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धार्मिक हस्तियां और विवाह...

04:50 AM Dec 14, 2025 IST | Kiran Chopra
पंजाब केसरी की डायरेक्टर व वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की चेयरपर्सन श्रीमती किरण चोपड़ा

यह महीना शादियों का रहा। कुछ खास शादियां कुछ आम सब तरह की शादियों में जाने का अवसर मिला। सब अलग-अलग अनुभव रहे परन्तु जो शादी बहुत चर्चा में रही और मुझे बहुत अच्छी लगी वो कथावाचक इन्द्रेश जी की है जो बहुत ही भव्यता और संस्कारों, रीति रिवाजों से हुई। जब मैंने इसकी रील देखी तो मुझे भी लगा कि काश मैं भी इस शादी में शामिल हो पाती। सभी बड़े-बड़े कथावाचक संत इकट्ठे थे, ऐसा लग रहा था मानों किसी देवता की शादी हो रही हो। सबसे खास बात थी कि घोड़ी, बारात, बैंड-बाजा सब चल रहा था परन्तु सभी राधे-राधे भजनों की तर्ज पर सभी बाराती नाच रहे थे। बड़ा ही सुन्दर दृश्य और धार्मिक संस्कारों वाला माहौल बना हुआ था। यानि सब कुछ किया गया परन्तु ईश्वर के नाम पर कितना अाध्यात्मिक माहौल था। कथावाचक इन्द्रेश जी अपने माता-पिता का पूरा सम्मान कर रहे थे। यह बता रहे थे कि वो जो आज हैं वो अपने माता-पिता के कारण हैं। खासकर पिता के कारण जिनसे उन्होंने कथा करनी बड़ी छोटी उम्र से सीखी। आज के युवाओं के लिए यह बहुत बड़ा संदेश है। अभी कि इस जोड़े को लेकर कई चर्चाएं चल रही हैं जो बहुत ही गलत हैं। कभी किसी की निजी जिन्दगी में तांकझांक नहीं करनी चाहिए। और मुझे नहीं मालूम यह सच है या झूठ। अगर है भी तो मेरे मन में इन्द्रेश जी के लिए बड़ा सम्मान है। मैंने कभी उनकी कथा नहीं सुनी परन्तु अब जरूर सुनूंगी। मेरे विचार में एक कथा वाचक जो अपनी छोटी उम्र में लाखों लोगों के जीवन में संस्कार भर रहा है। अपने माता-पिता को सम्मान दे रहा है और अपनी बहनों का मान रख रहा है तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है।
हमारे धार्मिक ग्रंथ विवाह को लेकर बहुत ही शुभ और अच्छे संदेशों के साथ भरे पड़े हैं जिन्हें एक प्रेरणा के तौर पर स्वीकार किया गया है और हम सबको आत्मसात् भी करना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का सीता जी से स्वयंवर तथा इसी कड़ी में श्री कृष्ण का विवाह, भगवान विष्णु जी का लक्ष्मी जी से विवाह या फिर भोले शंकर का पार्वती जी से विवाह यह अपने आप में एक बहुत पवित्र संदेश है। जोड़े की विष्णु-लक्ष्मी रूप में पूजा की जाती है। आचार्य लोग उदाहरण देकर इनसे संकल्प करवाते हैं। एक-दूसरे के साथ दु:ख-सुख में डटे रहने के संकल्प को लेकर सात बार अलग-अलग लकीरें पार करवाई जाती हैं। सोशल मी​िडया पर जो वायरल होता है उसे देख लोग पोजिटिव-नैगेटिव राय भी बनाते हैं परन्तु मेरा मानना है कि आज की पीढ़ी विवाह पर पुराने संस्कार एवं आदर्शों का सम्मान भी जरूर करें।
यह आज की नई  पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ा संदेश हो सकता है विशेषकर उस समाज में जहां विवाह जैसे पवित्र बंधन को लेकर युवा पीढ़ी इसे तोड़ने की हद तक जा पहुंचे। तलाक अर्थात् डाइवोर्स जैसी घटनाएं भी उसी समाज में अगर बढ़ रही हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि शादी के पवित्र आदर्शों को निभाया नहीं जा रहा इसलिए जरूरी यह है कि जरूरत से ज्यादा आजादी में नई पीढ़ी जिस सोच के साथ आगे बढ़ रही है उसकी तुलना की बजाए इस चीज पर ध्यान दिया जाए कि विवाह के पवित्र बंधन के धर्म को निभाया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से कुछ धार्मिक तथाकथित बाबा और धार्मिक गुरुओं के चाल-चरित्र और आचरण इसलिए कुख्यात हुए हैं कि उन्होंने किसी भी शिष्या का शारीरिक शोषण किया। वह संत है या कुछ भी हस्ती हो लेकिन शादी के बाद गृहस्थ धर्म का पालन जरूरी है। यह सब मेरी व्यक्तिगत राय नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर लोग एक-दूसरे से जो शेयर कर रहे हैं यह उसका निचोड़ है।
इस कड़ी में कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय का शिप्रा से विवाह भव्यता के मामले में भी काफी चर्चित है। लोग इस पर भी अपनी भावनाएं शेयर कर रहे हैं। सिक्के के दो पहलू होते हैं। अगर किसी कथावाचक ने भव्यता के साथ आयोजन किया है और सारा रुपया-धन अपना लगाया है लेकिन धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन भी शत-प्रतिशत हुआ है और बहुत लंबे अर्से बाद 101 पंडित आचार्य लोग अगर यह शादी करवा रहे हैं तो यह अपने आप में हमारे वेदों मंत्रोच्चारण पर आधारित उस धार्मिक महत्व को भी दर्शाते हैं जो हमारे देवी-देवताओं के विवाह के दौरान उदाहरण हुआ करते थे। शादी जीवन में एक मर्यादित संदेश देती है।
यह दो दिलों का मिलन ही नहीं दो घरानों का एक ऐसा रिश्ता है जो परंपराओं और दु:ख-सुख में साथ खड़ा रहने के लिए निभाया जाता है। इसका पालन किया जाना चाहिए। नकारात्मकता वाले पहलू को नजरअंदाज किया जाना चाहिए और इस पवित्र शादी के बंधन में जो संदेश छिपे हैं जिसके दम पर हमारे दादा-दादी हमारे नाना-नानी आज तक संयुक्त परिवारों में चल रहे हैं उसका आधार विवाह का पवित्र बंधन ही है जिसे आज युवा पीढ़ी फटाफट और मौज मस्ती के इवेंट के रूप में मानती है। विवाह के नियम उसके आदर्श और उसकी पवित्रता कभी समाप्त नहीं होती। कथावाचक इंद्रेश और शिप्रा के विवाह से यही संदेश दिया जाना चाहिए जिसे सकारात्मकता के साथ आत्मसात् किया जा सकता है।

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