भारतीय फौज में सिखों को सम्मान
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसकी फौज में सिख सैनिक बिना किसी रोक-टोक के अपने धार्मिक चिन्हों के साथ अपनी ड्यूटी कर सकते हैं अन्यथा हर देश में किसी न किसी रूप में कई तरह की पाबंदियों के बीच उन्हें अपनी ड्यूटी करनी पड़ती है। अभी हाल ही में अमरीका जैसे देश ने भी एक ऐसा आदेश पारित कर दिया है जिसके तहत अमरीका की फौज में ड्यूटी करने वालों को दाढ़ी रखने पर पाबंदी लगा दी गई है जिसके बाद अब सिख सैनिकों को अगर अमरीका की फौज में कार्यरत रहना है तो उन्हें अपनी दाढ़ी, केश कटवाने होंगे या फिर धार्मिक आजादी और फौज की नौकरी में से किसी एक को चुनना होगा। इस फैसले के बाद से देशभर के सिखों में रोष देखने को मिल रहा है, वहीं हैरानी इस बात की है कि इस आदेश के पारित होने के कई दिन बाद भी अभी तक गुरपंतवंत सिंह पन्नू या अन्य किसी खालिस्तानी नेता का कोई बयान इस फैसले के खिलाफ नहीं आया जो कि साबित करता है कि इन्हें सिखी या सिख मर्यादा के से कोई लेना-देना नहीं है। यह सिर्फ और सिर्फ भारत में आतंक का माहौल पैदा कर उसकेे एवज में अपनी एशो-आराम की जिन्दगी का प्रबन्ध करते हैं।
सिख्स फॉर जस्टिस ने ट्रम्प सरकार से अमेरिका में सिख ट्रक ड्राइवरों को उत्पीड़ित समुदाय के रूप में मान्यता देकर उन्हें टैम्परेरी प्रोटेक्टेड स्टेटस और कमर्शियल ड्राइविंग लाइसेंस प्रदान किए जाने की मांग तो की जा रही है, मगर अमरीकी फौज में सिखों की पहचान खत्म करने पर चुप्पी साधे हुई है जो इनके दोहरे मापदण्ड को दर्शाता है।
भारत में भी कई सिख जत्थेबंदियाें के द्वारा इस फैसले पर आपत्ति जताई गई है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने अमेरिका की इस नीति की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि “ये पहली बार नहीं है जब सिखों को निशाना बनाया गया है। इससे पहले भी पगड़ी हटाने और सिख सैनिकों को अपमानित करने की घटनाएं हो चुकी हैं। यह फैसला न लोकतांत्रिक है, न ही मानवीय। ऐसी जानकारी भी मिल रही है कि शिरोमिण गुरुद्वारा कमेटी अमरीका के गुरुद्वारा साहिब के प्रबन्धकों और अमरीकी सिखों से संपर्क कर इस आदेश के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। अब दूसरी ओर देखा जाए तो भारतीय फौज में सिख सैनिकों को पूर्ण सम्मान दिया जाता है। पगड़ीधारी सिख भारतीय फौज में उच्च पदों पर आसीन रहे हैं और भारत के लोगों की ऐसी भावना भी है कि सिख सैनिकों के रहते उनकी सुरक्षा को किसी तरह का कोई खतरा नहीं हो सकता। एक समय तो ऐसा था जब भारतीय फौज में सबसे अधिक गिनती सिख सैनिकों की ही रहती थी, मगर कुछ समय पूर्व राज्य की जनसंख्या के हिसाब के भर्ती होने और सिख युवकों के विदेशों की ओर पलायन करने के चलते इसमें कुछ कमी देखी गई है, मगर आज भी सिख रैजीमेंट से लेकर शायद फौज की हर रैजीमेंट में सिख फौजी पूर्ण सिख मर्यादा का पालन करते हुए कार्यरत हैं, इसलिए अगर सिखों को फौज की ही नौकरी करनी है तो विदेशों के बजाए उन्हें अपने देश की फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करनी चाहिए।
गुरु गोबिन्द सिंह जी और माता साहिब कौर जी के जोड़ा साहिब तख्त पटना साहिब में सुशोभित होंगे : गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह जी तक सभी गुरु साहिबान की अनेक निशानियां आज भी कई लोग संभाल कर रखे हुए हैं, मगर इसमें से कौन सी निशानियां वाकय ही गुरु साहिबान की हैं, यह तयकर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है और इसका फायदा उठाकर बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने पास रखी वस्तुओं को गुरु काल की बताकर संगत की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं।
