कोचिंग सेंटरों का ‘नियमन’
राजस्थान सरकार कोचिंग सेंटरों को नियमित करने के लिए विधानसभा में जो…
राजस्थान सरकार कोचिंग सेंटरों को नियमित करने के लिए विधानसभा में जो विधेयक लेकर आयी है उससे देश की नई पीढ़ी के युवाओं को घनघोर प्रतियोगी माहौल में कुछ राहत मिलने की उम्मीद करनी चाहिए और कोचिंग सेंटर जिस प्रकार उनका शोषण करते इससे निजात मिलेगी, एेसी अपेक्षा करनी चाहिए। परन्तु इस विधेयक में कोचिंग सेंटरों में प्रवेश की कोई आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इसकी क्या वजह हो सकती है इस बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि कोचिंग सेंटर में वही विद्यार्थी जाता है जो प्रायः इंटरमीटियेट या हायर सैकेंडरी पास होता है। इस समय किसी भी युवा की उम्र 16 साल के लगभग होती है। फिर भी इस शर्त का उल्लेख यदि विधेयक में होता तो यह औऱ भी अच्छा होता है। पिछले बीस साल से राजस्थान का कोटा शहर कोचिंग सेंटरों का मुख्य केन्द्र बना हुआ है। हर साल कोचिंग करने दूरदराज से आये युवा पढ़ाई के दबाव के चलते आत्महत्या भी करते हैं। उन पर मानसिक दबाव बहुत रहता है, इसे दूर करने के लिए विधेयक में प्रावधान किया गया है कि किसी मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति भी होनी चाहिए।
राजस्थान सरकार की मंशा यह दिखाई पड़ती है कि वह युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए मानसिक दबाव में न आने के उपाय करना चाहती है और कोचिंग सेंटरों को कानून में बांध कर युवाओं का भविष्य सुरक्षित करना चाहती है। विधेयक में कोचिंग सेंटरों द्वारा फीस वसूले जाने के बारे में कोई शर्त नहीं रखी गई है। इसके साथ ही कोचिंग सेंटर अपने विज्ञापनों में जिस प्रकार के दावे करते हैं उन पर भी कोई लगाम नहीं है। युवा छात्रों को निश्चित रूप से इनके दावे लुभाते हैं क्योंकि 12वीं पास विद्यार्थी किशोर अवस्था से निकल कर युवावस्था में जाने को तैयार रहते हैं और यह उम्र बहुत ही कच्ची उम्र समझी जाती है जिसकी वजह से उनका भावुक मन आशा व निराशा के बीच झूलता रहता है। एेसे वातावरण को हल्का करने के लिए कोचिंग सेंटरों को चाहिए कि वे केवल पढ़ाई पर ही जोर न दें बल्कि पढ़ाई के दबाव से उबारने के लिए छात्रों के सुस्ताने का भी प्रबन्ध करें। किशोर अवस्था में चारों तरफ प्रतियोगिता का माहौल देख कर छात्र स्वयं ही इतने दबाव में आ जाते हैं कि जरा सी नकारात्मकता भी उनसे बर्दाश्त नहीं होती। इसलिए कोचिंग सेंटरों को उनके सामूहिक मनोरंजन के लिए भी कुछ रास्ते खोजने चाहिए। मनोवैज्ञानिक रूप से एेसे रास्ते बहुत कारगर हो सकते हैं। मगर कोचिंग सेंटर अकेले राजस्थान में ही नहीं हैं बल्कि बहुत से राज्यों में भी हैं।
अतः अखिल भारतीय स्तर पर इनके लिए दिशा नियामक उसूल बनाने की जरूरत है। हालांकि शिक्षा मूल रूप से राज्यों का अधिकार है मगर उच्च शिक्षा समवर्ती सूची में आती है, अतः केन्द्र सरकार को भी इस तरफ सोचना चाहिए। क्योंकि हर प्रमुख कोचिंग सेंटर छात्रों की सफलता के दावे जिस तरह करते हैं उन पर खरा न उतरने के बाद युवाओं में निराशा का वातावरण छा जाता है और वे भारी मानसिक दबाव में आ जाते हैं जिसकी वजह से आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। आत्महत्याओं को रोकने के लिए जरूरी है कि शिक्षण केन्द्रों का माहौल खुशनुमा बनाया जाए और विद्यार्थियों को सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए। राजस्थान का कानून मुख्य रूप से कोचिंग सेंटरों के पंजीकरण व उनके नियमन से जुड़ा हुआ है जिसमंे सभी सेंटरों को न्यूनतम शर्तों का पालन करना होगा जिनके पालन न करने पर कोचिंग सेंटरों पर जुर्माना भी लगाया जायेगा और उनका पंजीकरण रद्द भी कर दिया जायेगा। पहले उल्लंघन पर दो लाख और दूसरे उल्लंघन पर पांच लाख रुपए तथा तीसरे उल्लंघन पर पंजीकरण का रद्दा होना।
कानून की दृष्टि से यह सब जायज है मगर मानवीयता के नजरिये से सोचें तो कोचिंग सेंटरों द्वारा छात्रों के लिए सकारात्मक वातावरण का न बनाना मानसिक दबाव का मुख्य कारण होता है। जबकि जीवन किसी परीक्षा में पास या फेल होने पर ही नहीं टिका रहता है बल्कि जिन्दगी के विभिन्न आयामों पर खरा उतरने पर टिका रहता है। नये कानून के अनुसार सरकार कोचिंग सेंटरों के नियमन के लिए एक प्राधिकरण का गठन राज्य स्तर व जिला स्तर पर किया जायेगा जिसमें एक मनोवैज्ञानिक भी होगा। जिला स्तर पर जिलाधीश इसके मुखिया होंगे व राज्य स्तर पर उच्च शिक्षा सचिव इसके पदेन मुखिया होंगे। यह प्राधिकरण कोचिंग सेंटरों के संचालन पर निगरानी रखेंगे।
राज्य स्तर के प्रधिकरण में सभी शिक्षा विभागों के प्रतिनििध इसमें होंगे और राज्य के पुलिस महानिदेशक का एक प्रतिनििध भी होगा साथ ही कोचिंग सेंटरों के प्रितनििध भी होंगे तथा माता-पिताओं का भी एक प्रतिनििध भी इसमें शामिल होगा। बेशक यह प्राधिकरण वृहद प्रतिनिधित्व के आधार पर चलेगा जिससे हर पक्ष की शिकायतें सुनी जा सकें। उम्मीद की जा रही है कि नये कानून के लागू होने के बाद शिक्षा की दुकानों के रूप मंे उभरे कोचिंग सेंटरों की मनमानी पर लगाम लगेगी। शिक्षा का व्यापार में बदल जाना बहुत गंभीर विषय है। कोचिंग सेंटरों का फलना–फूलना भी इसी सवाल से जुड़ा हुआ है। जिस पर अलग से रोशनी डालने की जरूरत है।