टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलSarkari Yojanaहेल्थ & लाइफस्टाइलtravelवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

राजनाथ सिंह की रक्षा नीति!

रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने मास्को में चीनी रक्षा मन्त्री वे फेंगे के साथ भेंट में साफ कर दिया है कि शंघाई सहयोग सम्मेलन के देशों के साथ ही पूरे एशियाई व प्रशान्त क्षेत्र में आपसी शान्ति व सौहार्द का वातावरण बनाये रखने के लिए जरूरी है

12:32 AM Sep 06, 2020 IST | Aditya Chopra

रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने मास्को में चीनी रक्षा मन्त्री वे फेंगे के साथ भेंट में साफ कर दिया है कि शंघाई सहयोग सम्मेलन के देशों के साथ ही पूरे एशियाई व प्रशान्त क्षेत्र में आपसी शान्ति व सौहार्द का वातावरण बनाये रखने के लिए जरूरी है

रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने मास्को में चीनी रक्षा मन्त्री वे फेंगे के साथ भेंट में साफ कर दिया है कि शंघाई सहयोग सम्मेलन के देशों के साथ ही पूरे एशियाई व प्रशान्त क्षेत्र में आपसी शान्ति व सौहार्द का वातावरण बनाये रखने के लिए जरूरी है कि कोई भी देश आक्रामक तेवर अपनाने के स्थान पर सहकार और सह अस्तित्व की भावना से काम करे। श्री राजनाथ सिंह ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो साफगोई की राजनीति में यकीन रखते हैं। इसके साथ ही वह एक ऐसे कठोर वार्ताकार भी माने जाते हैं जो राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रख कर ही वार्ता की तर्ज तय करते हैं। राजनाथ सिंह के बारे में यह प्रसिद्ध है कि उनके लिए कोई देश दुश्मन नहीं है केवल प्रतिरोधी है। घरेलू राजनीति में भी उनका यही नजरिया माना जाता है। अतः चीन के रक्षा मन्त्री के साथ अपनी  बातचीत में हमारे रक्षा मन्त्री के इस उदार किन्तु स्पष्ट रुख से सीमा पर चल रही तनातनी में वह ढिलाई आनी चाहिए जो दो पड़ोसी देशों के बीच अपेक्षित है। एक बात शुरू से ही बहुत स्पष्ट है कि राजनाथ सिंह भारत की एक इंच भूमि पर भी चीनी अतिक्रमण बर्दाश्त करने वाले रक्षा मन्त्री नहीं हैं। इस बारे में उन्होंने लद्दाख की जमीन पर खड़े होकर ही एेलान कर दिया था कि भारत अपनी भौगोलिक संप्रभुता के साथ किसी प्रकार का समझौता करने वाला नहीं है।
Advertisement
 हम सदियों से प्रेम व भाइचारे के समर्थक रहे हैं मगर इसे कोई हमारी कमजोरी न समझे। भारत के आत्मसम्मान पर कोई आंच नहीं आने दी जायेगी लेकिन इसके साथ ही रक्षा मन्त्री ऐसे राजनीतिज्ञ भी थे जिन्होंने अाधिकारिक रूप से सबसे पहले कहा था कि चीनी सेनाएं लद्दाख में नियन्त्रण रेखा के पार घुस आयी हैं और अच्छी खासी संख्या में आयी हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्बन्ध में यह पारदर्शिता थी जिसे राजनाथ सिंह ने खोल कर देशवासियों के समक्ष रखा और चेताया कि हमारी फौजें यह स्थिति किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगी। अतः अब जबकि भारत की जांबाज फौजों ने लद्दाख के चुशूल सेक्टर और पेगोंग झील के दक्षिणी छोर पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है तो चीनी रक्षा मन्त्री के सामने राजनाथ सिंह एक मजबूत छोर पर खड़े होकर बातचीत कर रहे हैं। यह कूटनीति का नियम होता है कि