दरभंगा में बोले RSS प्रमुख, भारत में रहने वाले सभी हिंदू, देश की सांस्कृतिक प्रकृति के कारण पनपी है विविधता
मोहन भागवत ने सोमवार को बिहार में कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोग ‘‘परिभाषा’’ के अनुसार हिंदू हैं और देश की सांस्कृतिक प्रकृति के कारण देश में विविधता पनपी है।
12:27 AM Nov 29, 2022 IST | Desk Team
आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ) प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को बिहार में कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोग ‘‘परिभाषा’’ के अनुसार हिंदू हैं और देश की सांस्कृतिक प्रकृति के कारण देश में विविधता पनपी है। बिहार के अपने चार दिवसीय दौरे के समापन से पहले दरभंगा में आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे सरसंघचालक ने कहा कि, लोगों को यह समझना चाहिए कि क्योंकि वे हिंदुस्थान में रहते हैं वे सभी हिंदू हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हिंदुत्व सदियों पुरानी संस्कृति का नाम है जिसके लिए सभी विविध धाराएं अपनी उत्पत्ति का श्रेय देती हैं। अलग-अलग शाखाएं उत्पन्न हो सकती हैं और एक-दूसरे के विपरीत प्रतीत हो सकती हैं, लेकिन वे पाते हैं कि सभी की शुरुआत एक ही स्रोत से है।’’
संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘दूसरों में खुद को देखना, महिलाओं को वासना की वस्तु नहीं बल्कि मां के रूप में देखना और दूसरों के धन का लालच नहीं करना जैसे मूल्य हिंदू लोकाचार को परिभाषित करते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हिंदुत्व एक सूत्र है, जो सभी को जोड़ता है। जो अपने को हिन्दू मानते हैं, वे सब हिन्दू हैं। जिनके पूर्वज हिंदू थे, वे सब भी हिंदू हैं।’’ भागवत की इस तरह की टिप्पणियों ने पूर्व में विवादों को जन्म दिया है। उन्होंने कहा, जो कोई भी भारत माता की प्रशंसा में संस्कृत के छंदों को गाने के लिए सहमत है और भूमि की संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है, वह हिंदू है।’’ भारत की प्राचीन समय की शक्ति को याद करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संघ का उद्देश्य खोई हुई महिमा को वापस लाना है।
भागवत ने कहा कि इतने महान राष्ट्र के निर्माण के लिए एक अनुकूल सामाजिक वातावरण की आवश्यकता है जिसे संघ बनाना चाहता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे स्वयंसेवक शाखाओं में सिर्फ एक घंटा बिताते हैं। दिन के बचे हुए 23 घंटे सरकारी सहायता का एक पैसा स्वीकार किए बिना, निस्वार्थ समाज सेवा प्रदान करने में व्यतीत होते हैं।’’ उन्होंने कहा कि, संघ को अस्तित्व में आना पड़ा क्योंकि बड़े पैमाने पर समाज अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत नहीं था और यदि सभी लोग निःस्वार्थ सेवा में लग जाएं तो लोगों को संघ की पट्टी पहनने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। भागवत ने कहा कि, तब प्रत्येक नागरिक अपने आप में एक स्वयंसेवक माना जाएगा।
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