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एक बार फिर RPI के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रामदास आठवले, संविधान को बचाने की ली शपथ

07:59 PM Jul 23, 2025 IST | Amit Kumar
एक बार फिर rpi के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रामदास आठवले  संविधान को बचाने की ली शपथ
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रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया RPI (आठवले) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 22 जुलाई 2025 को नई दिल्ली स्थित नवीन महाराष्ट्र सदन में आयोजित की गई। इस बैठक में देशभर से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, प्रभारी और राष्ट्रीय पदाधिकारी शामिल हुए। बैठक में सभी सदस्यों ने एकमत से श्री रामदास आठवले को फिर से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना। चुनाव अधिकारी और विधि सलाहकार श्री बी.के. बर्वे ने उनके निर्विरोध चुने जाने की घोषणा की।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस अवसर पर रामदास आठवले ने कहा कि पार्टी की प्राथमिकता अनुसूचित जाति, जनजाति, गरीब, मजदूर, किसान, महिला और कमजोर वर्गों को न्याय दिलाना है। उन्होंने कहा कि RPI पार्टी संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए लगातार काम करती रहेगी।

गांव-गांव तक पार्टी को पहुंचाने का संकल्प

आठवले ने कहा कि आने वाले 5 वर्षों में RPI को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना उनका लक्ष्य है। इसके लिए वे देशभर में सदस्यता अभियान चलाएंगे और संगठन को गांव-गांव तक मजबूत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों को पक्के मकान और मूलभूत सुविधाएं दिलाने के लिए RPI देशव्यापी आंदोलन शुरू करेगी।

प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद

रामदास आठवले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का आभार जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में RPI को शामिल किया जाना पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी वे पूरी निष्ठा से निभाएंगे और समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की योजनाएं पहुंचाने का कार्य करेंगे।

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कार्यकर्ताओं से किया संघर्ष का आह्वान

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ें, स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए काम करें और आम जनता का विश्वास जीतकर संगठन को और मजबूत बनाएं।

बैठक में प्रमुख नेता रहे मौजूद

इस बैठक में RPI के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. वेंकट स्वामी, राष्ट्रीय महासचिव एवं महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री अविनाश माहतेकर सहित दक्षिण, उत्तर, मध्य और पूर्वोत्तर भारत की समितियों के सदस्य, विभिन्न मोर्चों के अध्यक्ष, और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि मौजूद थे।

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देशभर में सक्रिय है RPI संगठन

रामदास आठवले के नेतृत्व में RPI पार्टी देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है। खासकर मणिपुर और नागालैंड में आरपीआई को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है।

यह भी पढ़ें-Explainer: क्या है महाराष्ट्र में मराठी भाषा विवाद? दशकों से रहा है शिवसेना का रामबाण!

महाराष्ट्र में हिंदी का विरोध कोई आज की बात नहीं है, यह काफी पुराने समय से चला आ रहा है. इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई जब तत्कालीन बॉम्बे राज्य में मराठी भाषी लोगों ने एक अलग राज्य की मांग की. इस आंदोलन को “संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन” कहा गया.

1950 के दशक में बॉम्बे राज्य में आज के महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के कुछ हिस्से शामिल थे. मराठी लोगों ने अलग मराठी भाषी राज्य की मांग की. इस आंदोलन के दबाव में 1960 में ‘बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम’ (Bombay Reorganisation Act) पास हुआ और महाराष्ट्र तथा गुजरात दो अलग राज्य बने.

शिवसेना का उदय और मराठी पहचान

1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना पार्टी बनाई. उनका उद्देश्य था मराठी लोगों को नौकरियों और व्यापार में अन्य समुदायों जैसे दक्षिण भारतीयों और गुजरातियों से बचाकर उनका हक दिलाना. शिवसेना ने मराठी भाषा और संस्कृति को अपना मुख्य मुद्दा बनाया और इसी के ज़रिए उन्होंने राजनीति में गहरी पकड़ बनाई. वहीं 1980 के दशक में शिवसेना ने उत्तर प्रदेश और बिहार से आए प्रवासियों के खिलाफ भी आंदोलन शुरू किया. मराठी में नेमप्लेट्स लगवाना, बैंकों और दफ्तरों में मराठी भाषा को अनिवार्य करना जैसे कदम इसी अभियान का हिस्सा थे.

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