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सफला एकादशी 2019: इस विधि से सफला एकदाशी के दिन पूजा करें, मिलेगी जीवन में सफलता

एकादशी को हिंदू धर्म में बेहत ही महत्वपूर्ण मानते हैं। शास्‍त्रों में बताया गया है कि भगवान विष्‍णु की पूजा एकादशी के दिन करने और व्रत रखने से सुख और शांति घर में आती है।

06:50 AM Dec 22, 2019 IST | Desk Team

एकादशी को हिंदू धर्म में बेहत ही महत्वपूर्ण मानते हैं। शास्‍त्रों में बताया गया है कि भगवान विष्‍णु की पूजा एकादशी के दिन करने और व्रत रखने से सुख और शांति घर में आती है।

एकादशी को हिंदू धर्म में बेहत ही महत्वपूर्ण मानते हैं। शास्‍त्रों में बताया गया है कि भगवान विष्‍णु की पूजा एकादशी के दिन करने और व्रत रखने से सुख और शांति घर में आती है। 
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हर एकादशी का अपना एक महत्व हिंदू धर्म में होता है। लेकिन सफला एकादशी जो पौष माह में आती है उस दिन भगवान विष्‍णु के मंत्रों का जाप और व्रत करने से धन लाभ और स्वास्‍थ्य अच्छा होता है। 
सफलता चूमती है कदम व्रत करने से 

शास्‍त्रों में कहा गया है कि श्रीहरि की कृपा की संपन्नता सफला एकादशी के दिन भक्तों को प्राप्त होती है। अगर मनुष्य इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखते हैं तो ऐसा करने से खुशहाली और सफलता जीवन में आती है। 22 दिसंबर को इस साल सफला एकादशी है। 
श्री हरि को एकादशी के दिन इस विधि से करें प्रसन्न 

श्री हरि की पूजा और मंत्र का जाप एकादशी के दिन सुबह उठकर विधि पूर्वक करें। 
श्रीहरि की पूजा करने के समय सफेद चंदन का टीका सबसे पहले माथे पर लगाएं। 
फूल, मौसमी फल और पंचामृत श्रीहरि को अर्पित करें और  साथ में हाथ जोड़ कर उनका आशीर्वाद लें। 
ऊॅं नमो भगवते वासुदेवाय का जाप 108 बार करें। 
श्रीहरि की सुबह इस दिन पूजा करने के बाद शाम को भी उनके सामने दीपक जलाएं। 
ये खास चीजें अर्पित करें एकादशी के दिन श्रीहरि को

एकादशी के दिन कुछ चीजें श्रीहरि को अपनी सुरक्षा और संपन्नता के लिए अर्पित करनी चाहिए। 
श्रीहरि को इस दिन रेशम का पीला धागा या वस्त्र अपने कैरियर में सफलता पाने के लिए जरूर करें। 
पीला धागा आपने श्रीहरि को अर्पित किया है तो पूजा के बाद अपने दाहिने हाथ में इसे बांध लें। 
अगर श्रीहरि को धागा महिलाएं अर्पित करती हैं तो वह पूजा के बाद उसे अपने बाएं हाथ में बांधे। 
ये है सफला एकादशी व्रत की कथा
पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है कि राजा महिष्मान के चार पुत्र थे। राजा के बड़े पुत्र का नाम लुम्पक महापापी था। जब राजा को अपने इस पुत्र के कुकर्मों का पता चला तो अपने राज्‍य से लुम्पक को राजा ने निकाल दिया। लेकिन अपने पिता की इस बात को लुम्पक समझ नहीं पाया और उसने चोरी करने की अपने पिता की नगरी में ठान ली। राज्य से वह बाहर दिन में रहता था और रात में आकर राज्य में चारियां करता था। 
बता दें कि धीरे-धीरे लुम्पक के पाप बढ़ते गए साथ ही लोगों को भी उसने नुकसान पहुंचाना शुरु कर दिया। वन में वह एक पीपल के पेड़ के नीचे लुम्पक रहता था। ठंड से वह पौष माह की दशम तिथि को बेहोश हो गया। जब लुम्पक को अगले दिन होश आया तो उसके अंदर इतनी कमजोरी थी कि वह कुछ खा नहीं पाया था और जो फल उसे मिले थे उसने पीपल की जड़ में रख दिए थे। 
इस तरह से एकादशी का व्रत उससे अनजान में ही पूरा हो गया।  भगवान एकादशी के व्रत से प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति के सारे पाप को माफ कर देते हैं। जब लुम्पक को अपनी गलती का एहसास हो जाता है तो उसके पिता उसे दोबारा से अपना लेते हैं। 
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