Top NewsIndiaWorld
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

मतदाता सूची का पुनरीक्षण

04:49 AM Jul 12, 2025 IST | Shera Rajput
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया को रोकने से इन्कार कर दिया है। क्योंकि चुनाव आयोग के पास ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार है। साथ ही सर्वोच्च न्याालय ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को मतदाताओं की पहचान के पुनः सत्यापन के ​िलए वैध दस्तावेज मानने काे कहा है। अदालत का कहना है इन तीनों को शामिल करना न्याय के हित में होगा। शीघ्र अदालत की यह टिप्पणी बिहार मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर 10 याचिकाओं की सुनवाई के बाद आई है, जिनमें इस प्रक्रिया की आलोचना मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए की गई है क्योंकि इसमें केवल 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं को ही पुनः सत्यापन के लिए बाध्य किया गया है और ऐसा करने के लिए उन्हें आधार कार्ड, मतदाता फोटो पहचान पत्र जैसे सरकारी पहचान पत्रों का उपयोग नहीं करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सवाल भी चुनाव आयोग से पूछे हैं।
'विशेष गहन पुनरीक्षण' करने के लिए पैनल के अधिकार की व्याख्या करें, समीक्षा प्रक्रिया की वैधता की व्याख्या करें, और इस अभ्यास का समय बताएं, अर्थात चुनाव से ठीक पहले। चुनाव आयोग से यह भी पूछा गया कि उसने इस प्रक्रिया को 2025 के बिहार चुनाव से क्यों जोड़ा है, जो याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया एक और बड़ा सवाल है, जिन्होंने कहा कि मतदान से महीनों पहले मतदाता सूची में संशोधन नहीं किया जा सकता। उम्मीद है कि 28 जुलाई को जब अदालत पुनः बैठेगी तो इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे। इससे पहले आज न्यायालय ने संकेत दिया कि समस्या मतदाता सूची के पुनरीक्षण से संबंधित नहीं है, बल्कि समय से संबंधित है, तथा कहा कि उसे चुनाव आयोग की इस कार्य को पूरा करने की क्षमता पर "गंभीर संदेह" है-वास्तविक मतदाताओं को बाहर किए बिना तथा व्यक्तियों को अपील का अधिकार दिए बिना चुनाव के समय तक। अदालत ने पूछा, "आपकी प्रक्रिया में समस्या नहीं है, समस्या समय की है। हमें इस बात पर गंभीर संदेह है कि क्या आप इस प्रक्रिया को पार कर पाएंगे। चुनाव आयोग के यह कहने पर कि आधार तकनीकी रूप से नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा कि नागरिकता का मुद्दा गृह मंत्रालय का है।
आजादी के 78 सालों के दौरान मतदाता सूचियों का संशोधन कई बार हो चुका है। आपत्तियां भी उठती रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में यह फैसला दिया था कि आयोग किसी की भी नागरिकता तय नहीं कर सकता। व्यक्ति को खुद साबित करना है कि वह भारत का नागरिक है। चुनाव आयोग को कुछ दस्तावेजों के आधार पर तय करना होता है कि कोई व्यक्ति पात्र मतदाता है या नहीं। सवाल यह है ​िक निर्वाचन आयोग की पूरी कवायद संदेह और विरोधाभासों से भरी रही, ​जिसको लेकर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए और मामला शीर्ष अदालत तक जा पहुंचा।
इसके बजाय, चुनाव आयोग को आधार, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड जैसे अधिक सर्वव्यापी पहचान दस्तावेजों को स्वीकार करके एक अधिक व्यावहारिक और सशक्त दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। आधार की सर्वव्यापकता और कई सरकारी सेवाओं के लिए इसकी अनिवार्यता इसे पहचान का एक आदर्श प्रमाण बनाती है। इसी प्रकार, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड व्यापक रूप से प्रचलित हैं, खासकर कृषक आबादी के बीच, क्योंकि ये भारत की कल्याणकारी पहलों के केंद्र में हैं। जन्म पंजीकरण, स्कूल नामांकन और व्यापक दस्तावेज़ीकरण में बिहार की ऐतिहासिक चुनौतियों का अर्थ है कि बड़ी संख्या में वास्तविक मतदाताओं के पास इन 11 में से कोई भी सांकेतिक दस्तावेज़ नहीं हो सकता है। उनकी भागीदारी को सुगम बनाने की ज़िम्मेदारी राज्य और उसके संस्थानों, जिनमें चुनाव आयोग भी शामिल है, की है। वर्तमान कठोर दस्तावेज़ी आवश्यकताएं मतदाताओं, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े और वंचितों पर, अनावश्यक बोझ डालती हैं, जिन्हें पहले से ही नौकरशाही से जुड़ने में भारी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, और व्यापक रूप से मताधिकार से वंचित होने का जोखिम है। बिहार की वर्तमान व्यवस्था हर मतदाता को एक संभावित गैर-नागरिक के रूप में मानती प्रतीत होती है, जब तक कि अन्यथा साबित न हो जाए।
यह सवाल भी सबके सामने है कि आधार कार्ड को इस पूरी प्रक्रिया के दौरान बाहर क्यों किया गया, जबकि व्यक्ति की पहचान का सबसे पुख्ता दस्तावेज इसे ही माना गया है। यदि बंगलादेशी या रोहिंग्या घुसपैठिये फर्जी आधार कार्ड बनवा रहे हैं तो इसके लिए जिम्मेदार दोषपूर्ण व्यवस्था है। ऐसी रिपोर्टें सामने आई हैं ​िक बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में आबादी से ज्यादा आधार कार्ड बने हुए हैं। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग का भी दायित्व है कि ऐसे लोगों को मतदाता सूचियों से बाहर करे। पुनरीक्षण में अब कुछ दिन शेष हैं। 65 फीसदी से ज्यादा गणना प्रपत्र भरे जा चुके हैं। चुनाव आयोग को सघन सत्यापन ईमानदारी और पारदर्शिता से करना होगा, अन्यथा विपक्ष को चुनाव आयोग की ​िवश्वसनीयता पर सवाल उठाने और उसे सत्तारूढ़ दल की कठपुतली करार देने का अवसर मिल जाएगा। लोकतंत्र में चुनाव आयोग की साख बनी रहनी चाहिए अन्यथा अराजकता पैदा हो सकती है।

Advertisement
Advertisement
Next Article