लाल आतंक मुक्त दिवाली
नक्सली हिंसा ने देश को बड़े घाव दिए हैं। पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से 1967 में शुुरू हुआ नक्सल आंदोलन देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बन गया था। हर साल हर जिले में कोई न कोई लाल स्याही से लिखा गया ऐसा अध्याय जुड़ता रहा जिसने पशुपतिनाथ (नेपाल) से तिरुपति तक लाल गलियारा स्थापित कर दिया। देश में नक्सलवाद के खिलाफ छिड़ी जंग अब निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। यह सिर्फ एक संघर्ष नहीं बल्कि सैकड़ों वीर जवानों की शहादत और उनके खून से लिखी गई कहानी है। नक्सलियों के हमलों में सैकड़ों सुरक्षा जवानों ने अपने प्राण न्यौछावर किए वहीं शीर्ष राजनेता और आम जनता भी इनका शिकार हुई। वहीं सुरक्षा बलों ने लगातार कई सफल अभियानों में नक्सलियों के नेटवर्क को तोड़ा और उनके शीर्ष नेतृत्व को भी खत्म किया। छत्तीसगढ़ के नक्सल इतिहास में 17 अक्तूबर का िदन सबसे बड़ा दिन माना जाएगा, क्योंकि इसी दिन बस्तर को नक्सल मुक्त बनो की मुहिम में सरकार को बड़ी कामयाबी मिली। 210 नक्सलियों ने लाल आतंक का रास्ता छोड़कर राष्ट्र की मुख्यधारा में शािमल होे अपनी जिन्दगी की फिर से शुरूआत करने का फैसला लिया। पिछले तीन दिनों से बंदूकें उठाने वाले नक्सली लगातार हथियार डाल रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी देश को आश्वस्त किया है कि देश अब पूरी तरह से जल्द ही नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा और लाल आतंक से मुक्त इलाकों में इस बार दिवाली के मौके पर खुशियों के दीप जलेंगे। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा ‘‘मैं उन माताओं को जानता हूं जिन्होंने अपने लाल खोये हैं, या तो माओवादियों के झूठे प्रपंचों में फंस गए या उनके शिकार बन गए। सरकार ने 2014 के बाद से ऐसे भटके हुए युवाओं को मुख्यधारा में लाने के िलए संवेदनशीलता से काम किया है।’’ गृहमंत्री अमित शाह लगातार यह ऐलान करते रहे हैं कि 31 मार्च, 2026 तक भारत नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि केन्द्र की मोदी सरकार के मूल उद्देश्यों में 3 बातें प्रमुख रही। देश को आतंरिक और बाहरी सुरक्षा, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद आैर भारतीय संस्कृति के सभी अंगों का पुनरुत्थान।
उन्होंने कहा, "जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभाली तब देश की आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से तीन महत्वपूर्ण संकट क्षेत्रों (जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्व और वामपंथी कॉरिडोर) ने देश की आंतरिक सुरक्षा को छिन्न-भिन्न करके रखा था। उन्होंने कहा कि लगभग 4-5 दशक से हजारों लोग इन तीनों स्थानों पर पनपी और फैली अशांति के कारण जान गंवा चुके थे, संपत्ति को बहुत नुक्सान हुआ था, देश के बजट का बहुत बड़ा हिस्सा गरीबों के विकास की जगह इन इलाकों को संभालने में जाता था और सुरक्षा बलों की भी अपार जनहानि हुई थी।
2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद इन तीनों क्षेत्रों पर ध्यान िदया गया आैर स्पष्ट रणनीति से आधार पर काम हुआ। दरअसल, वामपंथी उग्रवाद को लेकर केंद्र सरकार के हौसले यूं ही बुलंद नहीं हैं। आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले एक दशक में सुरक्षा बलों ने लाल आतंक के खिलाफ किस तरह से काम किया है, जिसकी वजह से इनकी कमर पूरी तरह से टूट चुकी है। नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए केंद्र सरकार ने 2015 में एक खास नीति बनाई और उसके अनुसार ऐक्शन प्लान बनाकर कार्रवाई करनी शुरू की। इसका परिणाम ये हुआ है कि 2018 से पहले देश के 126 जिले नक्सल प्रभावित थे तो उस साल अप्रैल में इनकी संख्या घटकर 90 तक पहुंच गई।
मोदी सरकार ने संवाद, सुरक्षा और समन्वय से काम किया और बड़ा नीतिगत बदलाव किया। सरकार की नीति यह रही कि जो हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करना चाहते हैं उनका स्वागत है लेकिन अगर कोई हथियार लेकर निर्दोषों की हत्या करेगा तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। राज्यों की पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षा बलों को पूरी छूट दी गई, सूचना आदान-प्रदान तथा अभियान समन्वय के लिए केंद्र और राज्यों के बीच एक व्यावहारिक सेतु बनाया गया। हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति पर प्रशासन ने सख्ती की। 2019 के बाद उनकी आपूर्ति को लगभग 90 प्रतिशत तक रोकने में सफलता हासिल हुई। आर्थिक स्रोतों पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय ने सख्ती की है, साथ ही शहरी नक्सल समर्थन, कानूनी सहायता और मीडिया में अनुकूल कथानक बनाने वाले तत्वों पर भी कड़ी कार्रवाई की गई। नक्सलियों से निपटने के लिए डीआरजी, एसटीएफ, सीआरपीएफ और कोबरा बलों का संयुक्त प्रशिक्षण शुरू किया गया। जिसके काफी अच्छे परिणाम रहे।
अब केवल तीन जिले ही नक्सल प्रभावित रह गए हैं। नक्सल प्रभावित जिलों में विकास की परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। शिक्षा, स्कूल, संचार आैर सुरक्षा की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। जिन क्षेत्रों तक सरकार नहीं पहुंची वहां शासन पहुंच रहा है। अब वक्त है कि नक्सली हिंसा में हुई शहादतों को अंतिम मुकाम तक पहुंचाया जाए। नक्सलवाद का अंत हो और हर क्षेत्र में लोग बिना भय के दीपावली पर अपना घर रोशन करें।