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राखीगढ़ी का महिला कंकाल और ‘डांसिंग गर्ल’

अब यह तय माना जा रहा है कि हरियाणा का एक गांव राखीगढ़ी विश्वभर में पर्यटकों…

04:06 AM May 26, 2025 IST | Dr. Chander Trikha

अब यह तय माना जा रहा है कि हरियाणा का एक गांव राखीगढ़ी विश्वभर में पर्यटकों…

राखीगढ़ी का महिला कंकाल और ‘डांसिंग गर्ल’
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अब यह तय माना जा रहा है कि हरियाणा का एक गांव राखीगढ़ी विश्वभर में पर्यटकों, शोधार्थियों और पुरातत्वविदों के लिए विशेष आकर्षण का मुख्य केंद्र बनने जा रहा है। यह तथ्य भी दिलचस्पियों से भरा है कि जिस हड़प्पा-सभ्यता की राजधानी था यह शहर (अब सिर्फ एक गांव है) वह हड़प्पा वर्तमान पाकिस्तान का अंग है।

विभाजन के समय इस भारतीय महाद्वीप की संस्कृति को किस निर्दयता के साथ काटा-पीटा गया, इस बात का एक जीता जागता प्रमाण है जिला हिसार का यह गांव राखीगढ़ी। पुरातत्वविद और इतिहासकार अब उस महिला कंकाल के बारे में शोध-परक व डीएनए-आधारित जानकारी जुटाने में लगे हैं जो 4600 वर्ष पुराना है और इसी राखीगढ़ी से मिला है।

यह तो निश्चित है कि वह कंकाल राखीगढ़ी की प्रथम महिला का नहीं है। मगर अब तक इसका सुरक्षित रह पाना भी ऐसे संकेत देता है कि महिला जो भी थी, अतिविशिष्ट थी और उसे विशेष लेपों के साथ संरक्षित किया गया था। यही अनिश्चय अभी भी उस नृत्यांगना की मूर्ति के बारे में भी बना हुआ है जो इन दिनों दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में ढेरों सवाल लिए हुए है। अब तक के शोध से यह तो तय हो ही चुका है कि यह स्थल मोहेन्जोदाड़ो के बाद हड़प्पा काल का दूसरा सबसे बड़ा स्थल है। यह भी तय हो चुका है कि ‘कार्बन-डेटिंग’ पर आधारित अध्ययन के अनुसार ‘राखीगढ़ी’ का इतिहास 5000 वर्ष से कुछ अधिक पुराना है ही। यदि हड़प्पा पूर्व के काल से इसे जोड़ा जाए तो यह स्थल 5700 वर्ष पुराना भी माना जा सकता है।

यदि महाभारत-युद्ध को 5000 से 5500 वर्ष पुरानी घटना माना जाए तो यह भी स्वीकार किया जा रहा है कि राखीगढ़ी की स्थापना, इसके निर्माण व विकास का क्रम, महाभारत के युद्ध से पूर्व अस्तित्व में था।

एक प्रश्न यह भी कुनमुनाने लगा है कि इस नगर के तत्कालीन सत्ताधीशों की महाभारत युद्ध में क्या भूमिका थी? क्या राखीगढ़ी भी इस महाभारत युद्ध का एक अंग थी?

एक किंवदन्ती यह भी है कि महाभारत-युद्धकाल में वीरगति पाने वाले लाखों सैनिकों की विधवाओं ने यहीं शरण ली थी। कदाचित इसीलिए इसे राखीगढ़ी का नाम मिला था। राखीगढ़ी के महिला कंकाल व उसी स्थल से प्राप्त 56 अन्य कंकाल और उसी कालखण्ड की नृत्यांगना (इसी को ‘डांसिंग गर्ल’ का नाम दिया गया है) की ताम्र प्रतिमा, ढेरों नए संकेत देते हैं जिनसे हमारे विद्वानों की शोधपरक दृष्टि पर भी नए प्रश्न-चिह्न लगते हंै।

