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दुष्कर्म मामलों की जांच समयावधि घटाने में सफल रही राजस्थान पुलिस: डीजीपी

राजस्थान में दुष्कर्म के मामलों की जांच का औसत समय वर्ष 2021 में घटकर 86 दिन रह गया जो कि 2018 में 241 दिन था। राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी)एमएल लाठर ने सोमवार को पुलिस मुख्यालय में आयोजित सालाना संवाददाता सम्मेलन में यह दावा किया।

03:36 PM Jan 10, 2022 IST | Desk Team

राजस्थान में दुष्कर्म के मामलों की जांच का औसत समय वर्ष 2021 में घटकर 86 दिन रह गया जो कि 2018 में 241 दिन था। राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी)एमएल लाठर ने सोमवार को पुलिस मुख्यालय में आयोजित सालाना संवाददाता सम्मेलन में यह दावा किया।

राजस्थान में दुष्कर्म के मामलों की जांच का औसत समय वर्ष 2021 में घटकर 86 दिन रह गया जो कि 2018 में 241 दिन था। राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी)एमएल लाठर ने सोमवार को पुलिस मुख्यालय में आयोजित सालाना संवाददाता सम्मेलन में यह दावा किया। 
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उन्होंने बताया कि बीते साल राज्य में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दर्ज प्रकरणों की संख्या अपेक्षाकृत 11 प्रतिशत बढ़ी है। लाठर ने बताया,‘‘ दुष्कर्म के प्रकरणों में पुलिस अनुसंधान का औसत समय जो 2018 में 241 दिन था, पुलिस की मुस्तैदी से वर्ष 2021 में घटकर 86 दिन रह गया है, जो बड़ी उपलब्धि है।’’ 
उन्होंने कहा,‘‘राजस्थान पुलिस द्वारा पूर्ण प्रतिबद्धता व निष्ठा से कार्य करने के कारण साल 2019 में महिला अपराधों से संबंधित प्रकरणों के त्वरित निस्तारण में राजस्थान राज्य देश में प्रथम रहा तथा 2020 में द्वितीय स्थान (बड़े राज्यों) पर रहा।’’ उन्होंने बताया कि वर्ष 2021 में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दर्ज प्रकरणों के पंजीकरण में वर्ष 2019 की तुलना में 4.77 प्रतिशत की कमी हुई है जबकि वर्ष 2021 में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दर्ज प्रकरणों के पंजीकरण में वर्ष 2020 की तुलना में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 
उन्होंने बताया कि वर्ष 2021 में झूठे मामलों (अदम वकू) का अनुपात 30.44 प्रतिशत रहा जो कि वर्ष 2020 में 27.71 प्रतिशत था यानी इसमें पूर्व वर्ष की तुलना में लगभग तीन प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। उल्लेखनीय है कि राज्य के पुलिस थानों में सभी मामलों को पंजीबद्ध करना अनिवार्य किया गया है। इसका जिक्र करते हुए लाठर ने कहा मात्र अपराध पंजीकरण को अपराध परिदृष्य का सूचक मानने की प्रवृति के कारण उत्पन्न अपराध पंजीकरण संबंधी कुरीतियों को दूर करना प्रमुख चुनौती थी।
उन्होंने कहा कि इस साल परिवादी को न्याय दिलाने के लिए आवश्यक ‘‘ निर्बाध पंजीकरण‘‘ को महत्ता दी गई, जिसे राज्य सरकार द्वारा न केवल समर्थन बल्कि भरपूर प्रोत्साहन दिया गया जिसके बिना इसे लागू करना असम्भव था। उन्होंने कहा कि राजस्थान पुलिस द्वारा वर्तमान परिदृष्य व भविष्य को ध्यान में रखते हुए दस्तावेज ‘‘विजन 2030‘‘ तैयार किया गया। डीजीपी के अनुसार जन अनुकूल अवधारणा के तहत पुलिस मित्र व ग्राम रक्षकों को भी पुलिस बल से जोड़ा गया है, साथ ही पुलिस थानों में परिवादियों के लिए साकारात्मक वातावरण उपलब्ध कराने हेतु स्वागत कक्ष बनाए गए है। 
उन्होंने बताया कि अभी तक 663 थानों में स्वागत कक्ष का निर्माण हो चुका है एवं 158 में निर्माण कार्य प्रगति पर है। उन्होंने बताया कि 2020 में “मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों” में अपराधियों को सजा की दर राष्ट्रीय औसत 38.90 प्रतिशत की तुलना में राज्य में सजा दर 56.80 प्रतिशत रही है जो राष्ट्रीय औसत से 17.90 प्रतिशत अधिक है। लाठर के अनुसार राजस्थान पुलिस का गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान इसकी प्रमुख वजह है।
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