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अयोध्या में राम मंदिर- लक्ष्य नहीं, पड़ाव है

01:29 AM Jan 10, 2024 IST | Shera Rajput
अयोध्या में राम मंदिर  लक्ष्य नहीं  पड़ाव है

आखिरकार करीब 500 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद वो घड़ी आ ही गई जब करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक रामलला टूटे-फूटे टैंट के स्थान पर एक भव्य मंदिर में विराजमान होंगे, जब गुलामी और बर्बरता के प्रतीक बाबरी खंडहरों के स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव होगा। 30 अक्तूबर 1990 को लाखों राम भक्त छिपते-छिपाते पुलिस से बचते हुए अयोध्या पहुंचे थे और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की इस अहंकारी घोषणा कि “अयोध्या में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता” को झूठा साबित कर दिया था। आज मोदी-योगी युग में उसी सरयू नदी पर लाखों दीये अपने रामभक्तों के स्वागत के लिए जगमगा रहे हैं। वहीं पुलिसकर्मी सन्तों, महात्माओं और रामभक्तों को कोई असुविधा न हो, इस व्यवस्था में लगे हैं। उस समय सरकारी हैलिकॉप्टर से निगरानी की गई थी कि कहीं कोई राम भक्त तो नहीं छिपा है, जबकि अब वहीं उसी सरकारी हैलिकॉप्टर से रामभक्तों पर पुष्प वर्षा होने वाली है।
33 वर्ष पूर्व का वह दृश्य आज भी मानसपटल पर अंकित है जब हम 72 स्वयंसेवक ट्रेन से दिल्ली से लखनऊ होते हुए गोंडा गए थे, जहां से हमें गांव-गांव होकर पैदल ही पुलिस से बचते हुए अयोध्या पहुंचना था। 109 कि.मी. की 8 दिन की पैदल यात्रा में हमारे 70 साथी कहीं न कहीं गिरफ्तार हो गए और हम केवल 2 स्वयंसेवक किसी तरह सरयू नदी पार कर अयोध्या पहुंचे। हुआ यूं कि पुलिस से बचते-बचाते हम 72 स्वयंसेवकों में से केवल 2 अयोध्या नगरी के किनारे एक गाय-भैंस के तबेले में रात्रि 10 बजे किसी तरह पहुंचे थे। अब चुनौती थी सरयू नदी को पार करने की, क्योंकि पुल पर चारों ओर पुलिस का सख्त पहरा था। एक मल्लाह किसी तरह नाव में ले जाने को तैयार हुआ लेकिन साथ ही उसने चेतावनी भी दे डाली कि यदि पुल पर से पुलिस ने देख लिया तो वहीं से गोली भी चल सकती है और ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। तभी उस तबेले का मालिक यादव आया और उसने आश्वासन दिया कि मैं आपको अयोध्या पहुंचा दूंगा और इसकी व्यवस्था करके जल्दी आता हूं। यह कह कर वह तो चला गया लेकिन हम समझ गए कि वो अयोध्या नहीं बल्कि जेल पहुंचाने की व्यवस्था करने गया है। हम दोनों वहां से निकले और सीधे पुल पर चढ़ गए, जहां चारों ओर से पुलिस ने हम दोनों को हमें घेर लिया गया और पूछताछ शुरू कर दी। मैंने बताया कि मैं पत्रकार हूं और दिल्ली से आया हूं रिपोर्टिंग करने औऱ ये मेरा सहायक है।
पुलिस ने पहचान पत्र मांगा तो हमने कहा कि वो तो रास्ते में ही खो गया है। इतनी देर में लाल-बत्ती लगी चार-पांच पुलिस जीप आ गई और कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी आ गए। जब एक अधिकारी को हमने यही परिचय दिया तो उसने हमें जीप में बैठने का आदेश दिया और कहा कि आपको हम अयोध्या लेकर जाएंगे और वहीं पूछताछ करेंगे क्योंकि यहां हर ओर कर्फ्यू लगा है। यह कहते हुए उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कुराहट दौड़ रही थी जो बहुत कुछ कह रही थी।‘कर्फ्यूग्रस्त’ शहर अयोध्या में पुलिस अधिकारी यह कर कर कि मैं पांच मिनट में आता हूं, पुलिस स्टेशन में प्रवेश कर गया, इधर हम तुरन्त वहां से निकल लिये और गली-गली होते हुए दिगम्बर अखाड़ा पहुंच गए जहां 3-4 दिन रहकर 30 अक्तूबर को राम जन्मभूमि पर पहुंचे।
वहां महंत नृत्यगोपाल दास जी, परमहंस रामचन्द्र जी महाराज जैसे सन्तों के साथ छोटी छावनी, दिगम्बर अखाड़ा आदि स्थानों में रहने की व्यवस्था थी और तय किया गया था कि 30 अक्टूबर को प्रात: 8 बजे घर-घर से, हर गली-मोहल्ले से, मंदिर-अखाड़ों से एक साथ सभी रामभक्त बाबरी खंडहरों की ओर श्री अशोक सिंघल के नेतृत्व में प्रस्थान करेंगे। सरकार को और पूरे देश को लग रहा था कि राम मंदिर आंदोलन विफल हो गया है और कुछ भी बड़ी घटना नहीं होगी लेकिन जैसे ही घड़ी ने आठ बजाए मानो पूरे अयोध्या में जन-सैलाब आ गया। चारों ओर से संत-महात्मा और रामभक्तों का रैला निकल पड़ा। आसमान गूंज रहा था, जय श्रीराम के उद्‌घोष से, नारे लग रहे थे-“बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का” “सौगन्ध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे” “3 नहीं तो 30 हजार, नहीं रहेगी कोई मजार” “जिस हिन्दू का खून न खौले, खून नहीं वो पानी है” लेकिन रामभक्तों के इन नारों के बीच शीघ्र ही आने लगी गोलियों की गूंज, लाठियां चलने की आवाजें, चीख-पुकार। दिखने लगे लाशों के ढेर। करीब 11 बजे खून से लथपथ अशोक सिंघल जी को पुलिस द्वारा वैन में बैठा कर होस्पीटल ले जाया गया और तभी समाचार आया कि कलकत्ता से आए दो कोठारी बन्धु, जो कल तक हमारे साथ ही रह रहे थे, बाबरी खंडहरों के गुम्बद पर चढ़ गए और भगवा पताका फहरा दिया। चारों ओर नाच-गाने और जीत के उद्‌घोष होने लगे, लेकिन बौखलाई हुई सरकार के आदेश के कारण पुलिस बर्बरता भी अपना रंग दिखा रही थी। शाम तक उपरोक्त कोठारी बंधुओं को भी मौत के घाट उतार दिया था।
खैर समय ने करवट ली, भाजपा की कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी, खंडहर ढह गए, लम्बी कोर्ट की प्रक्रिया के बाद अब मंदिर निर्माण का प्रथम चरण पूरा हो रहा है। मैं उन भाग्यशाली रामभक्तों में हूं जो 1990 में विपरीत परिस्थितियों में अयोध्या कार-सेवा के लिए पहुंचे थे और अब अनुकूल परिस्थितियों में भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सम्मिलित होकर चिर-प्रतिक्षित क्षणों के साक्षी बनेंगे।

- राकेश गुप्ता 

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