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रायसीना संवाद : भारत ने दिखा दिया आइना

रायसीना संवाद आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन का भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर आधारित प्रमुख सम्मेलन है जो वैश्विक समुदाय के सामने सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिए पिछले वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के कारण उपजी असाधारण परिस्थितियों की वजह से यह संवाद वर्चुअल तरीके से आयोजित किया गया था

01:45 AM Apr 28, 2022 IST | Aditya Chopra

रायसीना संवाद आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन का भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर आधारित प्रमुख सम्मेलन है जो वैश्विक समुदाय के सामने सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिए पिछले वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के कारण उपजी असाधारण परिस्थितियों की वजह से यह संवाद वर्चुअल तरीके से आयोजित किया गया था

रायसीना संवाद आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन का भू-राजनीति और  भू-अर्थशास्त्र पर आधारित प्रमुख सम्मेलन है जो वैश्विक समुदाय के सामने सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिए पिछले वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के कारण उपजी असाधारण परिस्थितियों की वजह से यह संवाद वर्चुअल तरीके से आयोजित किया गया था लेकिन इस वर्ष इसे पुनः इन-पर्सन प्रारूप में आयोजित किया गया। कोविड से पहले 2020 में समस्याओं के बावजूद उम्मीद कायम थी कि 21वीं सदी एक नए भविष्य की ओर कदम बढ़ाएगी लेकिन महामारी ने पूरी दुनिया को ऐसे पीछे धकेल दिया जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इस बार का रायसीना संवाद रूस-यूक्रेन युद्ध  पर केंद्रित रहा। दुनिया के 90 देशों के मंत्रियों शिक्षाविदों और सरकारी प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया। यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर भारत पर दबाव बनाने वाली लॉबी सक्रिय रही वहीं विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने जिस लहजे में इस लॉबी को दो टूक जवाब दिया वह भारतीय कूटनीति के बढ़ते आत्मविश्वास को जाहिर  करता है। भारत ने दबाव बनाने वाले यूरोपीय देशों के एजेंडे को ध्वस्त करके रख दिया है।
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विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यूरोपीय संसद को आइना दिखा दिया। नार्वे की विदेश मंत्री एनी केन ने यूक्रेन का मुद्दा उठाया और  भारत की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने करारा जवाब देते हुए कहा कि रूस हमसे जितना संपर्क में है उससे कहीं अधिक यूरोपीय देशों के संपर्क में है। उन्होंने सवाल उठाया कि अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ उसको सभी लोकतांत्रिक देश देखते रहे। कौनसी न्यायोचित नियम आधारित व्यवस्था दुनिया के देशों की तरफ से अफगानिस्तान के मामले में अपनाई गई। सभी लोकतंत्र की दुहाई तो देते रहे लेकिन किसी ने कुछ किया नहीं। एस. जयशंकर ने चीन को लेकर भी सवाल उठाते हुए कहा कि एशिया के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां अभी भी सीमाएं तय नहीं हुई हैं। कुछ देश लगातार आतंकवाद को प्रायोजित कर रहे हैं। दुनिया को यह समझना जरूरी है कि एक दशक से अधिक समय से एशिया में नियम आधारित व्यवस्था तनाव में है। भारत के पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव के बाद यूरोपीय देश भारत को कई तरह के सुझाव देते रहे हैं। कभी भारत को यह कहा जाता है कि हम उन देशों के साथ कारोबार बढ़ाएं। सभी देश संप्रभुता को आदर देने की बात करते हैं लेकिन उन्होंने भी पूरी मानवता को भयंकर संकट में छोड़ दिया है। सभी देश अपने हितों और  भरोसे में तालमेल बनाने के लिए जुटे हैं। सभी अपने हितों की रक्षा करने के लिए जुटे हुए हैं। यूरोप के कई देश रूस से तेल, गैस और  ऊर्जा का व्यापार जारी रखे हुए हैं लेकिन भारत पर दबाव बनाया जाता है कि यह मत करो वो मत करो। विदेश मंत्री ने इस पूरी स्थिति  पर साफ कर दिया कि यूरोपीय देश हमें तो सलाह देते रहते हैं लेकिन भारत ने कभी उनको सलाह नहीं दी। विदेश मंत्री ने इससे पहले भी अमेरिका को दो-टूक जवाब दिया था उस जवाब की हर किसी  ने तारीफ की। एस. जयशंकर और  रक्षामंत्री राजनाथ सिंह अमेरिका में टू प्लस टू की बैठक में भाग लेने के बाद विदेशमंत्री ने अमेरिकी मीडिया के सामने अपना स्टैंड स्पष्ट कर दिया था। इस पत्रकार वार्ता में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षामंत्री लायड आस्टिन भी मौजूद थे। जब रूस से भारत के तेल खरीदने पर सवाल पूछा गया तो एस. जयशंकर ने टका सा जवाब देकर अमेरिका को परेशानी में डाल दिया था। तब एस. जयशंकर ने कहा था “ आप भारत के तेल खरीदने से चिंतित हैं लेकिन यूरोप जितना तेल एक दोपहर में खरीदता है उतना भारत एक महीने में खरीदता है। इसलिए अपनी चिंता जरा उधर कर लें।”  मानवाधिकार मुद्दे पर भी विदेश मंत्री ने अमेरिका को खरी खोटी सुना दी थी।
रायसीना संवाद में यूरोपीय उद्योग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने यद्यपि भारतीय लोकतंत्र की तारीफ तो की लेकिन रूस और यूक्रेन युद्ध का असर हिंद प्रशांत क्षेत्र पर पड़ने की आशंकाएं जताते हुए भारत का समर्थन हासिल करने के लिए दबाव बनाया। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि रूस की आक्रामकता पर दुनिया की प्रतिक्रिया अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था और वैश्विक अर्थव्यवस्था दोनों का भविष्य तय करेगी। भारत अपने स्टैंड पर अडिग है उसने शांति का पक्ष लिया और रूस-यूक्रेन युद्ध का समाधान कूटनीति और बातचीत के जरिये निकालने पर ही बल दिया है। विदेश मंत्री ने आसान भाषा में अमेरिका और यूरोपीय संसद में शामिल देशों को समझाया है। उससे सभी को इस बात का एहसास हो गया है ​कि यह नया भारत है। भारत ने हमेशा लोकतंत्र और  साझा मूल्यों की रक्षा करने की बात कही है। इसलिए किसी भी देश को भारत को सलाह देने या दबाव बनाने का अधिकार नहीं है। 
भारत की विदेश नी​ति स्वतंत्र है और आज का भारत अपने हितों की रक्षा करना जानता है। ऐसी स्थिति में दुनिया को भारत ज्ञान देने की चिंता छोड़ ​देनी चाहिए बल्कि विश्व शांति के लिए मिलजुल कर काम करना चाहिए।
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