विरोधी को  सामने वाली की सामर्थ्य का एहसास बातचीत की मेज पर भी होता रहे। भारत के वीर सैनिकों ने पिछले दिनों इस क्षेत्र में चीनी फौजों के हौंसले जिस तरह तोड़े उससे स्पष्ट है कि सामरिक मोर्चे पर भारत चीन के भारी फौजी जमावड़े को जमीन दिखाने के काबिल है। इसके लिए जो भी सैनिक जरूरतें हैं वे पूरी कराई जा रही हैं। इससे चीन को यह तो आभास हो ही गया होगा कि वास्तव में 2020 चल रहा है और वह 1962 की सपने की दुनिया में खोया नहीं रह सकता क्योंकि चुशूल सेक्टर में भारतीय फौजों की स्थिति को देख कर स्वयं चीन चिल्ला रहा है कि भारत ने नियन्त्रण रेखा को पार कर दिया है। इसलिए अभी तक भारत को वार्ताओं में उलझाये रख कर चीन यदि इस मुगालते में था कि वह मनमाने ढंग से नियन्त्रण रेखा की दशा और दिशा बदल सकता है तो उसके होश ढीले हो गये होंगे। बहुत साफ है कि राजनाथ सिंह रक्षा मन्त्री होने के नाते भारत-चीन की सीमा की स्थिति पर पैनी नजरें रख रहे होंगे, इसी वजह से उन्होंने रूस रवाना होने पहले पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित अपने कार्यालय में विदेश मन्त्री व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार समेत उच्चस्थ सैनिक अधिकारियों के साथ बैठक करके हालात का जायजा लिया था।
 यह बैठक बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि श्री राजनाथ सिंह के नई दिल्ली लौटने के बाद विदेश मन्त्री  एस. जय शंकर भी शंघाई सहयोग देशों के संगठन के विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन में भाग लेने मास्को जायेंगे, जहां उनकी मुलाकात चीनी विदेश मन्त्री से होगी। इस  बीच भारत के थलसेना प्रमुख व वायुसेना प्रमुख ने लद्दाख का दौरा करके साफ कर दिया है कि किसी भी सैनिक परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए भारत की फौजें पूरी तरह सजग व सन्नद्ध हैं।
 दूसरी तरफ चीन ने जिस तरह फौजी साजो-सामान की सीमा पर तैनाती की है उसके समानांतर भारत ने भी तैयारी कर ली है। इसके बावजूद युद्ध किसी समस्या का अन्तिम हल नहीं हो सकता है। अन्ततः हल बातचीत की मेज पर बैठ कर ही निकलता है। चीन के आक्रमणकारी तेवरों को ढीला करने के लिए भारत ने जो तैयारी की है वह शान्तिपूर्ण हल खोजने के लिए ही की है। भारत तो वह देश है जिसने पचास के दशक के शुरू में ही चीन से पंचशील समझौता करके सहअस्तित्व का मार्ग प्रशस्त किया था मगर चीन ही था जिसने भारत पर 1962 में आक्रमण करके इसे खंड-खंड कर डाला और भारत की 40 हजार वर्ग कि.मी. अक्साई चिन की जमीन कब्जा ली, किन्तु चीन का अब ऐसा कोई इरादा किसी कीमत पर कामयाब नहीं हो सकता, चाहे वह जितनी भी आंखें तरेरे, वार्ता की मेज पर बैठ कर उसे आपसी समस्याओं का हल ढूंढना ही होगा। अतः उसे नियन्त्रण रेखा को बदलने का ख्वाब छोड़ देना चाहिए और 2 मई की स्थिति में आने पर विचार करना चाहिए क्योंकि नियन्त्रण रेखा पर आक्रामक तेवर दिखा कर वह केवल अपनी बदनीयती का ही प्रदर्शन कर रहा है। लद्दाख में अतिक्रमण करके वह भारत की घरेलू राजनीति में न तो दखल दे सकता है और न ही पाकिस्तान को अपने कन्धे पर बैठा कर भारत के लिए कोई नई समस्या पैदा कर सकता है। भारतीय फौजें दोनों मोर्चों पर निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं।
Advertisement
Next Article