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भारत-चीन शांति का रोडमैप

भारत और चीन के बीच रिश्तों में फिर सुधार दिखाई दे रहा है राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार…

10:27 AM Dec 19, 2024 IST | Aditya Chopra

भारत और चीन के बीच रिश्तों में फिर सुधार दिखाई दे रहा है राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार…

भारत और चीन के बीच रिश्तों में फिर सुधार दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीन यात्रा के दौरान दोनों देशों ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की। शांति के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए 6 सूत्रों पर सहमति हुई और दोनों देशों ने सीमा विवाद के निष्पक्ष समाधान पर जोर दिया। दोनों देशों के ​िरश्तों में सुधार एक राहत भरी खबर है।

वर्ष 1954 के जून माह में चीन, भारत व म्यांमार द्वारा शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धान्त यानी पंचशील प्रवर्तित किये गये। पंचशील चीन व भारत द्वारा दुनिया की शान्ति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान था और आज तक दोनों देशों की जनता की जुबान पर है। देशों के सम्बन्धों को लेकर स्थापित इन सिद्धान्तों की मुख्य विषयवस्तु है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान किया जाये, एक-दूसरे पर आक्रमण न किया जाये, एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाये और समानता व आपसी लाभ के आधार पर शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व बरकारार रखा जाये परन्तु चीन ने मैत्री सम्बन्धों को ताक पर रखकर 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत की बहुत सारी भूमि पर कब्जा करते हुए 21 नवम्बर 1962 को एकपक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी। उस समय से दोनों देशों के सम्बन्ध आज तक सामान्य नहीं हो पाए हैं। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने चीन से दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया परन्तु भारत को सफलता नहीं मिली, क्योंकि चीन ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अन्यायपूर्ण ढंग से पाकिस्तान का एकतरफा समर्थन किया था। 23 सितम्बर, 1965 को भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का समझौता हो गया। अतः चीन के सारे इरादों पर पानी फिर गया।

पूर्वी लद्दाख में गतिरोध एलएसी पर गश्त समझौते के बाद काफी हद तक समाप्त हो चुका है। अजीत डोभाल और चीन के​ विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत में दोनों पक्षों ने जमीनी स्तर पर शांतिपूर्ण स्थिति सुनिश्चित करने की जरूरत पर बल दिया ताकि सीमा पर मुद्दे द्विपक्षीय संबंधों के सामान्य विकास में बाधा न बने। निकट भविष्य में कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होती है तो यह भारत के धर्म प्रेमियों के लिए राहत की बात होगी। कैलाश मानसरोवर की यात्रा 2020 से बंद है। पिछले साल नेपाल के रास्ते चीन ने खोले जरूर थे लेकिन कड़े ​िनयमों के चलते भारतीयों के लिए यह रास्ता व्यावहारिक रूप से बंद है। यात्रा को बंद करने का कारण कोरोना महामारी बताया गया था लेकिन वास्तविक कारण भारत-चीन सीमा पर तनाव पैदा होना था। कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर पहला समझौता 2013 में तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के ​िवदेश मंत्री के बीच हुआ था। इसमें लिपुलेख दर्रे से यात्रा का रास्ता खोला गया था। दूसरा समझौता वर्ष 2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुआ था। कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का निवास माना गया है। हिन्दू मान्यताओं में मानसरोवर को वो झील बताया गया है जिसे भगवान ब्रह्मा ने बनाया था। यह झील कैलाश पर्वत के नीचे स्थित है। जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ रहते हैं। विज्ञान की मानें तो कैलाश पर्वत ब्रह्मांड का केन्द्र है। यात्रा दुर्गम जरूर है लेकिन भारतीय कैलाश पर्वत के दर्शन करने के लिए पूर्ण आस्था के साथ जाते हैं। भारत-चीनी संबंधों का शांतिपूर्ण होना न केवल दोनों देशों के हित में है बल्कि विश्व शांति के लिए भी यह जरूरी है। दोनों देश अब बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और समान हितों को साझा करते हैं।

शांतिपूर्ण संबंधों के चलते भारत-चीन-रूस त्रिकोण दुनिया में सबसे शक्तिशाली बनकर उभर सकता है। भारत, रूस, चीन त्रिकोण बनाने का विचार सबसे पहले पूर्व रूसी विदेश मंत्री और खुफिया सेवा के पूर्व निदेशक येव गेनी प्रिमाकोव ने किया था। पश्चिमी देश ऐसा होने नहीं देना चाहते। क्योंकि उन्हें डर है कि ऐसा हुआ तो दुनिया में पश्चिम का प्रभुत्व खतरे में पड़ जाएगा। अब जबकि दोनों देशों में शांति का रोडमैप तैयार हो गया है तो दोनों देशों को चाहिए कि ‘‘बीती ताहि बिसार दे’’ और संबंधों को मजबूत बनाए। आर्थिक हितों के संरक्षण के लिए सामरिक सहयोग की जरूरत को नजरंदाज नहीं ​िकया जा सकता। आर्थिक संबंधों की मजबूती के लिए पहली शर्त यही होती है कि सीमाओं पर शांति बनी रहे लेकिन चीन बार-बार अडं़गा डालता रहता है। बेहतर यही होगा कि भारत-चीन सीमा मुद्दे का ​िनष्पक्ष, उचित और स्वीकार्य समाधान तलाशे।

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