अमित शाह से मिले साधु-संत, बंगाल में हिंदुओं की सुरक्षा पर जताई चिंता
कोलकाता में विभिन्न धार्मिक संगठनों के साधु-संतों ने अमित शाह से भेंट की…
कोलकाता में रविवार को विभिन्न धार्मिक संगठनों के साधु-संतों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भेंट की। इस दौरान पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों में हिंदुओं पर कथित अत्याचार और बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
विवेकानंद के घर पर बैठक
यह बैठक स्वामी विवेकानंद के पैतृक निवास पर आयोजित हुई थी, जहाँ शाह ने विवेकानंद को पुष्पांजलि अर्पित की। बैठक में साधु-संतों ने बताया कि गृह मंत्री ने हिंदू धार्मिक नेताओं से मानवता से जुड़े बड़े मुद्दों के समाधान के लिए एकजुट होकर कार्य करने का आह्वान किया।
हिंदू विरासत और हिंसा पर बात
पद्मश्री सम्मानित कार्तिक महाराज ने कहा कि बातचीत में भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को रेखांकित किया गया और हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा की ओर ध्यान दिलाया गया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह मुलाकात राजनीतिक चर्चा के लिए नहीं, बल्कि साधु-संतों का आशीर्वाद लेने के उद्देश्य से हुई थी।
सामाजिक-आध्यात्मिक उद्देश्यों पर जोर
अंतरराष्ट्रीय वेदांत सोसाइटी की संयुक्त महासचिव तेजमयी मां ने कहा कि बातचीत का मुख्य विषय यह था कि सामाजिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों को पाने के लिए सामूहिक प्रयास कैसे किया जाए। सभी उपस्थित संतों ने एकजुटता और सहयोग की भावना को महत्वपूर्ण बताया और इस बात पर सहमति जताई कि आम लोगों के कल्याण के लिए आध्यात्मिकता को दैनिक जीवन में कैसे अपनाया जा सकता है।
सनातन धर्म की रक्षा पर जोर
न्यू बैरकपुर स्थित अंतरराष्ट्रीय वेदांत सोसाइटी की संयोजक वेदप्रणा माता ने कहा, ‘‘चर्चा का मुख्य विषय सनातन धर्म था। कुछ वक्ताओं ने चिंता जताई कि पश्चिमी देश वर्तमान में भारत की तुलना में सनातन मूल्यों को अधिक सक्रियता से अपना रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं। इन मूल्यों को अपने देश में संरक्षित और मजबूत करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया।’’
भारतीय संस्कृति और मानवता का संदेश
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के महत्व को भी रेखांकित किया गया, साथ ही इस साझा विश्वास पर भी जोर दिया गया कि सभी धर्मों का सार मानवता में निहित है।
संतों की सामाजिक भूमिका पर विचार
एक संत ने बताया कि शाह ने सभी साधु-संतों से यह विचार करने का अनुरोध किया कि क्या उनकी भूमिका केवल पूजा-पाठ और कीर्तन तक सीमित रहनी चाहिए या समाज के ज्वलंत मुद्दों पर भी सक्रिय भागीदारी जरूरी है।