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आरएसएस और राहुल गांधी

राजनीति में शब्दों का इस्तेमाल सही तरीके से किए जाने की जरूरत होती है। अपरिपक्वता के चलते शब्दों का इस्तेमाल कई बार बहुत महंगा पड़ता है।

04:34 AM Jul 05, 2019 IST | Ashwini Chopra

राजनीति में शब्दों का इस्तेमाल सही तरीके से किए जाने की जरूरत होती है। अपरिपक्वता के चलते शब्दों का इस्तेमाल कई बार बहुत महंगा पड़ता है।

राजनीति में शब्दों का इस्तेमाल सही तरीके से किए जाने की जरूरत होती है। अपरिपक्वता के चलते शब्दों का इस्तेमाल कई बार बहुत महंगा पड़ता है। कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके राहुल गांधी आज मानहानि मामले में मुम्बई की अदालत में पेश हुए। मामला वर्ष 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ने का था। यद्यपि अदालत ने उन्हें 15 हजार के मुचलके पर जमानत दे दी लेकिन राहुल गांधी ने खुद को बेकसूर बताते हुए कहा कि उनके शब्दों को गलत ढंग से लिया गया। राहुल गांधी को इस माह कई अदालतों के चक्कर लगाने होंगे। इसके अलावा 4 और मामले देश की अलग-अलग अदालतों में मानहानि के चल रहे हैं। 
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लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा और आरएसएस के खिलाफ उन्होंने जमकर हल्ला बोला था और उनके खिलाफ इन बयानों को लेकर ही कई मामले दर्ज कराए गए थे। चुनावों के दौरान राफेल डील पर दिए गए बयान पर भी उन्होंने अपनी काफी जगहंसाई कराई थी और सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर उन्हें माफी मांगने को मजबूर होना पड़ा था। राहुल गांधी के बयान ‘सभी चोरों का नाम मोदी होता है’, ‘चौकीदार चोर है’ भी काफी चर्चित हुए थे। इस पर भी बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने मानहानि का केस कर रखा है। राहुल गांधी ने बार-बार पूरी तरह से राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है।
राहुल गांधी ने कभी प्रतिबंधित संगठन सिमी की तुलना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से की थी और कभी महात्मा गांधी की हत्या में संघ का हाथ बताया था। मैंने संघ को बहुत करीब से देखा है। मैं संघ को उस समय से जानता हूं ​जब राहुल गांधी पैदा भी नहीं हुए होंगे। पत्रकार का धर्म हकीकत को सबके सामने सच्चाई और बिना किसी द्वेष के पेश करना होता है। संघ निश्चित रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रवर्तक है और हिन्दू संस्कृति को भारतीय संस्कृति के रूप में देखता है मगर इसकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह करना रात को दिन बताने जैसा है। आजादी से पहले जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपने वर्धा आश्रम के सामने लगे संघ के शिविर में गए थे तो उन्हें संघ के स्वयंसेवकों की अनुशासनप्रियता और जाति-पाति के बन्धन से दूर देखकर कहना पड़ा था कि यदि कांग्रेस के पास ऐसे अनुशासित कार्यकर्ता हों तो आजादी का आंदोलन अंग्रेजों काे देश छोड़ने के लिए बहुत पहले मजबूर कर देता। 
इतना ही नहीं महान समाजवादी चिंतक और जननेता डा. राममनोहर लोहिया ने भी संघ के बारे में कहा था कि यदि मेरे पास संघ जैसा संगठन हो तो पूरे देश में पांच वर्ष के भीतर ही समाजवादी समाज की स्थापना कर सकता हूं। संघ ऐसा संगठन है जिसकी प्रशंसा स्वयं पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी की थी। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने जिस प्रकार भारत की सेनाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए खुद पूरे देश में आगे बढ़कर नागरिक क्षेत्रों में मोर्चा सम्भाला था उसे देखकर स्वयं पं. नेहरू को इस संगठन की राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा करनी पड़ी थी आैर उसके बाद 26 जनवरी की परेड में संघ के गणवेशधारी स्वयंसेवकों को शामिल किया गया था। 
1965 के भारत-पाक युद्ध के समय भी संघ के स्वयंसेवकों ने पूरे देश में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में पुलिस प्रशासन की पूरी मदद की थी और छोटे से लेकर बड़े शहरों तक में इसके गणवेशधारी  कार्यकर्ता नागरिकों को पाकिस्तानी हमले के समय सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया करते थे। इनकी जुबान पर हमेशा ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष रहता है। भारत में हिन्दू संस्कृति की बात करना क्या गुनाह है? संघ पर महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रतिबंध जरूर लगाया गया था मगर बापू की हत्या में संघ के किसी कार्यकर्ता का हाथ नहीं पाया गया था। हिन्दू महासभा के नेता स्व. वीर विनायक दामोदर सावरकर को भी इस हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था मगर उनकी राष्ट्रभ​क्ति पर भी क्या कोई कांग्रेसी प्रश्नचिन्ह लगा सकता है? सावरकर के गुरु बंगाल के क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा थे। संघ और हिन्दू महासभा की विचारधारा में भी मूलभूत अन्तर शुरू से ही रहा है। हिन्दू सभा राजनीति का हिन्दुकरण और हिन्दुओं के सैनिकीकरण के पक्ष में थी ​जबकि संघ के संस्थापक डा. बलिराम केशव हेडगेवार का लक्ष्य हिन्दुओं का मजबूत सांस्कृतिक संगठन स्थापित करना था।
मुझे लगता है कि राहुल गांधी इतिहास से अनभिज्ञ हैं। राहुल गांधी का कांग्रेस में महत्व इसलिए नहीं है कि वह एक सांसद हैं​ बल्कि इसलिए है कि वह नेहरू-गांधी परिवार के वारिस हैं। आज की नई युवा पीढ़ी को इस बात से कोई खास लेना-देना नहीं है​ बल्कि उनकी योग्यता से लेना-देना है। राहुल ने जिस नासमझी का परिचय दिया है, इस कारण राष्ट्र ने उन्हें चुनावों में ठुकराया है। काश! उन्हें पहले अमेठी का जिलाध्यक्ष बनाया होता, वह पार्टी के अग्रिम संगठनों में रहकर काम करते। काश! उन्होंने युवा कांग्रेस में रहकर काम किया होता। उनके भगवा आतंक की थ्योरी भी पूरी तरह 2014 के चुनाव में नाकाम हो गई थी। यही कारण है कि राष्ट्र राहुल गांधी को नायक के योग्य स्वीकार नहीं कर रहा।
याद रहना चाहिए कि जब जहाज डूबता है तो चूहे पहले भागते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस अपने विधायकों को भी सम्भाल नहीं पा रही। हम तो उस राजतंत्र के ध्वजवाहक रहे हैं ​जिसमें सम्राट चन्द्रगुप्त का प्रधानमंत्री चाणक्य राजमहलों में न रहकर निर्जन कुटिया में निवास इसलिए किया करता था जिससे कि उसे आम आदमी की परिस्थितियों का पूरा ज्ञान हो सके और वह राजा को जरूरी कदम उठाने की सलाह दे सके। काश! उनके सलाहकार निर्जन कुटिया में रहते होते। राहुल गांधी और आरएसएस के सम्बन्ध में मैं पाठकों के समक्ष ऐसी बातें उजागर करने जा रहा हूं जिसे आज तक न तो जनता और न ही देश जानता है। ये कुछ व्यक्तिगत बातें हैं जो मैं शायद पहली बार लेखनी से प्रस्तुत करूंगा। कृपया उस सम्पादकीय का इंतजार करें।
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