकर विकास प्राधिकरण को यह याद रखना चाहिए कि राइट टू शेल्टर भी संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न अंग है। तोड़फोड़ की अवैध प्रक्रिया याचिकाकर्ता के संविधान अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन करती है, इसे ध्यान में रखते हुए हम प्रयागराज विकास प्राधिकरण को सभी याचिकाकर्ताओं को 10-10 लाख देने का निर्देश देते हैं।’’ याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अधिकारियों ने देर रात नोटिस जारी करने के अगले दिन ही उनके घर तोड़ दिए। इससे उन्हें विरोध करने का मौका नहीं मिल पाया। वकीलों ने दावा किया कि सरकार ने जमीन को गलत तरीके से गैंगस्टर अतीक अहमद से जोड़ा था, जिसकी अप्रैल 2023 में हत्या हो गई थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे घुसपैठिये नहीं थे, बल्कि करायेदार थे, जिन्होंने अपनी जमीन को फ्रीहोल्ड में बदलने की अर्जी दी थी। उनका कहना है कि हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को बिना उन्हें जवाब देने का मौका दिए 15 सितम्बर 2020 के एक पत्र के आधार पर खारिज कर दिया। यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था जहां कोर्ट ने निर्माण को अवैध बताते हुए याचिका खािरज कर दी थी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला प्रयागराज के एक नजूल प्लॉट का है, इसे 1906 में लीज पर दिया गया था जो कि 1996 में खत्म हो गई थी। इसके अलावा फ्रीहोल्ड की अर्जियां 2015 आैर 2019 में खारिज हो चुकी थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के दौरान प्रयागराज के वायरल हो रहे एक बच्ची के वीडियो का भी संज्ञान लिया। इस वीडियो ने न्यायाधीशों की अर्न्तात्मा को झकझोर कर रख दिया। वायरल वीडियो में जब प्राधिकरण के अधिकारी घरों को गिराने पहुंचे तब एक बच्ची अपनी जान ही परवाह किए बिना घर में रखी अपनी किताबों को दौड़ कर लाते हुए नजर आ रही है। यह दृश्य हर इंसान को झकझोर कर रख देता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अफसरों की कार्रवाई को पूरी तरह से असंवेदनशील करार दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट लिखा है कि घर गिराए जाने से पहले 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।
विडम्बना यह भी है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में बुलडोजर एक्शन को कानून व्यवस्था के पर्याय के तौर पर पेश किया। उससे सरकार पर तो सवाल खड़े हुए ही साथ ही यह संदेश भी गया कि देश में अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे में जायज कार्रवाइयां भी संदेह के घेरे में आ गईं। उत्तर प्रदेश सरकार ने गैंगस्टरों, माफिया और अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जिसकी सराहना की जानी चाहिए। मगर किसी व्यक्ति के आपराधिक कृत्य की सजा पूरे परिवार को देना न्याय के विपरीत है। पिछले वर्ष अक्तूबर में देश की सर्वोच्च अदालत ने टिप्पणी की थी कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां के आपराधिक कानून धर्म से प्रेरित नहीं हो सकते। अदालत ने यह स्पष्ट संकेत दिया था कि प्रशासन ने अवैध तोड़फोड़ की कार्रवाई की तो पीड़ितों को सम्पत्ति वापिस करनी होगी। ऐसे मामलों में जिम्मेदारी तय करने की ठोस व्यवस्था होनी चाहिए। जब किसी का घर गिराया जाता है तब उससे न सिर्फ उसे आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है, बल्कि उसकी सामािजक क्षति भी होती है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला बेलगाम ढंग से बुलडोजर एक्शन की कार्रवाई पर लगाम लगाएगा और नौकरशाही कोई कदम उठाने से पहले तय प्रक्रिया का पालन करेगी। जो अन्य राज्य बुलडोजर एक्शन का अनुसरण करके अपनी सियासत को चमकाने में लगे हैं उन्हें भी नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना होगा।