राखीगढ़ीः दफन सभ्यता का सच
दिल्ली से 150 किलोमीटर की दूरी पर हरियाणा के हिसार जिले में लुप्त सरस्वती नदी के किनारे स्थित गांव राखीगढ़ी फिर चर्चा में है। नई पीढ़ी में राखीगढ़ी को लेकर जिज्ञासा काफी तीव्र हो गई है।
01:31 AM May 10, 2022 IST | Aditya Chopra
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दिल्ली से 150 किलोमीटर की दूरी पर हरियाणा के हिसार जिले में लुप्त सरस्वती नदी के किनारे स्थित गांव राखीगढ़ी फिर चर्चा में है। नई पीढ़ी में राखीगढ़ी को लेकर जिज्ञासा काफी तीव्र हो गई है। विश्व में कई सभ्यताएं रहीं। समय के साथ-साथ सभ्यताएं नष्ट होती गईं उनकी जगह आधुनिक दौर ने ले ली। भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। देशभर में अनेक जगह खुदाई के दौरान मिले अवशेषों से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि भारत की भूमि मानव की प्राचीनतम कर्मभूमि रही है। यहीं से मानव ने अन्य जगहों पर बसाहट और वैदिक धर्म की नींव रखी थी। जब से प्राचीन सभ्यताओं पर शोध होने लगा है उनसे एक के बाद एक नई बातें निकलकर सामने आ रही हैं। धरती पर फैली प्राचीन सभ्यताओं की बात करें तो धारती के पश्चिमी छोर पर रोम, यूनान, मिस्र देश की सभ्यताओं के नाम लिए जाते हैं तो पूर्वी छोर पर चीन का नाम लिया जाता है।
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भारत को लेकर उसके धर्म के सच को आधा-अधूरा ही प्रस्तुत किया गया। यही कहा गया कि ईसाई धर्म सबसे पहले स्थापित हुआ, अनेक इतिहासकारों ने अपने-अपने मत व्यक्त किये। कई ऐसे तथ्य निकाले जाते रहे जो भारत और चीन के इतिहास का महत्व बताते थे। अब तक जो शोध हुए उसमें दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिंदू धर्म का संबंध होने की पुष्टि हो रही है। यह भी स्वीकार किया जा चुका है कि सम्पूर्ण धरती पर हिंदू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में विचारधारा को स्थापित किया। दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति और समाज में हिंदू धर्म की झलक देखी जा सकती है। कुछ तथ्य यह भी स्पष्ट करते हैं कि 3500 ईसा.पूर्व भारत में एक पूर्व विकसित सभ्यता थी।
हिसार जिले के गांव राखीगढ़ी में पहली बार 1963 में खुदाई की गई थी और तब इसे सिंधू-सरस्वती सभ्यता का सबसे बड़ा नगर माना गया था। उस समय के शोधार्थियों ने प्रमाण सहित यह घोषणा की थी कि जमीन में दफन शहर कभी मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से भी बड़ा रहा होगा। अब तक यही माना जाता रहा है कि पाकिस्तान स्थित हड़प्पा और मोहनजोदड़ो ही सिंधूकालीन सभ्यता के बड़े नगर थे। राखीगढ़ी में खुदाई और शोध का काम एक-एक कर चलता रहा। 1997 से लेकर अब तक चार बार अधिकृत रूप से खुदाई हुई है और जो कुछ भी मिला है, वह सिंधू-सरस्वती सभ्यता की एक खुली और विस्तृत दृष्टि से देखने को मजबूर कर रहा है। राखीगढ़ी में उत्खनन का काम बंद भी रहा क्योंकि राजकीय अनुदानों के दुरुपयोग का मामला उछला तो सीबीआई को इसकी जांच करनी पड़ी थी। 6 वर्ष पहले ऐसी रिपोर्ट भी सामने आई थी कि कुछ ग्रामीणों और कुछ पुरातत्व तस्करों ने अवैध रूप से कुछ जगह खुदाई की थी और कुछ दुर्लभ अवशेष अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी बेचे गए। राखीगढ़ी का पुरातात्विक महत्व विशिष्ट है। इस समय यह क्षेत्र पुरातत्व विशेषज्ञों की दिलचस्पी और जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। खुदाई के दौरान हड़प्पाकालीन सभ्यता के अवशेषों का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि इतने वर्ष पहले भी टाऊन प्लानिंग होती रही है। गलियां, पक्की दीवारें, दो मंजिला मकान आैर पांच हजार साल पुरानी आभूषण बनाने की फैक्ट्री भी मिली है। एक बेहतर तकनीक का इस्तेमाल कर शहर बसाया गया था। जिन तकनीकों का इस्तेमाल आज हम शहर बसाने के लिए कर रहे हैं।
2014 में भी राखीगढ़ी की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं की रेडियो, कार्बन डेटिंग के अनुसार इन अवशेषों का संबंध हड़प्प-पूर और प्रौढ़, हड़प्पा काल के अलावा उससे भी हजारों वर्ष पूर्व की सभ्यता से भी यानी प्राप्त अवशेष इस सभ्यता को लगभग 6500 वर्ष पूर्व तक ले जाते हैं। सोने-चांदी के बर्तन, सिक्के, मूर्तियां आदि अनेक वस्तुएं भी मिलीं। अप्रैल 2015 में भी खुदाई के दौरान चार नरकंकाल मिले इनमें तीन की पहचान पुरुष के रूप में और एक की महिला के रूप में हुई थी। इस बार की खुदाई में भी कई नरकंकाल मिले हैं। जिनके नमूने डीएनए जांच के लिए भेज दिए गए हैं। खुदाई का इतिहास बताता है कि प्राचीन सभ्यताओं के साथ लूटमार और छेड़छाड़ भी बहुत की गई। मगर जो भी आज हो रहा है वो यही बताता है कि अविभाजित भारत में चार हजार वर्ष पहले भी सभ्यता एवं निर्माण कलाएं पूरी तरह विकसित थी। खुदाई के दौरान मिले सामान से विशेषज्ञों का आकलन है कि यहां कोई बड़ा व्यावसायिक केंद्र भी रहा होगा। अब सब परतें खुलती जाएंगी। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि हड़प्पाकाल का यह शहर पानी की कमी के चलते विलुप्त हुआ होगा। राखीगढ़ी की विरासत सभ्यता पर गर्व करने का विषय है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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