Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

राम मंदिर : भावनात्मक एकता का पैगाम

भगवान राम के पावन नाम के स्मरण मात्र से प्राणों में सुधा का संचार होता प्रतीत होता है। इस नाम की महिमा कौन नहीं जानता।

04:02 AM Feb 07, 2020 IST | Aditya Chopra

भगवान राम के पावन नाम के स्मरण मात्र से प्राणों में सुधा का संचार होता प्रतीत होता है। इस नाम की महिमा कौन नहीं जानता।

भगवान राम के पावन नाम के स्मरण मात्र से प्राणों में सुधा का संचार होता प्रतीत होता है। इस नाम की महिमा कौन नहीं जानता। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे हुए हैं। राम चरित मानस में राम राजा  होते हुए भी स्वयं को साधारण व्यक्ति के रूप में दर्शाते हैं। 
Advertisement
सीता रानी नहीं बल्कि समाज से जुड़ी हुई एक ऐसी महिला के रूप में दिखाई देती हैं जिसने अथाह पीड़ा सही। भाई, मां, पत्नी, मित्र, सेवक, सखा, राजा, शत्रु सभी अपनी मर्यादाओं में बंधे हुए हैं। पुरुषार्थ उनका कर्म है। श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन त्याग, तपस्या, कर्त्तव्य और मर्यादित आचरण का उत्कृष्ट स्वरूप है। मर्यादा निर्माण का यह अभ्यास विश्व इतिहास में अनूठा है। यही कारण है कि विज्ञान और विकास के दौर में भी श्रीराम जनमानस के देवता हैं। राम शक्ति के नहीं विरक्ति के भी प्रतीक हैं। 
जनमानस की व्यापक आस्थाओं के इतिहास को देखें तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कण-कण में विद्यमान हैं। श्रीराम इस देश के पहले महानायक हैं। श्रीराम का जो विराट व्यक्तित्व भारतीय जनमानस पर अंकित है। श्रीराम किसी धर्म का हिस्सा नहीं ब​ल्कि मानवीय चरित्र के उदात हैं। बचपन की स्मृतियों में जाता हूं तो श्रीराम से जुड़ी कथाएं अन्दर ही अन्दर पुलकित कर देती हैं।
मैथिलीशरण गुप्त का साकेत सचमुच इस बात की ठीक ही घोषणा करता है-
‘‘राम तुम्हारा वृत स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि हो जाए सहज संभाव्य है।’’
आज अयोध्या में दिव्य और भव्य राम मंदिर के ​निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है, इससे देश के आस्थावान करोड़ों हिन्दुओं को संतोष तो मिला ही, साथ ही यह तो उनके लिए आनंद उत्सव जैसा है। हिन्दुओं के लिए यह बहुत पीड़ादायक रहा कि श्रीराम के जन्मस्थल पर ही भव्य मंदिर निर्माण के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। कई वर्षों से रामलला अस्थायी टैंट में रहे। अब रामलला भव्य मंदिर निर्माण में विराजमान होंगे। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार जो ट्रस्ट बनाया है उसके सदस्य ऐसे व्यक्तित्व बनाए गए हैं जिनकी श्रीराम के प्रति आस्था पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। अयोध्या मामले में 9 वर्ष तक हिन्दू पक्ष की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के. पाराशरण, अयोध्या राजवंश के राजा विमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र, युगपुरुष परमानंद जी महाराज, 1989 में राम मंदिर शिलान्यास की पहली ईंट रखने वाले कामेश्वर चौपाल, निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेन्द्र राम, जगत गुरु शंकराचार्य वासुदेवा नंद सरस्वती जी महाराज ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने भारत में अध्यात्म की धारा बहाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 
यद्यपि अयोध्या का मामला सर्वोच्च न्यायालय ने हल किया है लेकिन जिस तरह से नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस संवेदनशील मसले को अपने राजनीतिक कौशल से सम्भाला है उसके लिए पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया ही जाना चाहिए। कहीं कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। कुछ आवाजों को छोड़ कर सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लिया। सन् 1945-46 में अयोध्या में अद्वितीय नाथ नामक महंत थे, जिन्होंने न्यायालय के माध्यम से श्रीराम मंदिर निर्माण की आज्ञा मांगी लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। इसके बाद मामला फैजाबाद के दीवानी न्यायालय में चला। 
अंततः 23 मार्च, 1946 को यह निर्णय ​हो गया कि यह जमीन विवादित है और इस पर बाबर द्वारा मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़ कर किया गया है लेकिन तब से इसका प्रयोग केवल मुस्लिम बंधु करते रहे। अंग्रेजों के जाने के बाद भी विवाद बना रहा। तब स्थानीय मुस्लिम भी चाहते थे कि इसे हिन्दुओं को सौंप दिया जाए क्योंकि इसके भीतर की बनावट मंदिर से मिलती थी, इसमें परिक्रमा थी तथा स्तम्भों की ​भित्ति चित्रकला हिन्दू स्थापत्य कला के अनुरूप थी लेकिन जब ​ विश्व हिन्दू परिषद ने आंदोलन चलाया तो इसमें भी राजनीति की तलाश कर ली गई।
मुस्लिम संगठन एक तरफ तो हिन्दू संगठन एक तरफ। कालांतर में जो भी हुआ, उस इतिहास से हर भारतीय परिचित है।आज भारत को भावनात्मक एकता की जरूरत है। कुछ लोग पहले जरूर पूछते रहे कि एक तरफ हम परमाणु शक्ति बन चुके हैं तो दूसरी तरफ हम मंदिर-मस्जिद में ही उलझे हुए हैं। यह सवाल करने वालों को मैं उत्तर देना चाहता हूं कि देश को आध्यात्मिक और भावनात्मक एकता की जरूरत इसलिए है ताकि धर्म का सकारात्मक इस्तेमाल किया जा सके। धर्म का नकारात्मक प्रयोग पाकिस्तान करता आ रहा है। नाम तो वह भी धर्म का लेता है लेकिन वह उन्माद और घृणा के नाम पर सबको एकजुट करता है। श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर देश को एक पैगाम देगा-आदर्शों का पैगाम, चरित्र और व्यवहार का पैगाम, शांति और सद्भाव का पैगाम। अयोध्या से 22 किलोमीटर दूर भव्य मस्जिद भी बने, मुस्लिम समाज उसमें अस्पताल और शिक्षा संस्थान भी बना सकता है। श्रीराम मंदिर और मस्जिद विश्व शांति स्थल के रूप में उभरे। श्रीराम का चरित्र ही ऐसा है जिससे यह जलता हुआ ​विश्व शांति के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। देश के करोड़ों हिन्दुओं को श्रीराम के नाम की पावन शक्ति को पहचानना होगा। सारी पीड़ा दूर हो चुकी है।
‘‘है राम के वजूद पे हिन्दोस्तान को नाज
अहले नजर समझते हैं उनको इमामे ​हिन्द।’’
-आदित्य नारायण चोपड़ा
Advertisement
Next Article