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जम्मू में राजनाथ सिंह का बयान: पीओके के बिना अधूरा है कश्मीर

पीओके के बिना कश्मीर अधूरा: राजनाथ सिंह का बयान

10:10 AM Jan 14, 2025 IST | Rahul Kumar

पीओके के बिना कश्मीर अधूरा: राजनाथ सिंह का बयान

जम्मू में राजनाथ सिंह का बयान  पीओके के बिना अधूरा है कश्मीर
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जम्मू और कश्मीर पीओके के बिना अधूरा

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को जम्मू में कहा, जम्मू और कश्मीर पीओके के बिना अधूरा है और यह पाकिस्तान के लिए एक विदेशी क्षेत्र से अधिक कुछ नहीं है। अखनूर में टांडा आर्टिलरी ब्रिगेड में 9वें सशस्त्र बल वयोवृद्ध दिवस कार्यक्रम के दौरान वयोवृद्धों को संबोधित करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा, पीओके का इस्तेमाल आतंकवाद को संचालित करने के लिए किया जा रहा है। पीओके से आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर अभी भी संचालित हो रहे हैं और सीमा से सटे इलाकों में लॉन्च पैड बनाए गए हैं। भारत सरकार सब कुछ जानती है। पाकिस्तान को उन्हें खत्म करना होगा।

पाकिस्तान का भारत विरोधी एजेंडा

पाकिस्तान के शासकों द्वारा धर्म के नाम पर भारत के खिलाफ लोगों को गुमराह करने और भड़काने का प्रयास किया जा रहा है। पीओके के अवैध प्रधानमंत्री ने हाल ही में भारत के खिलाफ जो जहर उगला है, वह पाकिस्तान की साजिश का हिस्सा है। पीओके के प्रधानमंत्री अनवारुल हक आज जो कह रहे हैं, वह वही भारत विरोधी एजेंडा है, जो पाकिस्तान के शासक जनरल जिया-उल-हक के समय से चला रहे हैं। उन्होंने कहा, पीओके भारत के मुकुट का रत्न है। किसी भी मामले में, पीओके पाकिस्तान के लिए एक विदेशी क्षेत्र से ज्यादा कुछ नहीं है।

आतंकवादी पाकिस्तान से भारत आते हैं

रक्षा मंत्री ने आगे हमारी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता कश्मीर और देश के बाकी हिस्सों के बीच की दूरी को पाटना रही है। उन्होंने कहा, हमने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करके आतंकवाद को खत्म करने की शुरुआत की है। आज जम्मू-कश्मीर में स्थिति काफी हद तक बदल गई है। पीओके के बिना जम्मू-कश्मीर अधूरा है। रक्षा मंत्री ने कहा कि 1965 के युद्ध में भारतीय सेना हाजी पीर पर तिरंगा फहराने में सफल रही थी, लेकिन इसे बातचीत की मेज पर छोड़ दिया गया था। उन्होंने कहा, अगर ऐसा नहीं होता, तो आतंकवादियों की घुसपैठ के रास्ते उसी समय बंद हो गए होते। आज भी अस्सी फीसदी से ज्यादा आतंकवादी पाकिस्तान से भारत आते हैं। अगर तत्कालीन सरकार ने युद्ध के मैदान में हासिल कई रणनीतिक फायदों को बातचीत की मेज पर रणनीतिक नुकसान में नहीं बदला होता, तो सीमा पार चल रहा आतंकवाद 1965 में ही खत्म हो गया होता।

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