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अमित शाह की रैली में शरणार्थियों का छलका दर्द

भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करके पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश के शरणार्थियों को न्याय दिलाने की कवायद शुरू कर दी है।

04:01 PM Jan 21, 2020 IST | Shera Rajput

भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करके पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश के शरणार्थियों को न्याय दिलाने की कवायद शुरू कर दी है।

भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करके पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश के शरणार्थियों को न्याय दिलाने की कवायद शुरू कर दी है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की हिंदू कालोनियों में लगने वाले ‘अल्लाह ओ अकबर’ के नारों के बीच खुद को असहाय समझने वाले लोग सीएए कानून लागू होने से खुश नजर आ रहे हैं। 
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अमित शाह की रैली में आए हुए शरणार्थियों से जब आईएएनएस ने बातचीत की तो उनका दर्द कुछ इस तरह छलका : लखीमपुर के रहने वाले विश्राम विश्वास ने बताया कि वह अपने दादा के साथ 1975 में पूर्वी पाकिस्तान से आए थे। उनके दादा के और उनके परिवार के साथ वहां पर बहुत अन्याय हुआ। वे अपना त्यौहार नहीं माना पाते थे। काफी लूट-पाट होती थी। इसके बाद उन्होंने उस देश को छोड़ने का निर्णय लिया। 
खीरी जिले के रमिया बेहड़ ब्लक में सुजानपुर (कृष्णनगर) के रहने वाले अनुकूल चंद्र दास ने बताया कि जब उनके पिताजी, मां, दादी और उनका एक छोटा भाई पूर्वी पाकिस्तान के जिला फरीदपुर की तहसील गोपालगंज क्षेत्र से विस्थापित होकर आए, तब उनकी उम्र मात्र 14 साल थी। 
शुरुआत में उनका परिवार माना कैम्प, रायपुर (तब के मध्यप्रदेश और वर्तमान छत्तीसगढ़) में रुका। 3 माह तक ट्रांजिट कैम्प में रुकने के बाद पहले 1700 परिवार उधम सिंह नगर और रुद्रपुर आए। वहां से सरकार ने इन परिवारों को खीरी जिले में विस्थापित किया। बाद में भी हजारों परिवार लगातार 1970 तक खीरी में आकर बसे। यह लोग सीएए कानून लागू होने की खुशी मना रहे हैं। 
रवींद्रनगर, मोहम्मदी तहसील खीरी के रहने वाले निर्मल विश्वास ने बताया कि उनका परिवार बांग्लादेश के जसोर जिला से आाए थे। तब निर्मल आठ साल के थे। सन् 1964 में अपने माता-पिता के साथ आए निर्मल के पिता खीरी तक नहीं पहुंचे और विस्थापन की दौड़ में कलकत्ता (कोलकाता) में ही उनकी मौत हो गई।
 
आज निर्मल 65 साल के बुजुर्ग हैं। उन्होंने बताया कि इनके पास वोटर कार्ड और राशन कार्ड तो बन गए, पर नागरिकता अभी तक नहीं मिली है। यह कानून लागू होने के बाद भारत के नागरिक बन जाएंगे। 
रमेश अहूजा ने बताया कि उनके परदादा लखीमपुर 1967 में आए थे। पूर्वी पाकिस्तान में छोटे बच्चों तक की हत्या होती थी। वहां के लोग हिंदुओं की बस्ती में जबरदस्ती नारेबाजी करते थे। ऐसी हालत में उनके दादाजी वहां से जान बचाकर भागे थे। 
विक्रम ने कहा, ‘सीएए कानून का विरोध करने वालों को एक बार इस कानून के बारे में पढ़ना चाहिए। वे हम लोगों से मिलें, हम उन्हें अपनी दर्दभरी दास्तां सुनाएंगे, तब उन्हें यकीन होगा।’
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