Raksha Bandhan 2025: इस बार भद्रा से मुक्त है रक्षा बंधन, जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
Raksha Bandhan 2025: रक्षा बंधन का त्योहार भारत में कितनी शताब्दियों से मनाया जा रहा है इस संबंध में कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। वैसे मान्यता है कि वैदिक काल से ही रक्षा बंधन की परंपरा रही है। कहा जाता है कि शिशुपाल के वध के दौरान भगवान श्री कृष्ण की अंगुली से रक्त स्राव होने लगा तो महारानी द्रोपती ने अपनी साड़ी के पल्लू को चीर कर उनकी अगुंली में बांध दिया था। मान्यता है कि (Raksha Bandhan 2025) तब से ही रक्षा बंधन के त्योहार की परिकल्पना की गई थी। यह अलग बात है कि समय के साथ काफी कुछ बदल गया है। वैसे भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। यहां पर लगभग प्रतिदिन कोई न कोई उत्सव का कारण मिल ही जाता है। इससे लोगों में परस्पर प्रेम और सौहार्द का वातावरण बना रहता है। और लोग धर्म में बंधे रह कर बुरे और अनैतिक कामों से बचे रहते हैं।
श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है रक्षाबंधन
प्रत्येक विक्रम संवत् वर्ष में श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में बहनें अपने भाइयों को रक्षा धागा बांधती है। कुछ दशकों पहले तक रक्षा बंधन के लिए घर पर ही धागों से राखियों को बनाया जाता था। इसलिए हर घर में इस त्योहार की रौनक पूर्णिमा से कुछ दिन पूर्व ही शुरू हो जाती थी। लेकिन वर्तमान में काफी कुछ बदल चुका है, अब बाजार से ही राखियों की खरीद की जाती है। राखियां साधारण धागों से लेकर चांदी जैसी धातु से भी निर्मित की जाती है। जैसा जिसका बजट होता है उसके आधार पर खरीद की जाती है। हालांकि दूसरे त्योहारों की ही तरह रक्षा बंधन पर भी आधुनिकता का प्रभाव दिखाई देता है तथापि आज भी रक्षाबंधन बहनों के लिए एक विशेष त्यौहार बना हुआ है।
वामन अवतार से संबद्ध है रक्षा बंधन की पौराणिक कथा
पुराणों और शास्त्रों में रक्षा बंधन के संदर्भ में बहुत सी कथाएं जुड़ी हुई हैं लेकिन राजा बली और भगवान श्रीविष्णु के वामन अवतार की कथा अधिक प्रचलन में है। श्रीमद्भागवत पुराण में यह कथा प्राप्त होती है। राजा बली बहुत शक्तिशाली था उसने सभी देवताओं को हरा कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवताओं के आग्रह पर भगवान ने वामन का अवतार धारण किया और राजा बली से दान मांगा। असुर राज राजा बली प्रसिद्ध दानवीर भी था। वह किसी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देता था। मांगने से पहले भगवान ने उसे वचनों में बांध लिया कि जो भी वे मांगेंगे वह दिया जायेगा। वचन बंधन के बाद भगवान ने राजा बली से तीन पैर भूमि की मांग की। बली को यह साधारण सा दान प्रतीत हुआ लेकिन भगवान ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि उनके दो पैर में ही सारी पृथ्वी आ गई। तब भगवान ने बली से कहा कि मैं तीसरा पैर कहां रखूं। राज बली ने कहा कि आप तीसरा पैर मेरे सिर पर रख लीजिए। उसके ऐसा कहने से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने का कहा। बली ने चालाकी दिखाते हुए भगवान का हमेशा अपने साथ रहने का वरदान मांग लिया। इसके परिणामस्वरूप भगवान वहीं रहने लगे। जब श्री लक्ष्मी का इसका ज्ञान हुआ तो उन्होंने राजा बली को रक्षा सूत्र बांध कर अपना भाई बनाया और शगुन के तौर पर भगवान को अपने साथ ले गईं। कहा जाता है कि यह दिन श्रावण पूर्णिमा का था। इसलिए तब से ही आज तक इस दिन को रक्षा बंधन के रूप में मनाने की परंपरा चल रही है।
कब है रक्षाबंधन ?
विक्रम संवत् की प्रत्येक श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस वर्ष श्रावण पूर्णिमा 9 अगस्त 2025, शनिवार को है। इस दिन पूर्णिमा तिथि सूर्योदय से लेकर दोपहर 1 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। मान्यता है कि भद्रा में रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता है। लेकिन भद्रा करण की समाप्ति पिछले दिन अर्थात् 8 अगस्त 2025 को मध्य रात्रि 1 बजकर 54 मिनट पर ही हो जायेगी। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि इस बार रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा के दोष से पूरी तरह से मुक्त होने के कारण पूरा दिन ही शुभ है। लेकिन पूर्णिमा तिथि की समाप्ति के आधार पर रक्षाबंधन का त्योहार दोपहर 1 बजकर 25 मिनट से पहले मनाया जाना चाहिए।
राखी बांधने के सूक्ष्म शुभ मुहूर्त
जैसा कि मैं बता चुका हूं कि इस वर्ष भद्रा दोष नहीं होने से पूर्णिमा का पूरा दिन ही राखी बांधने के लिए शुभ है। फिर भी यदि आप सूक्ष्मता में जाना चाहें तो मैं नीचे मुहूर्त दे रहा हूं (Raksha Bandhan Muhurt) उनके आधार पर बहने अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांध सकती हैं। यहां कुछ दूसरी बातें भी महत्वपूर्ण हैं कि रक्षाबंधन के दिन कुछ राज्यों में घर के सभी दरवाजों के दोनों तरफ शुभ चिह्न अंकित किये जाते हैं। जिन्हें शुभ चिह्न या देसी भाषा में सूण कहा जाता है। राखी बांधने की रस्म से पूर्व इन शुभ चिह्नों या सूण को मिठाई आदि भोग लगाया जाता है। इसलिए इन चिन्हों को बनाने और भोग लगाने का कार्यक्रम भी नीचे दिये गये मुहूर्तों में ही करना शुभ होता है। इसके अलावा एक बात और भी ध्यान में रखें कि यह मुहूर्त दिल्ली या एनसीआर के अक्षांश और रेखांश के आधार पर दिये गये हैं। इस क्षेत्र के अलावा दूसरे क्षेत्रों के मुहूर्त में कुछ मिनटों या घंटों का अंतर आ सकता है।
1 - प्रातः सूर्योदय से दोपहर 1 बजकर 25 मिनट तक विशेष शुभ समय है।
2 - शुभ का चौघड़िया - प्रातः 7 बजकर 35 मिनट से 9 बजकर 10 मिनट तक रहेगा।
3 - अभिजित - दोपहर 12 बजकर 5 मिनट से दोपहर 12 बजकर 57 मिनट तक रहेगा।
उपरोक्त में से कोई भी समय आप अपनी सुविधा के आधार चुन सकते हैं।