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सलमान खान को ‘जमानत’

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12:21 AM Apr 08, 2018 IST | Desk Team

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लोकप्रिय फिल्म अभिनेता सलमान खान को जोधपुर के सत्र न्यायालय से जमानत मिल गई है जिससे उनकी पांच वर्ष की जेल की सजा तब तक स्थगित रहेगी जब तक कि उच्च न्यायालय में उनकी अधीनस्थ न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ दायर होने वाली याचिका पर फैसला नहीं हो जाता है। उन्हें सत्र न्यायालय द्वारा जमानत दिये जाने से प्राथमिक तौर पर यह सिद्ध होता है कि वह आदतन अपराध करने वाले नागरिक नहीं हैं।

बीस वर्ष पहले उन पर जोधपुर के आसापास ही दो काले हिरणों का शिकार करने का अपराध जोधपुर की अधीनस्थ अदालत में सिद्ध हुआ था जिसकी वजह से उन्हें सम्बन्धित वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत सजा सुनाई गई थी। जाहिर तौर पर सलमान खान भारतीय फिल्म जगत के आजकल के दौर में सर्वाधिक चर्चित और युवा पीढ़ी में लोकप्रियता का शिखर छूने वाले अभिनेता हैं।

न्याय की प्रक्रिया का सामना करते हुए ही वह इस स्थिति में पहुंचे कि उन्हें जमानत की दर्ख्वास्त देनी पड़ी। यह भारतीय न्याय प्रक्रिया की निष्पक्षता का इस मायने में उदाहरण है कि वह किसी सामान्य नागरिक और विशेष हैसियत रखने वाले नागरिक में अन्तर नहीं करती। मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि शीघ्र न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया बहुत खर्चीली है।

सामान्यतः साधारण सजायाफ्ता नागरिक ऊंची अदालत में अपील करने के लिए वह आवश्यक धनराशि नहीं जुटा पाता है जिससे वह नामी–गिरामी वकील करके सजा को स्थगित कराने हेतु अपने मुकद्दमे के कानूनी तकनीकी पहलुओं के तहत राहत पा सके। फौजदारी कानूनी प्रक्रिया बिना शक बहुत धीमी गति से चलती है जिसकी वजह से भारत की जेलों में हजारों विचाराधीन कैदी पड़े रहते हैं। इनमें से अधिसंख्य के पास जमानत की औपचारिकताएं पूरी करने की क्षमता तक नहीं होती है।

इस बारे में स्वतन्त्र भारत की सरकारों ने बहुत संजीदगी से काम किया और 1960 में पं. नेहरू की सरकार ने विधि आयोग की सिफारिशों के अनुसार गरीबों को सरकारी खर्च पर न्याय दिलाने के लिए केन्द्र व राज्यों के लिए स्कीम तैयार की जिसमें देश की प्रत्येक अदालत में एक न्याय समिति के गठित करने का प्रावधान था परन्तु राज्यों की आर्थिक सीमाएं देखते हुए यह आगे नहीं बढ़ सकी परन्तु इसके बाद 1976 में स्व. इदिरा गांधी ने भारतीय संविधान में 42वां संशोधन करके अनुच्छेद 39(ए) जोड़ा जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को न्याय पाने में राज्य की मदद का हकदार बताया।

अतः सलमान खान की विशेष हैसियत के चलते उन्हें जमानत देने की प्रक्रिया में नुख्स निकालने की जगह हमें इस तथ्य पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए और सोचना चाहिए कि भारत क्यों एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी लोकतान्त्रिक गणतन्त्र है। सामाजिक न्याय से जुड़े इस संवैधानिक प्रावधान को समझे बगैर फौजदारी न्याय प्रक्रिया की सुस्त चाल की बेढ़ब तरीके से आलोचना करना इकतरफा विचार कहा जा सकता है और किसी हैसियतमन्द व्यक्ति द्वारा इसे जल्दी प्राप्त करने के तरीके को मेहरबानी कह कर बदनाम भी किया जा सकता है परन्तु हकीकत यह है कि सरकारें या सत्ता गरीबों को न्याय दिलाने के कर्त्तव्य में असफल होती रही हैं।

मगर आज तो हालत यह बना दी गई है कि हम किसी आरोपी या अपराधी को उसके कृत्य से न नाप कर हिन्दू–मुसलमान के आधार पर माप रहे हैं। एेसे में न्याय पाने के अधिकार को हम शुरू में ही किनारे पर रख देते हैं और न्याय की विकृत परिभाषा गढ़ने लगते हैं। आग में घी डालने का काम नाजायज मुल्क पाकिस्तान करता रहता है और इसके नामुराद सियासत दां अपनी गलतियों की झंझलाहट निकालने लगते हैं। वे भूल जाते हैं कि यह वह हिन्दोस्तान है जिसके राजस्थान की मेवाड़ रियासत के महाराणा प्रताप की फौज का सिपहसालार एक जांबाज मुसलमान फौजी हाकिम खां सूर था। भारत की न्याय प्रणाली जिस सिद्धांत पर टिकी हुई है वह यह है कि चाहे दस अपराधी छूट जाएं मगर एक निरपराध को सजा नहीं मिलनी चाहिए।

इसी वजह से निचली अदालत के फैसले को ऊंची अदालत में चुनौती दिये जाने की नीतिगत व्यवस्था हमारे यहां है। दूसरी तरफ राजस्थान के ​बिश्नोई समाज ने काले हिरणों की हत्या को लेकर जिस तरह अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को निभाते हुए काले हिरणों की हत्या को मुद्दा बनाया है वह भी प्रशंसनीय है क्योंकि राजस्थान की मरु भूमि में वन्य जीवों का संरक्षण करना वे अपना धर्म मानते हैं परन्तु उनका विरोध अपराध से है।

सलमान खान बेशक बहुत बड़े फिल्म अभिनेता हैं मगर वह संशय के घेरे में हैं और इसीलिए जमानत पर रिहा हुए हैं जिससे वह स्वयं को निरपराध साबित कर सकें। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की निगाहों में उनका फिल्म अभिनेता होना कोई मायने नहीं रखता इसी वजह से अधीनस्थ अदालत ने उन्हें दोषी करार दिया है मगर एक नागरिक होने के नाते उन्हें ऊंची अदालत में अपील करने का पूरा अधिकार है जो कानूनी विशेषज्ञ टीवी चैनलों पर आ–आकर पक्ष और विपक्ष में तकरीरें झाड़ रहे हैं जरा वे यह भी तो बताएं कि आम गरीब कैदी को न्याय दिलाने के लिए उनकी खुद की भूमिका क्या रही है ?

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