रजनीकांत की आध्यात्मिक राजनीति !
तमिलनाडु भारत का ऐसा राज्य है, जहां की राजनीति में फिल्मी सितारों का हमेशा दबदबा रहता है। अब दक्षिण भारत के सुपर स्टार अभिनेता रजनीकांत ने जनवरी 2021 में अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू करने और उनकी पार्टी द्वारा तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है
01:03 AM Dec 07, 2020 IST | Aditya Chopra
तमिलनाडु भारत का ऐसा राज्य है, जहां की राजनीति में फिल्मी सितारों का हमेशा दबदबा रहता है। अब दक्षिण भारत के सुपर स्टार अभिनेता रजनीकांत ने जनवरी 2021 में अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू करने और उनकी पार्टी द्वारा तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। रजनीकांत के समर्थक 90 के दशक से उनकी घोषणा का इंतजार कर रहे थे। कुल मिलाकर रजनीकांत को राजनीति में आने में 25 साल लग गए। रजनीकांत की राजनीति में महत्वाकांक्षा के बारे में पहली बार तब पता चला था जब 1996 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के दत्तक पुत्र वी.एन. सुधाकरन के विवाह समारोह में बेहिसाब खर्च किया गया था। तब उन्होंने खुलकर कहा था कि सरकार में बहुत भ्रष्टाचार है और इस तरह की सरकार को सत्ता में नहीं होना चाहिए लेकिन परिपक्व और आधिकारिक घोषणा तक पहुंचने में रजनीकांत वर्ष 2020 तक पहुंच गए।
द्रविड़ आंदोलन के महत्वपूर्ण स्तम्भ और पूर्व मुख्यमंत्री डीएम के प्रमुख एम. करुणानिधि और अन्नाद्रमुक प्रमुख जे. जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति एक ऐसे मुहाने पर आ खड़ी हुई जब राज्य में नए तरह की विचारधाराएं और नए तरह के संघर्ष जन्म ले रहे हैं। जयललिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक में आए बिखराव के बाद भले ही मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी और उपमुख्यमंत्री पनीरसेल्वम सरकार चला रहे हैं लेकिन पार्टी में वर्चस्व और टी.टी.वी. दिनाकरन की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से अन्नाद्रमुक का शक्ति संतुलन कभी भी गड़बड़ा सकता है। जहां तक द्रमुक अध्यक्ष एम.के. स्टालिन की क्षमता और ताकत का सवाल है तो 2016 के विधानसभा चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़े गए थे लेकिन उन्हें दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा था। सरकार विरोधी लहर के बावजूद द्रमुख लगातार दूसरी बार पराजित हो गई। वर्ष 2017 में जयललिता के निधन के बाद आर.के. नगर उपचुनाव में द्रमुक उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई थी। अब भारतीय जनता पार्टी ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में 48 सीटें जीतकर दक्षिण भारत में एंट्री मार ली है और भाजपा दक्षिण भारत की राजनीति में किसी भी दल के लिए जमीन छोड़ना नहीं चाहती। भाजपा दक्षिण भारत में भी विस्तार चाहती है। कर्नाटक में पहले ही भाजपा की सरकार है। न तो द्रमुक और न ही अन्नाद्रमुक पहले जैसी रही है। कभी इन पार्टियों के नेता संस्थापक सी.एन. अन्नादुरई की विचारधारा को लेकर जनता में संघर्ष करते थे लेकिन आज संघर्ष परिवारों में ही चल रहा है।
अब रजनीकांत की घोषणा ने द्रमुक और अन्नाद्रमुक के लिए नई चुनौती पैदा कर दी है। तमिल सिनेमा के बड़े चेहरे कमल हासन पहले ही राजनीति में पदार्पण कर चुके हैं। यद्यपि इन दोनों अभिनेताओं की राजनीतिक ताकत का परीक्षण होना शेष है लेकिन तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास देखें तो राज्य की राजनीति में सिनेमा से आए नेताओं का ही दबदबा रहा है। कांग्रेस की बात करें तो राज्य में द्रमुक की पहली सरकार के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी कभी नहीं हुई और कालांतर में कांग्रेस की भूमिका एक पिच्छलग्गू दल की बन कर रह गई है।
रजनीकांत का राजनीति में प्रवेश कई मायनों में अलग और सफल हुआ तो इसका प्रभाव दूरगामी होगा। पहली बात तो यह है कि तमिल अस्मिता के प्रति अति संवेदनशील इस राज्य में एक गैर तमिल सितारे को जनता किस रूप में लेती है। करुणानिधि और जयललिता जैसे दिग्गज के जाने के बाद राजनीतिक शून्य को रजनीकांत किस हद तक भर पाते हैं। सवाल यह भी है कि रजनीकांत की अध्यात्मिक राजनीति का भविष्य क्या है। रजनीकांत का असली नाम शिवाजी राव गायकवाड़ है। उनकी मातृभाषा मराठी है क्योंकि उनके पिता पुराने मैसूर राज्य में पुलिस कांस्टेबल थे, इसलिए उन्हें कन्नड़ भाषा भी अच्छी तरह आती है। पढ़ाई के बाद उन्होंने कई छोटी-मोटी नौकरियां की , जिसमें बेंगलुरु में बस कंडक्टरी भी शामिल है। उन्हें 1975 में तमिल फिल्म अपूर्वा रागगंगल में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला तो उन्होंने सब को हैरान कर दिया। अपनी खास संवाद अदायगी, चमत्कारी एक्टिंग स्टाइल और गजब के अभिनय ने उन्हें बुलंदी तक पहुंचा दिया। तमिलों ने उन्हें अपने सिर पर बैठाया। रजनीकांत ने तमिल युवती से शादी कर समय-समय पर तमिलनाडु के हितों के मुद्दे पर समर्थन देकर खुद को पूरी तरह तमिल जताने की पूरी कोशिश की।
कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित 69 वर्षीय रजनीकांत के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। रजनीकांत का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं और वह वानप्रस्थ की उम्र में राजनीति में प्रवेश करने जा रहे हैं, द्रविड़ राजनीति में जगह बनाना उनके लिए आसान नहीं होगा। सवाल यह भी है कि रजनीकांत ऐसा क्या करने जा रहे हैं जो उन्हें द्रविड़ राजनीति से अलग दिखाये या फिर उसी पारंपरिक राजनीतिक शैली को आधुनिक संदर्भ में निखारे। रजनीकांत ने संकेत दिया है कि उनकी नई पार्टी धर्मनिरपेक्ष और आध्यात्मिक विचारधारा वाली होगी। सबसे दिलचस्प बात यह देखने वाली होगी कि रजनीकांत की संभावित आध्यात्मिक राजनीति वास्तव में क्या है और वह भी धर्मनिरपेक्षता से जोड़कर। देश ने धर्मनिरपेक्षता के हर पहलु को देख लिया और सुविधा के अनुसार उसे पकड़ना और छोड़ना भी सीख लिया लेकिन आध्यात्मिक राजनीति जरा नया कन्सैप्ट है। रजनीकांत की आध्यात्मिक राजनीति एक अलग कदम है क्योंकि गांधीवादी विचारधारा भी आध्यात्मिकता के करीब मानी जाती है। यद्यपि वास्तविकता में राजनीति सौ फीसदी सांसारिक मामला है। राजनीति होती ही राज करने के लिए है। नेता राजसत्ता हासिल करने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं। देखना होगा कि रजनीकांत की राजनीति किस करवट बैठती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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