'सिर्फ भारत ही, चीन पर क्यों नहीं...', अमेरिकी टैरिफ की विदेश मंत्री S. Jaishankar ने की कड़ी निंदा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर 50 फीसदी टैरिफ (शुल्क) लगाया गया है। इस पूरे मामले पर अब भारत के विदेश मंत्री S. Jaishankar ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब चीन, जो रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदता है, उस पर कोई टैरिफ नहीं लगाया गया, तो फिर भारत को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
चीन को क्यों छूट, भारत से सख्ती?: S. Jaishankar
S. Jaishankar ने कहा कि, "तेल खरीदने की बात होती है तो सभी निगाहें भारत पर होती हैं, जबकि चीन रूस से कहीं ज्यादा तेल आयात करता है। अगर भारत को लेकर तर्क दिए जाते हैं तो वही तर्क चीन पर क्यों नहीं लागू होते?"उन्होंने अमेरिका और यूरोप पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर रूस से तेल खरीदना गलत है, तो खुद अमेरिका और यूरोपीय देश भी क्यों खरीदते हैं? उन्होंने दो टूक कहा कि, "अगर आपको पसंद नहीं है कि भारत रूस से तेल ले रहा है, तो आप हमसे भी व्यापार मत कीजिए।"

ट्रंप के संघर्षविराम दावे पर पलटवार
डोनाल्ड Trump ने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम करवाने का दावा किया था। इस पर विदेश मंत्री S. Jaishankar ने साफ किया कि भारत ने कभी किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि 1970 से लेकर अब तक भारत ने पाकिस्तान से बातचीत में किसी बाहरी ताकत को दखल देने की अनुमति नहीं दी है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत की नीति बिल्कुल स्पष्ट है—हम अपनी रणनीतिक स्वायत्तता, किसानों के हित, और व्यापार से जुड़े मामलों पर कोई समझौता नहीं करेंगे।

Trump की विदेश नीति पर तीखी टिप्पणी
S. Jaishankar ने ट्रंप की विदेश नीति को लेकर भी तीखे शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि "हमने ऐसा कोई अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं देखा जिसने विदेश नीति को इतने सार्वजनिक और असामान्य तरीके से चलाया हो।" जयशंकर ने यह भी कहा कि टैरिफ लगाना अगर व्यापार के दायरे में हो तो समझा जा सकता है, लेकिन जब टैरिफ का इस्तेमाल दूसरे राजनीतिक या रणनीतिक मुद्दों पर दबाव बनाने के लिए किया जाता है, तो वह अनुचित और अस्वीकार्य होता है।

भारत-चीन संबंधों की स्थिति
चीन को लेकर भी S. Jaishankar ने कई अहम बातें कही। उन्होंने बताया कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद 1950 के दशक से चला आ रहा है, जो आज भी गंभीर है। उन्होंने कहा कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं बनी रहती, तब तक दोनों देशों के बीच संवाद आगे नहीं बढ़ सकता। उन्होंने याद किया कि 2009 से 2013 के बीच जब वह चीन में भारत के राजदूत थे, उस समय भी व्यापार घाटा भारत के लिए एक बड़ी चिंता थी। साथ ही उन्होंने गलवान संघर्ष को भारत-चीन रिश्तों के लिए एक कठिन मोड़ बताया।