ग्रामीण भारत : बदलती तस्वीर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक महात्मा गांधी नैशनल रूरल एम्प्लाइमैंट गारंटी एक्ट यानि मनरेगा का नाम बदलकर पूज्य बापू रूरल एपलायमैंट गारंटी बिल 2025 कर दिया है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इस पर मोहर लगा दी है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल मनरेगा का नाम बदलने की आलोचना कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की योजनाओं का नाम बदलकर उन्हें अपनी योजना बताकर पेश किया है। भाजपा ने मनरेगा को कभी कांग्रेस की विफलततों का प्रतीक बताया था। लोकतंत्र में विपक्ष को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है लेकिन मनरेगा का नाम पूज्य बापू के नाम पर करने से योजना की मूल भावना और उद्देश्य पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। महात्मा गांधी की जगह पूज्य बापू शब्द का इस्तेमाल उनके आदर्शों को सम्मान देना ही है। केन्द्र सरकार ने नाम बदलने के साथ-साथ योजना को विस्तार भी दिया है। अब इस योजना के तहत साल भर में रोजगार के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 कर दी गई है और मजदूरी संशोधित कर 240 कर दी गई है जिससे ग्रामीण इलाकों में आय सुरक्षा और मजबूत होने की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के शासनकाल में इस योजना की शुरूआत 2005 में की गई थी। यह दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक कायर्क्रम रहा। मनरेगा योजना उनकी बड़ी राजनीतिक सफलता भी रही जिन्होंने ग्रामीण भारत में रोजगार के अधिकार को कानूनी जामा पहनाया। गरीबों का भरोसा जीता। डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दूसरी बार यूपीए सरकार के सत्ता में आने का श्रेय भी मनरेगा योजना को ही दिया जाता है। डा. मनमोहन सिंह की राजनीतिक शैली, विद्वतापूर्ण आैर संयमित थी लेकिन मनरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून और वित्तीय नीतियों में सुधार उनकी बड़ी उपलब्धि रहे। दुनियाभर के देशों में सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को प्रभावित करने वाली नीतियों में निरंतर बदलाव होता रहता है। देखना यह होता है कि कौन सी योजना आबादी के कमजोर वर्गों को भुखमरी से सुरक्षा प्रदान करती है। इस दृष्टि से मनरेगा ने भारत में सफलता की कहानी लिखी। यह योजना ग्रामीण परिवारों को न्यूनतम रोजगार की कानूनी गारंटी देती है। इस योजना के तहत 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति काम के लिए आवेदन कर सकता है। इस योजना के तहत सड़क, तालाब, नहर, खेतों की मेड़ और जल संरक्षण जैसे कार्य कराए जाते हैं। मजदूरी का भुगतान सीधे बैंक या पोस्ट आफिस के खाते में किया जाता है। यदि 15 दिन में काम न मिले तो बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है। योजना में कम से कम एक तिहाई महिलाओं की भागादारी अनिवार्य है। इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2014-15 और वित्त वर्ष 2024-25 के बीच 3029 करोड़ कार्य दिवस सृजत किए गए जो पिछले दशक की तुलना में 82 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। महिलाओं की भागादारी में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। ग्रामीणों की आय में बढ़ौतरी हो रही है। देशभर में 68 हजार से अधिक अमृत सरोवरों का निर्माण किया गया है। व्यक्तिगत परिसम्पत्तियों के सृजन में भी वृद्धि हुई है। मनरेगा के कारण ग्रामीणों के जीवन में सामाजिक और आर्थिक बदलाव हुआ जिससे शहरों की ओर पलायन में कमी आई। यह योजना पूरी तरह से स्वदेशी और अभिनव प्रयोग साबित हुई। इस योजना की तारीफ संयुक्त राष्ट्र आैर विश्व बैंक जैसी संस्था भी कर
चुकी है।
विकसित देशों में एक बेरोजगार स्त्री या पुरुष रोजगार दफ्तर में अपना पंजीयन कराता है और रोजगार तलाशने के दौरान उसे बेरोजगारी भत्ता मिलता है। भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है, क्योंकि श्रम बाजार संगठित नहीं है। इसकी जगह हमारे यहां मनरेगा जैसी योजना है, जो ग्रामीण आबादी को कवर करती है। इसके तहत काम की मांग सूखे और अकाल के दौरान बहुत बढ़ जाती है। इसके तहत काम की मांग तब घट जाती है जब श्रम बाजार की स्थिति सुधरती है और कृषि क्षेत्र में श्रम की मांग बढ़ जाती है। इस योजना के तहत रोजगार की मांग घटना अच्छी निशानी है। अगर यह योजना अनावश्यक हो जाये तो उसका अर्थ होगा कि ग्रामीण भारत में रोजगार की कमी नहीं रही। पर फिलहाल ये दोनों ही स्थितियां नहीं हैं। कोविड के दौरान मनरेगा में काम की मांग बेतहाशा बढ़ी। वर्ष 2020-21 में इस मद में सरकारी खर्च उसके बजटीय आवंटन से दोगुना बढ़कर करीब 1.2 लाख करोड़ हो गया था। कुछ राज्यों में मनरेगा के तहत ग्रामीण आवास के अलावा दूसरे निर्माण भी कराए जाते हैं। इससे ग्रामीणों को अपने घर के पास ही काम मिल रहा है। शुरूआती दौर में इस योजना में फर्जीवाड़े की शिकायतें िमली थीं लेिकन केन्द्र सरकार द्वारा श्रमिकों के भुगतान को आधार से जोड़ने और बायोमीट्रिक कदम उठाने से फर्जीवाड़े पर रोक लगी है। दरअसल मनरेगा लोक निर्माण योजना, प्रयोगों और बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं का मिलाजुला रूप है। महाराष्ट्र में कई साल के भीषण सूखे की पृष्टभूमि में 1973 में रोजगार गारंटी योजना की शुरुआत हुई थी। वह राज्य सरकार द्वारा िवत्तपोषित योजना थी। यह योजना भी काफी सफल रही थी। यद्यपि मोदी सरकार मुफ्त राशन, पीएम किसान और लड़कियों के लिए डायरेक्ट बेनिफिट योजनाएं चला रही है लेकिन ग्रामीण भारत में रोजगार कार्यक्रम की उपयोगिता बनी हुई है। मोदी सरकार ने इस योजना के तहत रोजगार के दिन और मजदूरी बढ़ाकर एक अच्छी पहल की है। इससे ग्रामीण भारत को काफी लाभ होगा। इससे सामुदायिक भागीदारी, जन भागीदारी के साथ ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने के लिए अधिक ध्यान केन्द्रित किया जा सकेगा।

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