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सैलूट : सियाचिन में शहीद हुए पंजाब के ‘ तीनों लालों को’ हजारों नेत्रों ने अश्रुपूर्ण नम आंखों से दी अंतिम विदाई

बीते दिनों दुनिया में सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र कहे जाने वाले सियाचिन ग्लेशियर में 19000 फुट की ऊंचाई पर आए बर्फीले तूफान के चलते शहादत का जाम पीने वाले पंजाब के तीनों लालों का उनके पैतृक गांवों में आज हजारों नम हो रही आंखों के सामने सैन्य सम्मान के साथ विधिपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया गया।

03:46 PM Nov 20, 2019 IST | Shera Rajput

बीते दिनों दुनिया में सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र कहे जाने वाले सियाचिन ग्लेशियर में 19000 फुट की ऊंचाई पर आए बर्फीले तूफान के चलते शहादत का जाम पीने वाले पंजाब के तीनों लालों का उनके पैतृक गांवों में आज हजारों नम हो रही आंखों के सामने सैन्य सम्मान के साथ विधिपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया गया।

लुधियाना-मालेरकोटला-होशियारपुर-अमृतसर : बीते दिनों दुनिया में सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र कहे जाने वाले सियाचिन ग्लेशियर में 19000 फुट की ऊंचाई पर आए बर्फीले तूफान के चलते शहादत का जाम पीने वाले पंजाब के  तीनों लालों का उनके पैतृक गांवों में आज हजारों नम हो रही आंखों के सामने सैन्य सम्मान के साथ विधिपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान तीनों शहीदों के परिवारिक वारिस, रिश्तेदार, यार-दोस्त और आसपास के दर्जनों गांवों के लोगों के अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी और सियासी नेता भी पहुंचे हुए थे। 
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अंतिम संस्कार के वकत उपस्थित लोगों ने भारत मां की जयघोष के साथ-साथ शहीदों के नामों का उल्लेख करते हुए जयकारे भी लगाए। हालांकि परिवारिक सदस्यों और वारिसों का रो-रोकर बुरा हाल था ङ्क्षकतु उन्हें गर्व भी था कि उनके लालों ने भारत मां की रक्षा की खातिर अपने प्राणों की आहूति दी है। 
स्मरण रहे कि सियाचिन में हिमस्खलन के चलते शहीद हुए सेना के चार जवानों में से तीनों का संबंध पंजाब (अमृतसर, मालेरकोटला और होशियारपुर) से था जबकि  एक अन्य जवान पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले से था। विडम्बना यह है कि चारों शहीदों की आयु 30 के करीब बताई जा रही है और सभी ने पड़ोसी मुलक पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेरते हुए कुदरती मौसम से लड़ते हुए शहादत दी है। जानकारी के मुताबिक सियाचिन में सेना के जवानों की यह टुकड़ी क्षेत्र में एक पोस्ट पर बीमार हुए सैनिक को अस्पताल ले जाने के लिए निकली थी कि इसी दौरान माइनस 30 डिग्री से भी कम तापमान और हजारों फुट की ऊंचाई पर बर्फीले तूफान की चपेट में आने के दौरान लापता हुए थे। 
संगरूर जिले के मालेरकोटला स्थित गांव गुआरा निवासी सैनिक वीरपाल सिंह का स्थानीय शमशान घाट में सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कि या गया। इस दौरान मैडम रजिया सुलताना कैबिनेट मंत्री पंजाब और जिला प्रशासन की तरफ से विक्रमजीत सिंह पाम्बे, एसडीएम मालेरकोटला ने शहीद की मृतक देह को श्रद्धांजलि भेंट करते हुए सलामी दी। इससे पहले उक्त अधिकारियों ने शहीद वीरपाल सिंह के पिता कृपाल सिंह और माता मंजीत कौर से मिलकर व्यक्तिगत तौर पर संवेदनाएं प्रकट करते हुए कहा कि वीरपाल सिंह ने अपने नाम की सार्थकता को सच साबित करते हुए वीरगति प्राप्त की है और वीरपाल सिंह जैसे योद्धाओं के कारण ही आज देश आराम और चैन की जिंदगी व्यतीत कर रहा है। 