बीते दिनों केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी परिवार के द्वारा दावा किया गया कि उनके परिवार के पास गुरु गोबिन्द सिंह जी और माता साहिब कौर जी के पैर के जोड़ा साहिब पिछले 300 सालों से सुरक्षित रखे हुए हैं जिन्हंे 1947 में विभाजन के दौरान उनके पिता होशियार सिंह पुरी, तत्कालीन समय में लेफ्टिनेंट, गलियों से इसे बचाकर लाए और तब से इन्हें दिल्ली के करोल बाग रोहतक रोड स्थित उनके परिवार के यहां रखा गया था मगर उनके चचेरे भाई के देहांत के बाद परिवार ने इन्हें किसी एेतिहासिक गुरुघर को सौंपने का निर्णय लिया गया, मगर इससे पूर्व हरदीप सिंह पुरी और उनके परिवार के द्वारा एक कमेटी का गठन कर इसकी गंभीरतापूर्वक जांच करवाई गई हालांकि इन जोड़ा साहिब का जिक्र महान कोश किताब में भाई काहन सिंह के द्वारा भी किया गया है। इसकी प्रमाणिकता के लिए इस धरोहर की कार्बन टेस्टिंग भी करवाई गई, जांच रिपोर्ट के टाइमिंग मैच करने की रिपोर्ट आई। इसके बाद यह रिर्पोट देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपी गई और उन्हें ‘‘जोड़ा साहिब’’ के दर्शन भी करवाए गए। स. हरदीप सिंह पुरी और उनके पारिवारिक सदस्यांे के द्वारा यह तय किया गया कि ‘‘जोड़ा साहिब’’ को तख्त पटना साहिब कमेटी को सौंपा जाए। परिवार के फैसले के बाद तख्त पटना कमेटी ने इन्हें दिल्ली से एक धार्मिक यात्रा के रुप में तख्त पटना साहिब ले जाने की योजना बनाई जा रही है और इसके बाद इन्हें तख्त पटना साहिब संगत दर्शन के लिए रखा जाएगा, हालांकि दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी इन्हें गुरुद्वारा मोती बाग साहिब में रखने की इच्छुक थी।
सिख श्रद्धालुओं की भावनाओं को समझकर दिए गए पाकिस्तान के वीजा : हर साल गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर सिख श्रद्धालुओं को जत्था पाकिस्तान के ननकाणा साहिब के लिए भेजा जाता है, मगर पहलगांव हमले के बाद दोनों देशों में बढ़ते तनावपूर्ण माहौल के चलते इस बार भारत की सरकार ने वीजा न देने का फैसला लिया था, मगर बाद में सिखों की भावनाओं को समझते हुए सरकार ने अपने फैसले में बदलाव किया और 3000 श्रद्धालुओं को वीजा देने का मन बनाया, हालांकि इस बार वीजा मंजूरी केवल प्रमाणित सिख जत्थेबंिदयों के द्वारा भेजे जाने वाले वीजा फार्मों को ही मिलेगी अन्यथा इससे पूर्व कई निजी संस्थाएं भी वीजा लेने में कामयाब हो जाया करती थी।
पाकिस्तान की ओर से तो कई माह पूर्व ही इस पर निर्णय लेकर बेसब्री से भारत के फैसले का इन्तजार किया जा रहा था, क्यांेकि भारत से जाने वाले श्रद्धालुओं के दम पर उनका कारोबार चलता है, मगर अफसोस कि जब भी भारत से श्रद्धालुगण पाकिस्तान जाते हैं उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, पर आज तक पाकिस्तान प्रशासन के द्वारा उन दिक्कतों को दूर करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। सिख श्रद्धालुओं की ओर से अब करतारपुर कोरीडोर खोलने की मांग भी तेजी से उठाई जाने लगी है, क्योंकि अभी भी लाखों सिख श्रद्धालु ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक करतारपुर साहिब कोरीडोर के दर्शन नहीं किए हैं इसलिए अगर सरकार सुरक्षा को ध्यान में रखकर चौकसी के बीच श्रद्धालुओं को करतारपुर साहिब के दर्शनों की मंजूरी दे देती है तो यह मोदी सरकार का एक और बड़ा तोहफा सिख समाज के लिए होगा।