महिला कंकाल का सिर उत्तर दिशा की ओर है और उसकी बाईं कलाई पर शंख की चूडि़यों की एक जोड़ी है। अब इसी महिला कंकाल व उसके आसपास प्राप्त अवशेषों ने भाषा विज्ञानियों, इतिहास, नृविज्ञान व जीनोमिक्स के विशेषज्ञों का ध्यान खींच लिया है। अब धीरे-धीरे जितने भी निष्कर्ष मिल रहे हैं वे दक्षिण-एशियाई इतिहास के पुनर्पाठ और पुनर्व्याख्या की ओर खींच ले जाते हैं। अभी भी कुछ विद्वान मानते हैं कि हड़प्पा के संदर्भ में राखीगढ़ी का स्थान दूसरा है।

पहला स्थान धोलावीरा का है। राखीगढ़ी की ओर वस्तुत: पूरा ध्यान पहली बार वर्ष 1997-99 के मध्य ही गया, जब पुरातत्वविद अमरेंद्र नाथ ने इस स्थल पर व्यापक उत्खनन कराया।

यहीं यह जानना भी कम दिलचस्पी से भरा नहीं है कि ‘विश्व विरासत कोष’ ने मई 2012 की अपनी रिपोर्ट में एशिया के जिन 10 स्थानों को अपूरणीय क्षति एवं विनाश के केंद्र के रूप में चिह्नित किया है उनमें राखीगढ़ी भी एक है। ऐसे अन्य स्थलों में चीन के अंतिम ‘सिल्क रूट’ वाला काशगर, अफगानिस्तान स्थित ‘मेस-आयनाक’, थाइलैंड स्थित अयुभ्या, फिलीपींस का किल सेंटियागों, बंगलादेश स्थित महावृंमान, कम्बोडिया स्थित प्री-विहियर और म्यांमार स्थित म्यूक-यू भी शामिल है। राखीगढ़ी में जिस स्थान से चर्चित महिला कंकाल मिला है वहां ऊंचे चबूतरे पर अग्नि-वेदिकाओं के अवशेष भी मिले हैं। अनुमान लगाया जाता है कि इन अग्नि-वेदिकाओं में शवदाह की परंपरा रही होगी। इन श्मशानों, कंकालों व कब्रगाहों की ये उपलब्धियां उस काल की सभ्यता के पुनर्विश्लेषण की भी मांग करती हैं। इस कंकाल के डीएनए विश्लेषण से पता चला कि राखीगढ़ी की महिला का प्राचीन ईरानियों और दक्षिण-पूर्व एशियाई शिकारी-संग्राहकों से आनुवंशिक संबंध था लेकिन स्टेपी चरवाहों से कोई आनुवंशिक निशान नहीं दिखे जो अक्सर बाद में भारत में इंडो-यूरोपीय प्रवास से जुड़े थे। स्टेपी चरवाहों के डीएनए की यह अनुपस्थिति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हड़प्पा आनुवंशिक रेखा की निरंतरता का सुझाव देती है जो संभावित रूप से भारत में आर्यों के बड़े पैमाने पर प्रवास के सिद्धांत को चुनौती देती है जो तथाकथित ‘आर्यन प्रश्न’ का एक महत्वपूर्ण घटक रहा है।

इन निष्कर्षों ने वैदिक लोगों की उत्पत्ति और हड़प्पावासियों के साथ उनके संबंधों के बारे में विद्वानों के बीच बहस को फिर से जीवंत कर दिया है। यह बहस भाषाई अध्ययनों, विशेष रूप से संस्कृत भाषा की उत्पत्ति और विकास तथा हड़प्पा लोगों की भाषाओं के साथ इसके संबंध तक फैली हुई है। भारत में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में इन विकास-क्रमों को शामिल करने का निर्णय लिया है जिसमें हड़प्पा युग से आनुवंशिक और सांस्कृतिक निरंतरता पर जोर दिया गया है जो ऐतिहासिक और वैज्ञानिक ज्ञान की विकासशील प्रकृति को उजागर करता है।

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Dr. Chander Trikha

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