उन्होंने कहा कि वीरपाल सिंह के शहीद होने के साथ ना सिर्फ परिवार को कभी ना पूरा होने वाला नुकसान है बल्कि देश ने भी अपना जांबाज सिपाही खोए है। उल्लेखनीय है कि आने वाले साल की फरवरी माह में वीरपाल सिंह और उसकी बहन की शादी रखी हुई थी, किंतु परमात्मा को कुछ और ही मंजूर था। जानकारी के मुताबिक वीरपाल के परिवार की दशा बहुत ही दयनीय है। शहीद वीरपाल के बुजुर्ग पिता कृपाल सिंह गैस सिलेंडर ढोने का काम करते है जबकि माता घरेलू है। वीरपाल सिंह के अतिरिक्त घर में तीन बहनें हरप्रीत कौर, अमनदीप कौर, सरबजीत कौर और एक बड़ा भाई कुलदीप सिंह है।  भारतीय सेना के अधिकारियों ने बताया कि हजारों फुट की ऊंचाई पर गश्त करने के लिए 8 जवान गए थे, जिनमें 4 शहीद हुए है। इस गश्तीदल में 2 कुली भी थे, जिनकी मौत हुई है। 
शहीद वीरपाल का तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर जैसे ही गांव पहुंचा तो शहीद के अंतिम दर्शनोंं के लिए लोग उमड़ पड़े। हर कोई अपने लाल को विदाई दे रहा था। 
गुआरा निवासी वीरपाल भारतीय सेना की पंजाब रेजमेंट में डेढ़ वर्ष पहले ही भर्ती हुए थे। बीरपाल की शहादत की घर व गांव में मातम का माहौल छा गया है। तीन बहनों व दो भाइयों में से सबसे छोटे बीरपाल सिंह की शहादत ने पूरे परिवार को झिंझोड़ दिया। घर में विलाप मचा हुआ है। शहादत की खबर के बाद से ही गांव के लोग शहीद के घर पर जमा हो गए थे। पार्थिव शरीर घर पहुंचने के बाद परिजन फूट-फूट कर रोने लगे। 
गांव गुआरा के पंच जगदीप सिंह ने बताया कि शहीद वीरपाल एक बहुत ही गरीब परिवार से संबंध रखता था। उसके माता-पिता ने बहुत ही मुश्किल दौर से गुजरते हुए उसे सेना में भर्ती करवाया, लेकिन परमात्मा को कुछ और ही मंजूर था।
उधर 18 नवंबर को सियाचिन गलेशियर में बर्फ के तूफान के दौरान शहीद हुए अमृतसर जिले के अजनाला स्थित गांव घोनेवाला के जवान मनिंद्र सिंह की मृतक देह उनके पैतृक घर में अंतिम संस्कार से पहले लाई गई। इसके बाद शहीद की मृतक देह को फौजी जवानों द्वारा फतेहगढ़ चूडिय़ा में ले जाकर अंतिम संस्कार सैन्य सम्मान के साथ किया गया, कयोंकि फतेहगढ़ चूडिय़ा में शहीद मनिंद्र सिंह का समस्त परिवार रहता है।  
शहीद जवान के भाई गुरविंद्र सिंह जो एन.एस.जी कमांडो मुंबई में तैनात है, ने बताया कि मनिंद्र सिंह 3 पंजाब रेजीमेंट में भर्ती हुआ था और सियाचिन गलेशियर की कांजी गंगा पोस्ट, भाणा एल.पी में डयूटी निभा रहा था। उन्होंने बताया कि मनिंद्र की शादी 6 साल पहले इकविंद्र कौर के साथ हुई थी और उसका 5 वर्षीय बेटा एकजोत सिंह है। शहीद की पत्नी का कहना है कि मुझे अपने पति पर मान है।  जिन्होंने अपने देश के लिए जान कुर्बान की है और मैं अपने बच्चे को भी देश सेवा के लिए सेना में भर्ती करवाऊंगी। 28 वर्षीय मनिंद्र सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उसके परिजन और आसपास के कई गांवों से लोग पहुंचे हुए थे। 
जबकि पंजाब के ही होशियारपुर जिले से संबंधित मुकेरिया के सैधों तहसील निवासी शहीद सिपाही डिम्पल कुमार ने भी अपने साथियों के साथ देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए शहादत दी है, उसके डयूटी के दौरान शहीद होने की खबर फैलते ही पूरे इलाके में शोक की लहर थी। डिम्पल करीब डेढ़ साल पहले सेना में भर्ती हुआ था और ट्रेनिंग खत्म करने के बाद पहली बार उसको सियाचिन गलेशियर में तैनात किया गया था। 
डिम्पल के परिवार में मातम छाया हुआ है और परिवारिक सदस्यों का रो-रोकर बुरा हाल था। अश्रुपूर्ण नेत्रों से गंगा-जमुना की धाराओं की तरह फूट रही ममतामयी मां को गांववासी संभालने में व्यस्त दिखे। डिम्पल के परिवार में उसके पिता जगजीत सिंह उर्फ जगा जो सीआरपीएफ में तैनात है, मां समेत देा छोट भाई-बहन भी है। 
शहीद के भाई रविंद्र ने रोते हुए बताया कि उन्हें अपने भाई की शहादत पर गर्व है। वही गांववासियों ने कहा कि डिम्पल की कमी हमेशा खलेंगी। क्योंकि वह एक नेक दिल इंसान था। जानकारी के मुताबिक डिम्पल फुटबाल का अव्वल खिलाड़ी भी था। जिसके यार-दोसत आज अनमोल हीरा खोकर चिंतित है। 
– सुनीलराय कामरेड 
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