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Rama Ekadashi 2025: 16 या 17 अक्टूबर कब है रमा एकादशी?जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा

11:48 AM Oct 13, 2025 IST | Khushi Srivastava
Rama Ekadashi 2025 (Credit: AI Generated)

Rama Ekadashi 2025: हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे 'दिवाली की एकादशी' भी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार रमा एकादशी पर दो शुभ योग बन रहे हैं।

Rama Ekadashi 2025 Kab Hai: रमा एकादशी की तिथि

दृक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष रमा एकादशी की तिथि 16 अक्टूबर, शुक्रवार को सुबह 10:35 बजे से शुरू होकर 17 अक्टूबर, शनिवार को सुबह 11:12 बजे तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार रमा एकादशी 17 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

Rama Ekadashi 2025 Shubh Muhurat: पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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Rama Ekadashi 2025 (Credit: AI Generated)

रमा एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विधिवत पूजा तथा श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए। इस दिन के प्रमुख शुभ मुहूर्त निम्नलिखित हैं:

ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4 बजकर 58 मिनट से 5 बजकर 40 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 20 मिनट तक
अमृत काल: सुबह 11 बजकर 25 मिनट से दोपहर 1 बजकर 06 मिनट बजे तक

रमा एकादशी कथा का महत्व

रमा एकादशी के दिन इसकी पौराणिक कथा सुनना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस व्रत से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। नीचे रामा एकादशी की व्रत कथा बताई गई है।

Rama Ekadashi 2025 Vrat Katha: रमा एकादशी की पौराणिक कथा

Rama Ekadashi 2025 (Credit: AI Generated)

पुराणों के अनुसार, एक समय मुचकुंद नाम का एक राजा था, जो भगवान नारायण का बहुत बड़ा भक्त था। राजा की पुत्री का नाम चंद्रभागा था। उसका विवाह शोभन नामक युवक से हुआ। एक बार चंद्रभागा अपने पति शोभन के साथ मायके आई, तभी रमा एकादशी का व्रत पड़ गया। चंद्रभागा जानती थी कि उसके पिता के राज्य में इस दिन मनुष्य से लेकर पशु तक सब उपवास रखते हैं।

राजा ने व्रत के एक दिन पहले पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि कोई भी व्यक्ति रमा एकादशी पर अन्न-जल ग्रहण न करे। यह सुनकर शोभन चिंतित हो गया क्योंकि वह दुर्बल था। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह व्रत नहीं रख पाएगा।

चंद्रभागा ने बताया कि यदि शोभन वहीं रुका, तो उसे भी व्रत करना होगा; इसलिए बेहतर होगा कि वह उस दिन राज्य से बाहर चला जाए। लेकिन शोभन ने निर्णय लिया कि वह भी व्रत करेगा। उसने कहा कि जैसा भाग्य में लिखा होगा, वही होगा।

शोभन ने पूरी विधि से रमा एकादशी का व्रत तो रखा, लेकिन उपवास के कारण उसे बहुत पीड़ा हुई। वह रात तक बेहद दुर्बल हो गया और अगले दिन प्रातः उसकी मृत्यु हो गई। नगर में शोक छा गया और राजा ने उसका अंतिम संस्कार विधिपूर्वक कराया। चंद्रभागा फिर मायके में ही रहने लगी।

रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद शोभन को मंदराचल पर्वत पर एक भव्य दिव्य नगरी प्राप्त हुई, जो सोने और रत्नों से सुसज्जित थी। एक दिन एक ब्राह्मण सोम शर्मा वहाँ तीर्थयात्रा के दौरान पहुँचे और उन्होंने शोभन को देखा।

ब्राह्मण ने शोभन से उस नगर के बारे में पूछा। शोभन ने बताया कि यह नगर रमा एकादशी व्रत के फलस्वरूप मिला है, लेकिन यह स्थायी नहीं है क्योंकि उसने व्रत पूरी श्रद्धा से नहीं किया था। उसने ब्राह्मण से अनुरोध किया कि वह यह बात उसकी पत्नी को बताए क्योंकि उसे उम्मीद और भरोसा था कि उसकी पत्नी चंद्रभागा  इस नगर को स्थायी बना सकती है।

ब्राह्मण लौटकर चंद्रभागा से मिला और उसे सारी बात बताई। यह सुनकर वह बहुत खुश हुई और अपने पति से मिलने की इच्छा जताई। ब्राह्मण उसे वामदेव ऋषि के आश्रम लेकर गया जहाँ ऋषि ने वेद मंत्रों से उसका अभिषेक किया। इसके प्रभाव से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया।

इसके बाद वह शोभन के दिव्य नगर पहुँची। शोभन ने अपनी पत्नी का हर्ष से स्वागत किया। चंद्रभागा के व्रत के पुण्य के प्रभाव से वह नगर स्थायी हो गया और दोनों पति-पत्नी वहां सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

Disclaimer: इस लेख में बताई गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। पंजाब केसरी इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनियाभर के कई देशों में भी इसका उल्लास देखने को मिलता है। दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से मानी जाती है। आइए जानते हैं इस पांच दिवसीय पर्व में धनतेरस से लेकर आगे पढ़ें...

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