हर्षा की हत्या से उठे सवाल?
सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि कोई भी आदमी ईश्वर या अल्लाह के पास दरख्वास्त देकर हिन्दू या मुसलमान पैदा नहीं होता है।
03:59 AM Feb 23, 2022 IST | Aditya Chopra
सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि कोई भी आदमी ईश्वर या अल्लाह के पास दरख्वास्त देकर हिन्दू या मुसलमान पैदा नहीं होता है। जन्म लेना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो दो स्त्री-पुरुष के बीच अन्तरंग सम्बन्ध स्थापित होने के बाद पूरी होती है। दूसरे यह समझा जाना चाहिए कि भारत देश के विभिन्न राज्यों की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान होती है और उसी से उस प्रदेश के लोग भारतीयता के दायरे में पहचाने जाते हैं। अतः जब मजहब के आधार पर किसी एक विशेष क्षेत्र या राज्य अथवा अंचल के लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे होते हैं तो वे हिन्दू-मुसलमान बाद में और अपने क्षेत्र के पहले होते हैं। कर्नाटक के शिवमोगा शहर में जिस युवक हर्षा की उसकी धार्मिक पहचान की वजह से दूसरा धर्म मानने वालों ने जिस तरह हत्या की है उसे एक कन्नड़ की दूसरे कन्नड़ नागरिक की हत्या के रूप में ही जाना जाना चाहिए क्योंकि अतिम रूप से हत्या तो एक इंसान की ही हुई है। गौर से देखा जाये तो धरती पर जितने भी धर्म हैं उन सभी में हिंसा और अहिंसा अथवा प्रेम व शान्ति का जिक्र भी आता है। यह उस धर्म के मानने वाले पर निर्भर करता है कि वह किस उपदेश पर अमल करता है। मगर यह भी सच है कि धर्म से पहले इंसानियत ही आती है और इंसानियत का जज्बा सिर्फ प्रेम व भाईचारे को ही मान्यता देता है।
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हर्षा हिन्दू संगठन बजरंग दल का सदस्य था अतः स्वाभिक है वह अति हिन्दूवादी विचारों का पोषक होगा और मुस्लिम अतिवादी विचारों वाले लोगों से उसकी लाग-डांट रही होगी। मगर इसका मतलब यह नहीं होता है कि विरोधी विचार वाले व्यक्ति की हत्या ही कर दी जाये। भारत के सन्दर्भ में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि मजहब या धर्म की स्वतन्त्रता केवल व्यक्तिगत आधार पर ही संविधान देता है अतः धर्म के आधार पर राजनीतिक विचार या सामूहिक सामाजिक आचार पोषित करने की छूट किसी व्यक्ति को नहीं मिलती है। इस भेद को मुस्लिम समाज को समझने की सबसे ज्यादा जरूरत है क्योंकि कर्नाटक में ही इन दिनों जिस तरह ‘हिजाब’ विवाद गरमाया है उसका इस सिद्धान्त से बहुत गहरा लेना-देना है। इतिहास केवल कथा बांचने के लिए नहीं बल्कि सबक सीखने के लिए होता है। केवल 74 साल पहले ही मुहम्मद अली जिन्ना ने जिस तरह पंजाबी को पंजाबी से लड़ा कर और बंगाली को बंगाली से लड़ा कर पाकिस्तान बनवाया था उसकी वजह एक ही थी कि पंजाबियों और बंगालियों के अलग-अलग मजहब होने की वजह से उसने दोनों को एक-दूसरे से अलग साबित कर दिया था और हिन्दोस्तान में खून की होली खेल डाली थी।
स्वतन्त्र व धर्मनिरपेक्ष भारत में किसी भी पार्टी की कोई भी सरकार एेसी सोच को पनपने की इजाजत किसी सूरत में नहीं दे सकती परन्तु दिक्कत यह है कि भारत में इस्लामी जेहादी व कट्टरपंथी मानसिकता को पनपाने में मुल्ला-मौलवी धर्म की आड़ में करने की कोशिशें करते रहते हैं। इन मुल्लाओं को कभी दुनिया भर में उस्मानी साम्राज्य (ओटोमन एम्पायर) के केन्द्र तुर्की के इस्लामी समाज सुधारक ‘क्रान्तिकारी कमाल अतातुर्क’ का नाम याद नहीं आता जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की के सुल्तान की मुस्लिम दुनिया में ‘खिलाफत’खत्म हो जाने के बाद अपने देश तुर्की को अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के चंगुल से मुक्त करा कर इसकी पुरानी सीमाओं को हासिल किया था और इसके बाद अपने देश की बहुसंख्य मुस्लिम जनता को पुरानी शरीयत व अन्य धार्मिक रवायतों से बाहर निकाल कर इसे आधुनिक राष्ट्र बनाया था और महिलाओं को बराबर के अधिकार देते हुए उन पर नाजिल इस्लामी पोशाकों तक को समाप्त करके उन्हें आधुनिक बनने की राह दिखाई थी। इस्लामी दुनिया का यह भी एक इतिहास है जिसे भारत के कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवी भुला देना चाहते हैं। मगर शिवमोगा के युवक हर्षा के सन्दर्भ में यह स्पष्ट है कि उसे धार्मिक दुश्मनी की वजह से ही मारा गया है और उसकी हत्या के पीछे कट्टरपंथी तत्व शामिल हैं जिनमें पापुलर फ्रंट आफ इंडिया जैसी मुस्लिम तंजीम की सोच शामिल है उसके साथ हमदर्दी रखने वाले लोग शामिल हैं। बेशक पुलिस के रिकार्ड के अनुसार हर्षा के खिलाफ भी पिछले 2017 से कई आपराधिक मामले थे मगर उसकी हत्या करने के पीछे जहरीली मानसिकता का ही हाथ है।
इसी प्रकार हम इसके उलट किसी मुसलमान नागरिक की भी ‘माब लिंचिंग’ के नाम पर हत्या किये जाने को उचित नहीं ठहरा सकते हर्षा की हत्या छुरे मार-मार कर जिस बेदर्दी के साथ की गई है उसकी जितनी निन्दा की जाये कम है क्योंकि एक विशेष धर्म के लोगों ने कानून को अपने हाथ में लेने की गुस्ताखी की है। हर्षा का परिवार बिलख रहा है और उसकी मां सरकार से इंसाफ की गुहार लगा रही है। हालांकि पुलिस ने अभी तक छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है मगर इस घटना से शिवमोगा शहर की साम्प्रदायिक फिजा इतनी बिगड़ गई है कि पुलिस को कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। हमें यह विचार करने की सख्त जरूरत है कि धर्म का अस्तित्व इंसानों से है। इसलिए इंसानियत को जिन्दा रखना हिन्दू-मुसलमान होने से पहले बहुत जरूरी है। वेदान्त के इस भेद को गालिब ने जब खोला तो मुल्ला-मौलवियों के होश उड़ गये।
‘‘न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न मैं होता तो क्या होता !’’
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