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Rama Ekadashi 2025: इस कथा के बिना अधूरा है रमा एकादशी का व्रत, यहां जाने इसका शुभ मुहूर्त

02:53 PM Oct 16, 2025 IST | Kajal Yadav
Rama Ekadashi 2025 (Source: social media)

Rama Ekadashi 2025: हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे ‘दिवाली की एकादशी’ भी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार रमा एकादशी पर दो शुभ योग बन रहे हैं।

दृक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष रमा एकादशी की तिथि 16 अक्टूबर, शुक्रवार को सुबह 10:35 बजे से शुरू होकर 17 अक्टूबर, शनिवार को सुबह 11:12 बजे तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार रमा एकादशी 17 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

Rama Ekadashi: रमा एकादशी

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Rama Ekadashi 2025 (Source: social media)

 

इस दिन आप सफेद चीजों का दान जैसा चावल, दूध, चीनी आदि का दान कर सकते हैं। ऐसा करने से घर परिवार में सुख समृद्धि आती है।

इसी के साथ रमा एकादशी के मौके पर किसी मंदिर में जाकर भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करना चाहिए साथ ही भगवान विष्णु को सफेद रंग की मिठाई का भोग भी लगाना चाहिए। ऐसा करने से घर में सालभर सुख शांति बनी रहती है और मां लक्ष्मी का घर में सदैव वास होता है।

रमा एकादशी के दिन इसकी पौराणिक कथा सुनना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस व्रत से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। नीचे रामा एकादशी की व्रत कथा बताई गई है।

Rama Ekadashi Katha in Hindi: रमा एकादशी की पौराणिक कथा

Rama Ekadashi 2025 (Source: social media)

पुराणों के अनुसार, एक समय मुचकुंद नाम का एक राजा था, जो भगवान नारायण का बहुत बड़ा भक्त था। राजा की पुत्री का नाम चंद्रभागा था। उसका विवाह शोभन नामक युवक से हुआ। एक बार चंद्रभागा अपने पति शोभन के साथ मायके आई, तभी रमा एकादशी का व्रत पड़ गया। चंद्रभागा जानती थी कि उसके पिता के राज्य में इस दिन मनुष्य से लेकर पशु तक सब उपवास रखते हैं।

राजा ने व्रत के एक दिन पहले पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि कोई भी व्यक्ति रमा एकादशी पर अन्न-जल ग्रहण न करे। यह सुनकर शोभन चिंतित हो गया क्योंकि वह दुर्बल था। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह व्रत नहीं रख पाएगा।

चंद्रभागा ने बताया कि यदि शोभन वहीं रुका, तो उसे भी व्रत करना होगा; इसलिए बेहतर होगा कि वह उस दिन राज्य से बाहर चला जाए। लेकिन शोभन ने निर्णय लिया कि वह भी व्रत करेगा। उसने कहा कि जैसा भाग्य में लिखा होगा, वही होगा।

शोभन ने पूरी विधि से रमा एकादशी का व्रत तो रखा, लेकिन उपवास के कारण उसे बहुत पीड़ा हुई। वह रात तक बेहद दुर्बल हो गया और अगले दिन प्रातः उसकी मृत्यु हो गई। नगर में शोक छा गया और राजा ने उसका अंतिम संस्कार विधिपूर्वक कराया। चंद्रभागा फिर मायके में ही रहने लगी।

रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद शोभन को मंदराचल पर्वत पर एक भव्य दिव्य नगरी प्राप्त हुई, जो सोने और रत्नों से सुसज्जित थी। एक दिन एक ब्राह्मण सोम शर्मा वहाँ तीर्थयात्रा के दौरान पहुँचे और उन्होंने शोभन को देखा।

ब्राह्मण ने शोभन से उस नगर के बारे में पूछा। शोभन ने बताया कि यह नगर रमा एकादशी व्रत के फलस्वरूप मिला है, लेकिन यह स्थायी नहीं है क्योंकि उसने व्रत पूरी श्रद्धा से नहीं किया था। उसने ब्राह्मण से अनुरोध किया कि वह यह बात उसकी पत्नी को बताए क्योंकि उसे उम्मीद और भरोसा था कि उसकी पत्नी चंद्रभागा इस नगर को स्थायी बना सकती है।

ब्राह्मण लौटकर चंद्रभागा से मिला और उसे सारी बात बताई। यह सुनकर वह बहुत खुश हुई और अपने पति से मिलने की इच्छा जताई। ब्राह्मण उसे वामदेव ऋषि के आश्रम लेकर गया जहाँ ऋषि ने वेद मंत्रों से उसका अभिषेक किया। इसके प्रभाव से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया।

इसके बाद वह शोभन के दिव्य नगर पहुँची। शोभन ने अपनी पत्नी का हर्ष से स्वागत किया। चंद्रभागा के व्रत के पुण्य के प्रभाव से वह नगर स्थायी हो गया और दोनों पति-पत्नी वहां सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

Disclaimer: इस लेख में बताई गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। पंजाब केसरी इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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